




भारत के राष्ट्रगीत “वंदे मातरम्” के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में केंद्र सरकार द्वारा देशभर में वर्षभर चलने वाले भव्य उत्सवों का आयोजन किया जाएगा। इस योजना को लेकर केंद्रीय मंत्रिमंडल (Union Cabinet) ने औपचारिक मंजूरी प्रदान कर दी है।
यह ऐतिहासिक गीत, जिसे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1875 में रचा था, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रभक्ति का प्रतीक बनकर उभरा था। इसके 150 वर्ष पूरे होने पर, सरकार ने इसे राष्ट्र के लिए गर्व और गौरव का अवसर मानते हुए विशेष कार्यक्रमों की श्रृंखला की घोषणा की है।
“वंदे मातरम्” का शाब्दिक अर्थ है – “माँ को नमन”। यह गीत सबसे पहले बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित उपन्यास आनंदमठ (Anandamath) में प्रकाशित हुआ था। यह गीत जल्द ही ब्रिटिश शासन के विरुद्ध जन-आंदोलनों का प्रेरणास्रोत बन गया।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस गीत को गाकर क्रांतिकारियों ने देशभक्ति की भावना को जागृत किया। वर्ष 1950 में जब भारत गणराज्य बना, तब इसे राष्ट्रगीत का दर्जा प्राप्त हुआ।
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री ने कैबिनेट बैठक के बाद प्रेस को बताया:
“भारत के गौरवशाली इतिहास में वंदे मातरम् का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके 150 वर्ष पूरे होने पर केंद्र सरकार देशभर में सांस्कृतिक, शैक्षिक और ऐतिहासिक कार्यक्रमों का आयोजन करेगी, जो वर्ष 2025-26 तक चलेंगे।”
कार्यक्रमों की मुख्य विशेषताएँ होंगी:
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देशभर के स्कूलों, कॉलेजों, और विश्वविद्यालयों में वंदे मातरम् गायन प्रतियोगिताएं
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डिजिटल माध्यमों से वंदे मातरम् के विभिन्न संस्करणों का प्रसारण
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डाक टिकट और सिक्कों पर वंदे मातरम् की स्मृति में डिजाइन जारी करना
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देशभर के संग्रहालयों और पुस्तकालयों में विशेष प्रदर्शनी
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साहित्यिक सेमिनार और संगोष्ठी, जिनमें गीत की ऐतिहासिक और भाषाई विश्लेषण किया जाएगा
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भारत की स्वतंत्रता के इतिहास में वंदे मातरम् की भूमिका पर विशेष डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण
वंदे मातरम् न केवल एक गीत है, बल्कि भारतीयता की भावना का प्रतीक है। महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, और रवींद्रनाथ ठाकुर जैसे नेताओं ने इसे राष्ट्र को एकजुट करने वाले गीत के रूप में स्वीकार किया।
सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज के मार्चिंग गीतों में भी वंदे मातरम् प्रमुख रूप से शामिल था। यह गीत धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं से परे, भारतवासियों की एकता का भाव व्यक्त करता है।
पिछले 150 वर्षों में वंदे मातरम् को कई कलाकारों, संगीतकारों और गायकों ने अपने-अपने अंदाज़ में प्रस्तुत किया है। लता मंगेशकर, ए.आर. रहमान, हेमंत कुमार, और कविता कृष्णमूर्ति जैसे दिग्गजों ने इस गीत को अपनी आवाज़ दी है।
ए.आर. रहमान द्वारा तैयार किया गया आधुनिक वर्जन वर्ष 1997 में स्वतंत्रता के 50 वर्ष पूरे होने पर बेहद लोकप्रिय हुआ था।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय) ने सभी शैक्षणिक संस्थानों को निर्देश जारी किए हैं कि वे:
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वंदे मातरम् पर विशेष प्रार्थना सभा आयोजित करें
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छात्रों को इसके इतिहास और महत्व से अवगत कराएँ
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निबंध प्रतियोगिता, पोस्टर मेकिंग और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ आयोजित करें
शिक्षा मंत्री ने कहा:
“नई पीढ़ी को हमारे राष्ट्रगीत के मूल अर्थ और उसकी ऐतिहासिक भूमिका को समझना चाहिए। यह राष्ट्र निर्माण की नींव है।”
हालांकि वंदे मातरम् का गौरवशाली इतिहास है, लेकिन बीते वर्षों में इसके कुछ पंक्तियों को लेकर धार्मिक विवाद भी उठे हैं। विशेष रूप से इसकी पहली दो पंक्तियाँ (जो राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकृत हैं) को सभी स्वीकार करते हैं, लेकिन बाद की पंक्तियों को लेकर कुछ समुदायों ने आपत्ति जताई थी।
इन विवादों के बावजूद, वंदे मातरम् को भारतीय संविधान के तहत राष्ट्रगीत का दर्जा प्राप्त है, और इसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक माना जाता है।
इतिहासकार प्रो. मीरा कुमार कहती हैं:
“वंदे मातरम् महज एक गीत नहीं, बल्कि भारत के आत्मसम्मान का प्रतीक है। इसके 150 साल का उत्सव, हमारी विरासत को फिर से जोड़ने का अवसर है।”
वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होना केवल एक साहित्यिक या सांस्कृतिक उपलब्धि नहीं, बल्कि राष्ट्र के इतिहास और आत्मा को पुनः जागृत करने का अवसर है। केंद्र सरकार द्वारा इस अवसर को भव्य रूप देने की योजना न केवल इतिहास को सम्मान देती है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम भी करती है।