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पश्चिम बंगाल में चुनावी तैयारियों के बीच सबसे बड़ी चुनौती मतदाताओं की मैपिंग और सत्यापन प्रक्रिया बन गई है। चुनाव आयोग ने 20 सितंबर की डेडलाइन तय की है और इस तिथि तक काम पूरा करना अनिवार्य है। लेकिन जमीन पर हालात बताते हैं कि यह समय सीमा अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए किसी रेस अगेंस्ट टाइम से कम नहीं है।
🔹 मतदाता मैपिंग क्यों ज़रूरी?
मतदाता मैपिंग का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर वोटर सही बूथ से जुड़ा हो और डुप्लीकेट या फर्जी प्रविष्टियों को हटाया जा सके।
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चुनाव आयोग के अनुसार, बंगाल में करीब 7.5 करोड़ से अधिक वोटर हैं।
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इनमें से बड़ी संख्या को अभी तक उनके स्थानीय पते, आधार और पहचान से जोड़ने का काम पूरा नहीं हुआ है।
यदि यह प्रक्रिया समय पर पूरी नहीं होती है तो आगामी विधानसभा चुनावों में गड़बड़ी और शिकायतों की संभावना बढ़ सकती है।
🔹 20 सितंबर की डेडलाइन क्यों अहम?
चुनाव आयोग ने यह डेडलाइन इसलिए तय की है ताकि अक्टूबर तक संशोधित वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट तैयार किया जा सके।
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इसके बाद आपत्तियों और सुधार की प्रक्रिया चलेगी।
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नवंबर से पहले अंतिम वोटर लिस्ट को प्रकाशित करने का लक्ष्य रखा गया है।
इसलिए 20 सितंबर तक का समय प्रशासन के लिए बेहद संवेदनशील है।
🔹 ग्राउंड लेवल की दिक्कतें
मैपिंग का काम ब्लॉक और वार्ड स्तर पर किया जा रहा है।
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कई इलाकों में डिजिटल डेटा एंट्री की गति बेहद धीमी है।
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ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क और टेक्निकल गड़बड़ियों की वजह से कर्मचारियों को परेशानी हो रही है।
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कई वोटर घर पर उपलब्ध नहीं मिलते, जिससे सत्यापन का काम अधूरा रह जाता है।
कर्मचारियों ने माना कि 7.5 करोड़ वोटरों की मैपिंग को मात्र कुछ हफ्तों में पूरा करना लगभग असंभव कार्य जैसा है।
🔹 राजनीतिक दबाव भी बढ़ा
यह मुद्दा सिर्फ प्रशासनिक नहीं बल्कि राजनीतिक भी है।
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विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि राज्य सरकार और चुनाव आयोग फर्जी वोटरों को हटाने में गंभीर नहीं हैं।
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वहीं, सत्तारूढ़ दल का कहना है कि आयोग पर अनुचित दबाव बनाया जा रहा है।
इस खींचतान के बीच कर्मचारियों पर समय सीमा में काम पूरा करने का दबाव और भी बढ़ गया है।
🔹 मतदाताओं की परेशानी
मतदाता भी इस प्रक्रिया से प्रभावित हो रहे हैं।
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कई लोगों को सत्यापन के लिए बार-बार दस्तावेज जमा करने पड़ रहे हैं।
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कुछ इलाकों में बूथ स्तर के अधिकारी समय पर नहीं पहुंच पाते, जिससे लोगों को असुविधा होती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह प्रक्रिया जल्दबाज़ी में पूरी की गई तो हजारों असली वोटर भी लिस्ट से बाहर हो सकते हैं।
🔹 चुनाव आयोग की रणनीति
इन चुनौतियों से निपटने के लिए आयोग ने
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अतिरिक्त कर्मचारियों की तैनाती,
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स्पेशल ड्राइव,
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और डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम लागू करने की योजना बनाई है।
साथ ही, आयोग ने मतदाताओं से भी अपील की है कि वे स्वयं आगे आकर अपनी जानकारी सही कराएं।
पश्चिम बंगाल में मतदाता मैपिंग की प्रक्रिया सिर्फ एक प्रशासनिक कवायद नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव को मजबूत करने वाला कदम है।
20 सितंबर की डेडलाइन अब बेहद नजदीक है और चुनाव आयोग के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह समय रहते सटीक और पारदर्शी वोटर लिस्ट तैयार कर सके।
यह दौड़ सिर्फ समय के खिलाफ नहीं, बल्कि लोकतंत्र की विश्वसनीयता के लिए भी है।








