




कर्नाटक में हाल ही में जारी जाति सर्वेक्षण में 52 ईसाई जातियों की सूची पर भाजपा नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तीव्र आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह सूची ईसाई धर्म की जातिवाद की अवधारणा से मेल नहीं खाती और इसे भ्रामक बताया गया है।
ईसाई धर्म और जातिवाद
ईसाई धर्म में जातिवाद की अवधारणा नहीं है। धर्म परिवर्तन के बाद भी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और जाति पहचान बनी रहती है। ऐसे में ईसाई समुदाय को जातिवाद की सूची में शामिल करना कई लोगों के लिए असहज और विवादास्पद है।
भा.ज.पा. नेताओं की प्रतिक्रिया
भा.ज.पा. के नेताओं ने इस सूची को भ्रामक और अस्वीकार्य बताया है। उनका कहना है कि यह सूची समाज में जातिवाद को बढ़ावा देने वाली है और इससे सामाजिक सौहार्द्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
कर्नाटक सरकार की स्थिति
कर्नाटक सरकार ने इस सूची को जारी करने के पीछे का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन की पहचान करना बताया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि यह सर्वेक्षण केवल पिछड़े वर्गों की स्थिति को समझने के लिए है और इसका उद्देश्य किसी भी धर्म या जाति को विशेष लाभ देना नहीं है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं की चिंता
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस सूची से समाज में विभाजन की भावना बढ़ सकती है। उनका मानना है कि जातिवाद की सूची में ईसाई समुदाय को शामिल करना सामाजिक समरसता के लिए हानिकारक हो सकता है।
कर्नाटक में जाति सर्वेक्षण में ईसाई समुदाय की जातियों की सूची पर विवाद ने राज्य की राजनीति और समाज में नई बहस छेड़ दी है। यह देखना होगा कि सरकार इस विवाद को कैसे सुलझाती है और समाज में समरसता बनाए रखने के लिए क्या कदम उठाती है।