




बिहार की राजनीति में महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, CPI-ML और अन्य दलों का गठजोड़) एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार विवाद की जड़ है सीट बंटवारा। CPI-ML (भाकपा माले) ने आगामी चुनावों के लिए 40 सीटों पर दावा ठोकते हुए पूरी सूची RJD नेता तेजस्वी यादव को सौंप दी है। इसके चलते गठबंधन के भीतर खींचतान और तनाव की स्थिति पैदा हो गई है।
CPI-ML पिछले कुछ वर्षों में बिहार की राजनीति में एक अहम ताकत बनकर उभरी है। खासकर ग्रामीण और पिछड़े वर्गों में उसकी पकड़ मजबूत हुई है। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में CPI-ML ने 19 सीटें जीती थीं। कई सीटों पर उसने RJD और कांग्रेस उम्मीदवारों की जीत में भी अहम भूमिका निभाई। इसी आत्मविश्वास के दम पर CPI-ML अब 40 सीटों पर अपनी दावेदारी जता रही है।
सूत्रों के अनुसार, CPI-ML नेताओं ने हाल ही में RJD नेता तेजस्वी यादव से मुलाकात की और उन्हें उन 40 सीटों की सूची सौंपी, जिन पर वे चुनाव लड़ना चाहते हैं।
सूची सौंपते समय CPI-ML ने साफ किया कि उनकी मांग को “गंभीरता से लिया जाए”। अगर उन्हें अपेक्षित सीटें नहीं मिलतीं, तो यह गठबंधन की एकजुटता के लिए खतरा साबित हो सकता है।
CPI-ML के इस दावे ने महागठबंधन के भीतर बेचैनी बढ़ा दी है। RJD, जो गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है, चाहती है कि ज्यादा सीटें उसी को मिलें। कांग्रेस भी कम से कम 60 सीटों की मांग कर चुकी है। अब CPI-ML का 40 सीटों पर दावा बाकी दलों के समीकरण बिगाड़ सकता है।
यह स्थिति साफ तौर पर बताती है कि गठबंधन के भीतर “सीट शेयरिंग” पर बड़ी खींचतान होने वाली है।
तेजस्वी यादव के सामने बड़ी चुनौती है। एक ओर उन्हें CPI-ML जैसे सहयोगियों को साथ रखना है, वहीं दूसरी ओर अपनी पार्टी RJD के कार्यकर्ताओं और नेताओं को भी संतुष्ट करना है।
RJD नेताओं का मानना है कि यदि CPI-ML को इतनी ज्यादा सीटें दे दी गईं, तो RJD कार्यकर्ताओं में असंतोष फैल सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि महागठबंधन के भीतर यह सीट बंटवारे का विवाद गंभीर रूप ले सकता है। अगर CPI-ML को उसकी मांग के अनुरूप सीटें नहीं मिलतीं, तो वह स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का रास्ता अपना सकती है। इससे सीधा फायदा एनडीए (भाजपा और उसके सहयोगियों) को मिलेगा। बिहार की राजनीति में यह पहली बार नहीं है जब सीट बंटवारे पर गठबंधन में दरार पड़ने की आशंका बनी हो।
दिलचस्प बात यह है कि महागठबंधन केवल बिहार तक सीमित नहीं है। यह गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता की एक बड़ी मिसाल माना जाता है। अगर यहां मतभेद गहराते हैं, तो इसका असर 2025 के आम चुनावों और आने वाले विधानसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि
“अगर महागठबंधन सीट शेयरिंग में असफल रहता है, तो विपक्ष की एकजुटता का दावा कमजोर पड़ेगा।”
CPI-ML नेताओं का कहना है कि उनका जनाधार लगातार बढ़ रहा है और वे उन क्षेत्रों में चुनाव लड़ना चाहते हैं, जहां उनकी पकड़ मजबूत है। उनका तर्क है कि गठबंधन को केवल बड़ी पार्टियों के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि छोटे सहयोगियों को भी सम्मानजनक हिस्सेदारी मिलनी चाहिए।
हालांकि तेजस्वी यादव ने अभी तक इस मामले में कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार वे चाहते हैं कि गठबंधन की एकता बनी रहे।
वे जल्द ही सभी सहयोगी दलों के नेताओं के साथ बैठक बुला सकते हैं, ताकि सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय हो सके।
बिहार महागठबंधन इस समय एक मुश्किल मोड़ पर खड़ा है। CPI-ML की 40 सीटों की मांग ने गठबंधन की राजनीति को नई चुनौती दे दी है।
तेजस्वी यादव और अन्य नेताओं के सामने अब बड़ी जिम्मेदारी है कि वे ऐसा संतुलन बनाएँ, जिससे CPI-ML और कांग्रेस जैसे सहयोगी दलों की नाराज़गी दूर हो सके और साथ ही RJD का वर्चस्व भी कायम रहे।
आने वाले हफ्तों में इस विवाद का समाधान निकलता है या नहीं, यह तय करेगा कि महागठबंधन मजबूत होकर चुनाव में उतरेगा या फिर अंदरूनी मतभेदों से कमजोर हो जाएगा।