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अफगानिस्तान का बगराम एयरबेस एक बार फिर वैश्विक राजनीति और सामरिक चर्चाओं का केंद्र बन गया है। रिपोर्टों के मुताबिक, अमेरिका ने इस एयरबेस पर दोबारा नियंत्रण हासिल करने की योजना बनाई है। इस कदम के पीछे मुख्य कारण बताया जा रहा है चीन की बढ़ती निगरानी क्षमताएं और अफगानिस्तान में उसके बढ़ते कूटनीतिक एवं आर्थिक दखल। लेकिन अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान ने इसे सख्ती से खारिज करते हुए कहा कि किसी भी विदेशी शक्ति को अफगान भूमि पर सैन्य ठिकाना बनाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
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बगराम एयरबेस कभी अफगानिस्तान में अमेरिका और नाटो सेनाओं का सबसे बड़ा ठिकाना था।
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2001 से लेकर 2021 तक इस बेस से अमेरिकी सेना ने तालिबान और अल-कायदा पर कई बड़े ऑपरेशन चलाए।
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2021 में अमेरिकी सेना की वापसी के बाद तालिबान ने इस एयरबेस पर कब्जा कर लिया।
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आज यह बेस सिर्फ अफगान वायुसेना के इस्तेमाल में है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह बेस मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के बीच रणनीतिक दृष्टिकोण से बेहद अहम है।
सूत्रों के मुताबिक, अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को आशंका है कि चीन अफगानिस्तान में तकनीकी और सैन्य गतिविधियों के ज़रिए अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है।
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चीन पहले ही अफगानिस्तान में कई खनन और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश कर चुका है।
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अमेरिका को डर है कि चीन अफगान धरती से अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की जासूसी कर सकता है।
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बगराम एयरबेस पर दोबारा नियंत्रण अमेरिका को चीन पर नज़र रखने और आतंकवाद-रोधी अभियानों के लिए मददगार साबित हो सकता है।
तालिबान सरकार के प्रवक्ता ने साफ़ कहा:
👉 “अफगानिस्तान की जमीन किसी भी विदेशी शक्ति के कब्जे या सैन्य ठिकाने के लिए उपलब्ध नहीं होगी। हमने 20 साल की जंग लड़ी है ताकि अपनी सरज़मीन से विदेशी सैनिकों को निकाल सकें। अब किसी भी कीमत पर उनका लौटना बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
तालिबान का यह बयान संकेत देता है कि अमेरिका की योजना को अमल में लाना बेहद मुश्किल होगा।
विश्लेषकों के अनुसार, अमेरिका का यह कदम केवल अफगानिस्तान तक सीमित नहीं है बल्कि यह चीन-अमेरिका शक्ति संघर्ष का हिस्सा है।
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अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति चीन, रूस, ईरान और पाकिस्तान के लिए भी अहम है।
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अमेरिका की वापसी के बाद चीन और रूस यहां प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
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अगर अमेरिका ने बगराम पर कब्जे की कोशिश की, तो यह कदम तालिबान ही नहीं बल्कि चीन और रूस की नाराज़गी भी बढ़ा सकता है।
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चीन ने अमेरिका की इस योजना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अफगानिस्तान की संप्रभुता का सम्मान किया जाना चाहिए।
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रूस ने भी चेतावनी दी कि किसी भी विदेशी सैन्य हस्तक्षेप से क्षेत्र की स्थिरता प्रभावित होगी।
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पाकिस्तान ने चुप्पी साध रखी है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि वह भी अमेरिका की वापसी से खुश नहीं होगा।
बगराम एयरबेस पर अमेरिका की दोबारा नज़र ने एक बार फिर अफगानिस्तान को वैश्विक राजनीति के केंद्र में ला खड़ा किया है।
तालिबान ने भले ही सख्ती से इस संभावना को नकार दिया हो, लेकिन चीन पर अमेरिका की बढ़ती चिंता इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में अफगानिस्तान एक बार फिर महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा का मैदान बन सकता है।








