




आगरा के यमुना पार क्षेत्र में स्थित अपेक्स हॉस्पिटल फिर से सुर्खियों में है। मामला तब सामने आया जब हॉस्पिटल ने आयुष्मान कार्ड के तहत इलाज कराने वाले मरीज के खर्चों को लेकर जांच टीम को फर्जी बिल दिखाकर गुमराह करने का प्रयास किया। जांच के दौरान हॉस्पिटल संचालक ने दावा किया कि इलाज में ₹83,000 का खर्च आया, जबकि वास्तविक खर्च और बिल पीड़ित के पास मौजूद हैं।
इस मामले ने न केवल अस्पताल की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा किया है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे कुछ प्राइवेट अस्पताल सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं की आड़ में धोखाधड़ी कर रहे हैं।
मामले का पूरा घटनाक्रम
कुछ दिन पहले आगरा में आयुष्मान कार्ड के तहत इलाज कराए गए मरीज के साथ अवैध तरीके से वसूली की खबर प्रकाशित हुई। इसके बाद सीएमओ (Chief Medical Officer) टीम ने जांच की जिम्मेदारी ली और हॉस्पिटल से जवाब मांगा।
जवाब में अपेक्स हॉस्पिटल संचालक ने दावा किया कि इलाज में ₹83,000 खर्च हुए और वही खर्च बिल के रूप में प्रस्तुत किया। लेकिन इस बिल में स्पष्ट झूठ और गुमराह करने की कोशिश थी। असल में, मरीज ने इलाज में अपने पास मौजूद ओरिजिनल बिल और रसीदें पेश कीं, जिनमें दिखाया गया कि आयुष्मान कार्ड के तहत इलाज कैशलेस होना चाहिए था, लेकिन हॉस्पिटल ने रोजाना ₹1,500 डॉक्टर फीस के हिसाब से अतिरिक्त शुल्क लिया।
जांच टीम पर उठ रहे सवाल
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यही है कि जांच टीम ने पीड़ित से बयान क्यों नहीं लिए। मरीज और उसके परिवार के अनुसार, जांच टीम केवल हॉस्पिटल में गई, दस्तावेजों को देखा और फिर बिना किसी गहराई में गए लौट गई।
इससे कई लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या जांच टीम ने हॉस्पिटल को संरक्षण दिया या फिर अनजाने में गुमराह हो गई। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्थानीय निवासियों का कहना है कि यह घटनाक्रम दिखाता है कि प्राइवेट हॉस्पिटल और प्रशासन के बीच कभी-कभी अनकही मिलीभगत हो सकती है।
फर्जी बिल और कैशलेस वसूली
आयुष्मान कार्ड के तहत इलाज में मरीजों को कैशलेस सुविधा मिलती है। इसका अर्थ है कि मरीज को अस्पताल में जाकर पैसे जमा करने की जरूरत नहीं होती।
हालांकि, अपेक्स हॉस्पिटल ने रोजाना ₹1,500 डॉक्टर फीस के नाम पर मरीज से रकम वसूल की और इसे अपने फर्जी बिल में छुपा दिया। मरीज के पास इसकी रसीदें मौजूद हैं, जो साबित करती हैं कि हॉस्पिटल ने सरकारी योजना का गलत फायदा उठाया।
सामाजिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण
यह मामला न केवल वित्तीय धोखाधड़ी का है, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी गंभीर है। आयुष्मान कार्ड जैसे सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं का उद्देश्य गरीब और मध्य वर्ग के नागरिकों को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना है।
लेकिन जब कुछ प्राइवेट हॉस्पिटल इन योजनाओं का गलत इस्तेमाल करते हैं, तो यह योजना का मूल उद्देश्य प्रभावित होता है। ऐसे मामलों से सरकार और प्रशासन पर दबाव बढ़ता है कि वे इन अस्पतालों पर कड़ी निगरानी रखें और जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करें।
पीड़ित की आपबीती और प्रतिक्रिया
मरीज और उसके परिवार ने आरोप लगाया कि हॉस्पिटल ने उन्हें गुमराह करने का पूरा प्रयास किया। उन्होंने बताया कि उन्होंने सभी असली बिल और रसीदें जांच टीम को दिखाने की कोशिश की, लेकिन टीम ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया।
इस पर परिवार का कहना है कि यदि जांच टीम पूरी तरह से तथ्य जुटाती और पीड़ित का बयान लेती, तो धोखाधड़ी का मामला आसानी से सामने आ सकता था।
आगरा प्रशासन और भविष्य की कार्रवाई
इस मामले के बाद प्रशासन पर यह जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वह अपेक्स हॉस्पिटल जैसी प्राइवेट संस्थाओं की कड़ाई से जांच और निगरानी करे।
विशेषज्ञों का मानना है कि केवल जांच टीम का दौरा और फर्जी बिलों की पड़ताल पर्याप्त नहीं है। प्रशासन को चाहिए कि:
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पीड़ितों और उनके परिवार से बयान लिया जाए।
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हॉस्पिटल के सभी खर्च और बिलों की वास्तविकता जांची जाए।
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दोषियों पर उचित कानूनी कार्रवाई की जाए।
आयुष्मान कार्ड के तहत हुई अवैध वसूली का यह मामला आगरा के यमुना पार क्षेत्र के अपेक्स हॉस्पिटल के खिलाफ चेतावनी की तरह है। यह दिखाता है कि सरकारी योजनाओं की सुरक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित करना क्यों जरूरी है।
मामला केवल एक अस्पताल तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश के स्वास्थ्य और प्रशासनिक ढांचे पर सवाल खड़े करता है।
यह जरूरी है कि प्रशासन और जांच टीम पूरी तरह निष्पक्ष और पारदर्शी जांच करे ताकि पीड़ितों को न्याय मिले और ऐसे धोखाधड़ी करने वाले अस्पतालों पर अंकुश लगे।