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    तमिल मछुआरों की रिहाई की मांग: सांसद ने विदेश मंत्री जयशंकर को लिखा पत्र, श्रीलंकाई नौसेना द्वारा 12 मछुआरे हिरासत में

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    28 सितंबर की सुबह करीब 2:40 बजे, भारतीय मछुआरों का एक समूह उस समय श्रीलंकाई नौसेना द्वारा हिरासत में ले लिया गया, जब वे समुद्री सीमा के पास मछली पकड़ रहे थे। इन 12 मछुआरों में से 10 मछुआरे केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी के कराईकल क्षेत्र से हैं, जबकि 2 मछुआरे तमिलनाडु से संबंधित हैं।

    घटना के बाद इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए, एक लोकसभा सांसद ने विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर को पत्र लिखकर इन मछुआरों की तत्काल रिहाई के लिए हस्तक्षेप की मांग की है।

    पत्र में सांसद ने लिखा कि मछुआरे केवल अपने जीवनयापन के लिए समुद्र में गए थे और उनका उद्देश्य किसी अंतरराष्ट्रीय नियम का उल्लंघन नहीं था। उन्होंने इसे मानवीय मुद्दा बताते हुए कहा कि मछुआरों को लंबे समय तक हिरासत में रखना न केवल उनकी आजीविका को प्रभावित करता है, बल्कि उनके परिवारों को भी मानसिक पीड़ा देता है।

    सांसद ने विदेश मंत्री से अनुरोध किया कि वे राजनयिक माध्यमों से श्रीलंका सरकार से संपर्क कर इस मामले को प्राथमिकता से सुलझाएं और मछुआरों की जल्द वापसी सुनिश्चित करें।

    हिरासत में लिए गए मछुआरों के परिवारों और स्थानीय मछुआरा संघों में इस घटना को लेकर गहरी चिंता और आक्रोश देखा जा रहा है। कराईकल क्षेत्र में कई परिवारों ने स्थानीय अधिकारियों से मुलाकात की और तत्काल हस्तक्षेप की मांग की।

    एक मछुआरे की पत्नी ने कहा:

    “हमें नहीं पता हमारे पति किस हाल में हैं। हर बार यही होता है — वे मछली पकड़ने जाते हैं और फिर वापस नहीं आते। सरकार को जल्द कार्रवाई करनी चाहिए।”

    भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा के पास मछुआरा विवाद एक दशकों पुराना मुद्दा है। तमिलनाडु और कराईकल के मछुआरे पारंपरिक रूप से पाल्क स्ट्रेट (Palk Strait) में मछली पकड़ते हैं। लेकिन श्रीलंका का आरोप है कि भारतीय मछुआरे उनकी समुद्री सीमा का उल्लंघन करते हैं और वहां के समुद्री संसाधनों को नुकसान पहुंचाते हैं।

    इसके चलते श्रीलंकाई नौसेना समय-समय पर भारतीय मछुआरों को पकड़ती है, जिससे राजनयिक तनाव भी उत्पन्न होता है।

    भारत का विदेश मंत्रालय (MEA) इस तरह की घटनाओं में आमतौर पर श्रीलंका सरकार से संपर्क करता है और डिप्लोमैटिक चैनल्स के माध्यम से मामले को सुलझाने की कोशिश करता है। कई बार दोनों देशों के बीच मछुआरों की अदला-बदली (prisoner exchange) भी होती रही है।

    हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद इस प्रकार की घटनाएं बार-बार सामने आती रहती हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह समस्या स्थायी समाधान की मांग करती है।

    विदेश नीति के जानकारों का मानना है कि इस समस्या को केवल राजनयिक स्तर पर नहीं, बल्कि नीतिगत समाधान के माध्यम से सुलझाना होगा।

    एक वरिष्ठ अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ ने कहा:

    “हर बार गिरफ्तारी के बाद रिहाई की मांग करना एक तात्कालिक समाधान है, लेकिन दीर्घकालीन स्थिरता के लिए साझा मछली पकड़ने की नीति (Joint Fishing Agreement) और समुद्री सीमा पर स्पष्टता ज़रूरी है।”

    1. संयुक्त गश्त और निगरानी (Joint Patrolling)
      भारत और श्रीलंका मिलकर समुद्र में निगरानी रख सकते हैं ताकि अनजाने में सीमा उल्लंघन से बचा जा सके।

    2. GPS ट्रैकिंग उपकरणों का अनिवार्य प्रयोग
      मछुआरों की नौकाओं पर GPS डिवाइस लगाना जिससे उनकी पोजिशन ट्रैक की जा सके और वे गलती से सीमा न पार करें।

    3. संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान और जागरूकता
      सरकार मछुआरों को शिक्षित कर सकती है कि किन क्षेत्रों में मछली पकड़ना प्रतिबंधित है।

    4. राजनयिक संवाद को मज़बूत बनाना
      उच्च स्तरीय वार्ताओं के ज़रिए एक स्थायी व्यवस्था बनानी होगी।

    तमिल और कराईकल क्षेत्र के मछुआरों की हिरासत की यह ताजा घटना न केवल एक मानवीय संकट है, बल्कि यह भारत-श्रीलंका द्विपक्षीय संबंधों के एक जटिल पहलू को भी उजागर करती है।

    सांसद द्वारा विदेश मंत्री को भेजा गया पत्र इस बात का प्रतीक है कि भारत के नेता इस मुद्दे को गंभीरता से ले रहे हैं। अब आवश्यकता है कि केंद्र सरकार शीघ्र और प्रभावी कदम उठाए, जिससे न केवल इन 12 मछुआरों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित हो, बल्कि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।

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