




राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने इस वर्ष अपने शताब्दी वर्ष के अवसर पर आयोजित होने वाले विजयादशमी समारोह के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई की माता कमलताई गवई को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है। यह कार्यक्रम 5 अक्टूबर को महाराष्ट्र के अमरावती में आयोजित होना है। जैसे ही इस निमंत्रण की जानकारी सामने आई, विवाद और चर्चाओं का सिलसिला शुरू हो गया।
RSS इस आयोजन के माध्यम से न केवल अपने 100 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है, बल्कि संगठन के सामाजिक प्रभाव और वैचारिक विस्तार को भी रेखांकित कर रहा है।
कमलताई गवई को भेजा गया निमंत्रण इस बात को दर्शाता है कि संघ अब अपनी पहुंच को हर सामाजिक और राजनीतिक वर्ग तक विस्तारित करने की कोशिश कर रहा है।
जैसे ही यह खबर सामने आई कि CJI की माँ को RSS के आयोजन में आमंत्रित किया गया है, कई राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने इस पर आपत्ति जताई। सोशल मीडिया पर लोगों ने यह सवाल उठाया कि न्यायपालिका से जुड़े परिवार का किसी वैचारिक संगठन के साथ जुड़ाव क्या संकेत देता है।
विवाद उस समय और बढ़ गया जब CJI के भाई और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई गुट) के नेता डॉ. राजेंद्र गवई ने कहा कि उनकी माँ ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया है और वे समारोह में भाग लेंगी।
हालाँकि, कुछ ही समय बाद यह खबर सामने आई कि कमलताई गवई इस निमंत्रण को लेकर असमंजस में हैं और उन्होंने अंतिम निर्णय नहीं लिया है। उन्होंने यह भी कहा कि वे सोशल मीडिया पर हो रहे विवादों से दुखी हैं।
डॉ. राजेंद्र गवई ने पहले कहा था, “हम अपनी विचारधारा को नहीं छोड़ते, लेकिन पारिवारिक और राजनीतिक रिश्तों को एक-दूसरे से अलग देखा जाना चाहिए।” उनका यह बयान स्पष्ट रूप से दिखाता है कि वह इस आमंत्रण को लेकर सकारात्मक हैं।
वहीं कमलताई गवई ने इस विवाद से दुखी होकर स्पष्ट किया कि उन्होंने कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है।
उनके अनुसार, वह एक आंबेडकरवादी विचारधारा से जुड़ी रही हैं और RSS जैसे संगठन के मंच पर उपस्थित होना उनके लिए सामाजिक असमंजस उत्पन्न कर सकता है।
हालांकि यह आयोजन सीधे तौर पर CJI से संबंधित नहीं है, लेकिन यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यदि न्यायपालिका के उच्च पद पर आसीन व्यक्ति के परिवार के सदस्य किसी वैचारिक संगठन के कार्यक्रम में भाग लेते हैं, तो इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता पर क्या असर पड़ेगा?
कई कानूनी विशेषज्ञों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि ऐसी स्थिति में सार्वजनिक विश्वास को क्षति पहुंच सकती है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न लग सकता है।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि RSS का यह कार्यक्रम न केवल एक पारंपरिक विजयादशमी उत्सव है, बल्कि शताब्दी वर्ष के उत्सव का भी आरंभ है। ऐसे में मुख्य अतिथि के चयन को केवल सामाजिक या व्यक्तिगत दृष्टिकोण से देखना पर्याप्त नहीं होगा।
कमलताई गवई सिर्फ CJI की माँ नहीं हैं, बल्कि अमरावती क्षेत्र में समाजसेवा और शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं। उन्होंने श्री दादासाहेब चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की थी और वर्षों से सामाजिक न्याय व बहुजन सशक्तिकरण के मुद्दों पर कार्य करती रही हैं।
उनकी पहचान एक स्वतंत्र विचार रखने वाली सामाजिक कार्यकर्ता की रही है, जो आंबेडकरवादी धारा की समर्थक हैं। ऐसे में RSS जैसे संगठन के साथ मंच साझा करना उनके सामाजिक और वैचारिक स्टैंड के विपरीत माना जा रहा है।
अब जब यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन चुका है, तो सभी की निगाहें कमलताई गवई के अंतिम निर्णय पर टिकी हैं।
यदि वे कार्यक्रम में भाग लेती हैं, तो इसे RSS की वैचारिक स्वीकार्यता में एक बड़ी जीत माना जाएगा। वहीं, अगर वे मना करती हैं, तो यह एक स्पष्ट संदेश होगा कि विचारधारा और न्यायपालिका की गरिमा को प्राथमिकता दी गई है।
कमलताई गवई के RSS विजयादशमी कार्यक्रम में शामिल होने या न होने का निर्णय व्यक्तिगत होते हुए भी व्यापक सामाजिक और राजनीतिक अर्थ रखता है। यह निर्णय न्यायपालिका, राजनीति और समाज के उस त्रिकोण को उजागर करता है, जिसमें स्वतंत्रता, निष्पक्षता और विचारधारा के संतुलन की चुनौती हमेशा बनी रहती है।