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    Gen Z के स्वयंसेवकों के लिए बदलता आरएसएस: 100 वर्ष के संघ की युवाओं में बढ़ती पैठ

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    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करने की ओर बढ़ रहा है। एक सदी की यात्रा में संघ ने कई राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक बदलावों को देखा और अपनाया है। लेकिन अब जब देश का युवा वर्ग तेजी से डिजिटल और ग्लोबल दुनिया से जुड़ रहा है, तब संघ ने भी अपने संगठनात्मक ढांचे और शाखा गतिविधियों में ऐसे बदलाव करना शुरू कर दिया है, जिससे खासकर Gen Z (1997–2012 के बीच जन्मे युवा वर्ग) स्वयंसेवकों को जोड़ना आसान हो सके।

    बदलती शाखा और बदलते प्रयोग

    जहां कभी शाखाओं में पारंपरिक खेल, योग और अनुशासन की शिक्षा ही प्रमुख थी, वहीं अब समय के साथ शाखाओं में नई गतिविधियां भी शामिल की जा रही हैं। किशोर और युवाओं की रुचि को देखते हुए विज्ञान, तकनीक, पर्यावरण और डिजिटल जीवनशैली से जुड़े मुद्दों पर चर्चा शुरू की गई है।

    संघ की कई शाखाओं में अब यह देखा जा रहा है कि बच्चे सिर्फ परंपरागत खेल ही नहीं खेलते, बल्कि उन्हें मोबाइल एडिक्शन से बचाने, पढ़ाई पर फोकस बढ़ाने और सोशल मीडिया के सही इस्तेमाल जैसे विषयों पर भी मार्गदर्शन दिया जा रहा है।

    माता-पिता की चिंता और संघ की भूमिका

    आजकल माता-पिता की सबसे बड़ी चिंता है कि बच्चे घंटों मोबाइल, गेम्स और सोशल मीडिया पर समय बर्बाद कर रहे हैं। इसी वजह से कई माता-पिता अपने बच्चों को संघ की शाखाओं से जोड़ने लगे हैं, ताकि वे अनुशासित जीवन, सामूहिक गतिविधियों और व्यावहारिक सोच की ओर आकर्षित हो सकें।

    संघ के स्वयंसेवक बताते हैं कि शाखाओं में बच्चों को खेल, गीत, शारीरिक व्यायाम और सामाजिक चर्चा के माध्यम से ऐसी वैल्यू सिस्टम दी जाती है, जो उन्हें डिजिटल नशे से दूर करने में मदद करती है।

    Gen Z के लिए नया नजरिया

    संघ ने महसूस किया है कि Gen Z का युवा वर्ग सिर्फ वैचारिक बातें सुनकर प्रभावित नहीं होता। उसे व्यवहारिकता और करियर से जुड़ी बातें ज्यादा आकर्षित करती हैं। यही कारण है कि अब शाखाओं में युवाओं को नेतृत्व क्षमता, करियर मार्गदर्शन, स्टार्टअप, पर्यावरण संरक्षण और सोशल वर्क जैसे विषयों से जोड़ा जा रहा है।

    युवाओं की रुचि को देखते हुए संघ ने कई स्थानों पर क्लीन इंडिया, वृक्षारोपण, ब्लड डोनेशन और डिजिटल लिटरेसी कैंपेन जैसी गतिविधियों को भी शाखाओं से जोड़ा है।

    आरएसएस का 100 वर्ष और बदलती छवि

    आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी और तब से लेकर अब तक यह देश का सबसे बड़ा स्वयंसेवक संगठन बन चुका है। जैसे-जैसे संघ शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे संगठन की कोशिश है कि वह नए युग की जरूरतों के हिसाब से प्रासंगिक बना रहे।

    संघ का मानना है कि अगर Gen Z और आगामी पीढ़ियों को अपने साथ जोड़ा जाए तो संगठन की विचारधारा और सामाजिक संदेश आने वाले 50 वर्षों तक और मजबूत होंगे।

    समाज और राजनीति पर असर

    यह कोई छुपी बात नहीं है कि आरएसएस का देश की राजनीति और समाज पर गहरा असर है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) जैसी राजनीतिक पार्टी भी अपनी जड़ों से संघ से जुड़ी है। ऐसे में युवाओं के बीच संघ की पैठ बढ़ना सीधे तौर पर राजनीति में भी असर डालेगा।

    कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि संघ Gen Z को सफलतापूर्वक जोड़ने में सफल हो जाता है तो आने वाले समय में उसका प्रभाव और भी व्यापक हो जाएगा।

    आधुनिकता और परंपरा का मेल

    आरएसएस का प्रयास यह है कि वह परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बना सके। जहां एक ओर शाखाओं में संस्कृत श्लोक, योग और पारंपरिक खेल सिखाए जाते हैं, वहीं दूसरी ओर युवाओं को डिजिटल युग की चुनौतियों से निपटना, समाजसेवा और उद्यमिता जैसे विषयों से भी जोड़ा जा रहा है।

    यह संतुलन ही संघ की भविष्य की रणनीति का अहम हिस्सा है, क्योंकि आज का युवा तेजी से बदलते परिवेश में जी रहा है।

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष में यह समझ चुका है कि यदि उसे नई पीढ़ी को अपने साथ जोड़ना है तो उसके विचारों और जीवनशैली को समझना होगा। यही कारण है कि शाखाओं में अब Gen Z से जुड़े मुद्दों को प्राथमिकता दी जा रही है।

    मोबाइल की लत से निजात दिलाना, करियर गाइडेंस, स्टार्टअप सोच, पर्यावरण और समाजसेवा जैसे विषय अब संघ की शाखाओं का हिस्सा बनते जा रहे हैं। यही कारण है कि माता-पिता भी बच्चों को संघ की ओर ले जा रहे हैं।

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