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    Homebound समीक्षा: नीरज घटवान की फिल्म जाति और विश्वास पर रखती है समाज का दर्पण

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    नीरज घटवान की नई फिल्म Homebound रिलीज़ होते ही चर्चा में है। फिल्म ने भारतीय समाज के जाति और धार्मिक विसंगतियों को पर्दे पर उतारते हुए दर्शकों के बीच गहरा प्रभाव छोड़ा है। Homebound केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है; यह फिल्म समाज का दर्पण है और हमारे रोज़मर्रा के व्यवहार और मानसिकताओं पर सवाल उठाती है।

    Homebound की कहानी एक छोटे से गाँव और शहर के बीच पलायन करने वाले परिवार की है। फिल्म के माध्यम से नीरज घटवान दर्शाते हैं कि कैसे जाति और धर्म का प्रेशर व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन पर प्रभाव डालता है।

    कहानी का केंद्र एक युवक और उसकी माता-पिता पर है। युवक शहर में नौकरी और पढ़ाई के लिए जाता है, लेकिन वहां उसे अपने जातीय और धार्मिक पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है। वहीं, गाँव में माता-पिता पर समाज की पारंपरिक अपेक्षाएँ और धार्मिक रूढ़िवाद भारी पड़ते हैं।

    इस द्वंद्व और संघर्ष को घटवान ने न केवल संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत किया है, बल्कि फिल्म में छोटे-छोटे सांकेतिक दृश्य और संवाद दर्शकों के मन पर गहरे असर डालते हैं।

    Homebound का सबसे बड़ा आकर्षण उसका सामाजिक संदेश है। फिल्म यह दिखाती है कि हमारे समाज में जाति और धर्म कैसे रोज़मर्रा के जीवन, रिश्तों और व्यक्तिगत फैसलों को प्रभावित करते हैं।

    नीरज घटवान कहते हैं—
    “Homebound का उद्देश्य लोगों को अपने अंदर झाँकने पर मजबूर करना है। यह दिखाना कि किस तरह हमारी मानसिकता और पूर्वाग्रह दूसरों के जीवन को प्रभावित करते हैं।”

    फिल्म में कई दृश्य ऐसे हैं, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि क्या हम वास्तव में अपने समाज के सभी पहलुओं को समझते हैं या केवल रूढ़िवादी दृष्टिकोण से देखते हैं।

    फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में काम कर रहे कलाकारों ने प्रभावशाली और संवेदनशील अभिनय किया है। विशेष रूप से युवक की भूमिका निभाने वाले अभिनेता ने अपने चेहरे के हाव-भाव और आंखों की अभिव्यक्ति के माध्यम से भीतरी संघर्ष और सामाजिक दबाव को बेहतरीन तरीके से पेश किया।

    नीरज घटवान का निर्देशन भी फिल्म की ताकत है। उन्होंने फिल्म के संगीत, सीन चयन और कैमरा वर्क को इस तरह से बुना है कि यह कहानी का हिस्सा बन जाता है। छोटे-छोटे दृश्यों में गांव की सड़कों, बाजारों और घर के माहौल को बड़े ही जीवंत ढंग से पेश किया गया है।

    Homebound का संगीत फिल्म के भावनात्मक और सामाजिक पहलुओं को गहराई देता है। बैकग्राउंड स्कोर और गाने दर्शकों के मन में दृश्य और भावनाओं को स्थायी रूप से बिठा देते हैं।

    छायांकन में प्राकृतिक और सटीक लोकेशन का इस्तेमाल फिल्म की सच्चाई को बढ़ाता है। कैमरा वर्क दर्शकों को महसूस कराता है कि वे पात्रों के साथ ही इस संघर्ष का हिस्सा हैं।

    फिल्म के रिलीज़ होने के बाद दर्शकों और आलोचकों से सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ मिली हैं। समीक्षकों ने Homebound को समाज में व्याप्त जटिलताओं को बिना किसी सेंसेशनलिज़्म के दिखाने वाली फिल्म करार दिया है।

    एक फिल्म समीक्षक ने कहा—
    “नीरज घटवान ने समाज की संवेदनशील बातों को इतनी नाज़ुकता और समझदारी से पेश किया है कि हर दर्शक इससे जुड़ाव महसूस करता है। यह फिल्म सोचने पर मजबूर करती है।”

    दर्शकों का कहना है कि फिल्म का संदेश और कथानक कई बार देखने पर भी नए अर्थ प्रकट करते हैं।

    Homebound केवल एक कहानी नहीं, बल्कि समाज पर सवाल उठाने वाली फिल्म है। फिल्म दर्शाती है कि कैसे पारंपरिक धारणाएँ और धार्मिक विश्वास लोगों के जीवन में बाधा डाल सकते हैं।

    नीरज घटवान की फिल्म यह सवाल उठाती है कि—

    • क्या हम अपने समाज में न्याय और समानता को लेकर सच में संवेदनशील हैं?

    • क्या हमारी सोच और सामाजिक संरचना आगे बढ़ रही है या पीछे ही खिंच रही है?

    यह फिल्म दर्शकों को आत्मनिरीक्षण करने के लिए मजबूर करती है।

    Homebound सिर्फ सिनेमा नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। नीरज घटवान ने फिल्म में जाति, धर्म और समाज के जटिल मुद्दों को इतने संवेदनशील और वास्तविक ढंग से प्रस्तुत किया है कि यह दर्शकों के मन में लंबे समय तक बना रहेगा।

    यदि आप ऐसी फिल्म देखना चाहते हैं जो मनोरंजन के साथ-साथ समाज और मानसिकता पर सोचने का अवसर दे, तो Homebound ज़रूर देखें। यह फिल्म न केवल एक कहानी सुनाती है, बल्कि दर्शकों के भीतर सामाजिक प्रतिबिंब और समझ पैदा करती है।

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