




भारत की आंतरिक और औद्योगिक सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) अब और अधिक सशक्त तथा आधुनिक तकनीकों से लैस होने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। बल ने अपने ट्रेनिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव किया है। अब जवानों से लेकर वरिष्ठ अफसरों तक सभी को एक जैसी ट्रेनिंग दी जाएगी, जिसे नाम दिया गया है – ‘वन फोर्स, वन ट्रेनिंग’।
इसके अलावा, तेजी से बदलती सुरक्षा चुनौतियों और तकनीकी खतरों को देखते हुए एंटी-ड्रोन ट्रेनिंग को भी अनिवार्य कर दिया गया है।
क्यों जरूरी हुई यह पहल?
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने ड्रोन हमलों और ड्रोन से जुड़ी सुरक्षा चुनौतियों का सामना किया है। जम्मू-कश्मीर से लेकर पंजाब और राजस्थान की सीमाओं तक कई बार ड्रोन के जरिए हथियारों और नशीले पदार्थों की तस्करी की घटनाएं सामने आईं। यहां तक कि जम्मू में 2021 में एयरफोर्स स्टेशन पर ड्रोन अटैक ने सुरक्षा एजेंसियों को हिला दिया था।
इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए CISF ने निर्णय लिया है कि हर जवान और अधिकारी को एंटी-ड्रोन तकनीक से निपटने की पूरी जानकारी होनी चाहिए।
‘वन फोर्स, वन ट्रेनिंग’ क्या है?
अब तक CISF में अलग-अलग रैंकों के हिसाब से ट्रेनिंग पैटर्न अलग होते थे। उदाहरण के लिए, जवानों की ट्रेनिंग और अफसरों की ट्रेनिंग में कई अंतर देखने को मिलते थे।
लेकिन अब नए पैटर्न के तहत ‘वन फोर्स, वन ट्रेनिंग’ लागू होगी। इसका अर्थ है कि –
-
जवानों से लेकर अधिकारियों तक सभी को समान ट्रेनिंग दी जाएगी।
-
सुरक्षा, तकनीक, आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल और आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने का अभ्यास सबको समान रूप से कराया जाएगा।
-
इससे बल के भीतर एकरूपता और एकजुटता बढ़ेगी।
एंटी-ड्रोन ट्रेनिंग: सुरक्षा का नया कवच
एंटी-ड्रोन ट्रेनिंग में जवानों और अधिकारियों को सिखाया जाएगा कि –
-
ड्रोन की पहचान कैसे की जाए – आसमान में सामान्य उड़ान और संदिग्ध ड्रोन उड़ान में फर्क करना।
-
ड्रोन को ट्रैक और जाम करना – इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मदद से।
-
ड्रोन हमले से बचाव और प्रतिक्रिया – ड्रोन से होने वाले विस्फोट या हथियार गिराने की स्थिति में त्वरित कदम उठाना।
-
सीमा सुरक्षा और महत्वपूर्ण स्थलों पर ड्रोन मॉनिटरिंग – जैसे एयरपोर्ट, परमाणु संयंत्र, मेट्रो, बंदरगाह और औद्योगिक संस्थान।
CISF की भूमिका और जिम्मेदारी
CISF की जिम्मेदारी केवल औद्योगिक प्रतिष्ठानों की सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि –
-
देश के प्रमुख हवाई अड्डों (Airports)
-
मेट्रो रेल नेटवर्क
-
बंदरगाह (Ports)
-
सरकारी प्रतिष्ठान
-
और कई महत्वपूर्ण रणनीतिक संस्थानों की सुरक्षा भी इसके जिम्मे है।
ऐसे में ड्रोन जैसी आधुनिक चुनौतियों से निपटने के लिए CISF का पूरी तरह प्रशिक्षित होना बेहद जरूरी है।
एकरूपता से मिलेगी ताकत
‘वन फोर्स, वन ट्रेनिंग’ का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि हर जवान और अफसर के बीच ट्रेनिंग का कोई अंतर नहीं रहेगा। इससे टीमवर्क और समन्वय (Coordination) बेहतर होगा। किसी भी आपात स्थिति में तेज और प्रभावी प्रतिक्रिया मिल सकेगी। सभी रैंक के लोग एक-दूसरे की क्षमताओं को बेहतर समझ पाएंगे।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ड्रोन चुनौती
ड्रोन हमले अब केवल भारत की ही समस्या नहीं हैं। दुनिया भर में यह एक बड़ी सुरक्षा चुनौती बन चुके हैं। 2019 में सऊदी अरब के अरामको ऑयल प्लांट पर ड्रोन अटैक हुआ था, जिसने पूरी दुनिया को चौका दिया था। रूस-यूक्रेन युद्ध में भी ड्रोन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया है।
इन घटनाओं ने साबित किया कि ड्रोन भविष्य की जंग का अहम हथियार बन चुके हैं। ऐसे में भारत का CISF जैसी सुरक्षा एजेंसियों को एंटी-ड्रोन तकनीक में प्रशिक्षित करना समय की मांग है।
भविष्य की दिशा
CISF ने यह कदम उठाकर संकेत दे दिया है कि आने वाले समय में सुरक्षा का स्वरूप पूरी तरह तकनीकी होगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग, ड्रोन ट्रैकिंग सिस्टम और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में ट्रेनिंग को और मज़बूत किया जाएगा।
CISF की नई ट्रेनिंग व्यवस्था ‘वन फोर्स, वन ट्रेनिंग’ और एंटी-ड्रोन ट्रेनिंग न केवल जवानों और अधिकारियों को आधुनिक खतरों से निपटने के लिए तैयार करेगी, बल्कि देश की सुरक्षा प्रणाली को और भी मजबूत बनाएगी।
इस पहल से साफ है कि भारत की सुरक्षा एजेंसियां अब केवल पारंपरिक खतरों पर नहीं, बल्कि तकनीकी युद्ध (Technological Warfare) पर भी पूरी नजर रख रही हैं।