




डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रस्तुत ग़ाज़ा युद्ध समाप्त करने के लिए तैयार किया गया 20-बिंदुओं वाला विवादास्पद शांति प्रस्ताव अब न केवल मध्य-पूर्व में, बल्कि दक्षिण एशिया में भी गंभीर विवाद का कारण बन गया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ द्वारा इस प्रस्ताव का समर्थन करना अब उनके लिए उल्टा पड़ता नजर आ रहा है।
शहबाज़ शरीफ़ को सोशल मीडिया और विपक्षी दलों की तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन हो रहे हैं और उन्हें “मुसलमानों की हत्या पर सौदेबाजी करने वाला” और “फिलिस्तीनियों का ग़द्दार” तक कहा जा रहा है।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक ऐसा प्रस्ताव पेश किया है जिसे वह “स्थायी शांति योजना” बता रहे हैं। इस योजना के तहत:
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हमास को हथियार डालने और ग़ाज़ा से हटने की शर्त रखी गई है।
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इसराइल को धीरे-धीरे ग़ाज़ा से सैनिक हटाने की छूट है।
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ग़ाज़ा का प्रशासन एक अंतरराष्ट्रीय बोर्ड को सौंपा जाएगा, जिसमें हमास की कोई भूमिका नहीं होगी।
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पुनर्निर्माण के लिए अरब और अन्य देशों से आर्थिक मदद ली जाएगी।
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यदि हमास प्रस्ताव न माने, तो इसराइल को “अंतिम कदम” उठाने की छूट होगी।
हालांकि इस प्रस्ताव को इसराइल ने तुरंत समर्थन दे दिया है, परंतु हमास और फिलिस्तीनी प्राधिकरण ने अब तक कोई सहमति नहीं दी है। कई विशेषज्ञों और मानवाधिकार संगठनों ने इस योजना को एकतरफा और फिलिस्तीन विरोधी बताया है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने एक बयान में ट्रंप की इस योजना को “सकारात्मक पहल” बताते हुए स्वागत किया था। उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव क्षेत्र में शांति लाने की दिशा में एक “उम्मीद की किरण” हो सकता है।
उनके इस बयान के कुछ ही घंटों के भीतर सोशल मीडिया पर पाकिस्तानियों का ग़ुस्सा फूट पड़ा। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर लोग उन्हें “शर्म करो”, “फिलिस्तीन का सौदा मत करो”, “मुसलमानों का खून बेचने वाले” जैसे शब्दों से निशाना बना रहे हैं।
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एक यूज़र ने लिखा: “शहबाज़ शरीफ़ ने ग़ाज़ा के मासूम बच्चों की लाशों पर राजनीति कर डाली। यह सरकार मुसलमानों की भावनाओं से खेल रही है।”
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एक अन्य ट्वीट में कहा गया: “ट्रंप की गोद में बैठने वाले प्रधानमंत्री को पाकिस्तान में शासन करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।”
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एक फेसबुक पोस्ट में लिखा गया: “जब पूरी दुनिया इसराइली बर्बरता की निंदा कर रही है, तब शहबाज़ शरीफ़ ट्रंप की डील को ‘शांति योजना’ बता रहे हैं — यह शर्मनाक है।”
पाकिस्तान में विपक्षी दल, खासकर पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने शहबाज़ शरीफ़ के बयान की तीव्र आलोचना की है। पीटीआई के वरिष्ठ नेता ने कहा कि:
“शहबाज़ शरीफ़ की सरकार ने फिलिस्तीनियों की पीड़ा का मज़ाक उड़ाया है। ट्रंप की योजना दरअसल इसराइल की शर्तों को लागू करने का रास्ता है। यह कोई शांति प्रस्ताव नहीं, बल्कि गुलामी का दस्तावेज है।”
जमात-ए-इस्लामी और मुहाजिर कौमी मूवमेंट (MQM) जैसे धार्मिक एवं क्षेत्रीय दलों ने भी शरीफ़ के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। कराची, लाहौर और इस्लामाबाद में विरोध प्रदर्शन भी दर्ज किए गए हैं।
पाकिस्तान ऐतिहासिक रूप से फिलिस्तीन का प्रबल समर्थक रहा है। 1947 के बाद से पाकिस्तान ने हमेशा फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय और स्वतंत्रता के पक्ष में आवाज उठाई है। संयुक्त राष्ट्र और इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) में भी पाकिस्तान ने फिलिस्तीन के पक्ष में अनेक प्रस्ताव पारित कराए हैं।
शहबाज़ शरीफ़ का यह ताजा बयान न केवल पाकिस्तान की पारंपरिक विदेश नीति से विचलन है, बल्कि मुस्लिम उम्मा (Ummah) के बीच पाकिस्तान की छवि को भी धक्का पहुंचा सकता है।
सरकारी प्रवक्ता ने कहा है कि प्रधानमंत्री का बयान “शांति और मानवता” के पक्ष में था और उसे गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। उनका कहना है कि पाकिस्तान अब भी फिलिस्तीन के आत्मनिर्णय के पक्ष में खड़ा है।
लेकिन जनता इस सफाई से संतुष्ट नहीं दिख रही है। सोशल मीडिया पर हैशटैग #ShameOnShehbaz और #PalestineNotForSale ट्रेंड कर रहे हैं।
शहबाज़ शरीफ़ द्वारा डोनाल्ड ट्रंप के ग़ाज़ा शांति प्रस्ताव का समर्थन करना एक राजनीतिक भूल बनता जा रहा है। जहां एक तरफ यह प्रस्ताव खुद विवादों से घिरा है, वहीं दूसरी तरफ शरीफ़ का समर्थन पाकिस्तानी जनभावनाओं के उलट जाता दिख रहा है। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि मध्य-पूर्व की राजनीति में कोई भी बयान, विशेषकर फिलिस्तीन जैसे संवेदनशील मुद्दे पर, एक बड़ा कूटनीतिक संकट खड़ा कर सकता है।