




अमेरिकी सीनेट के न्यायपालिका समिति के शीर्ष दो सदस्य, रिपब्लिकन चेयरमैन चक ग्रास्ली और डेमोक्रेटिक रैंकिंग मेम्बर डिक डर्बिन ने सोमवार को H-1B और L-1 वर्कर वीजा प्रोग्राम्स में नियमों को सख्त करने वाला विधेयक पुनः प्रस्तुत किया।
यह बिल उन खामियों और बड़े नियोक्ताओं द्वारा किए जा रहे दुरुपयोग को रोकने के उद्देश्य से लाया गया है, जिनके कारण अमेरिका के वीजा नियमों की आलोचना होती रही है।
बिल में H-1B और L-1 वीजा कार्यक्रमों के तहत दी जाने वाली वीजा संख्या को नियंत्रित करने के साथ-साथ श्रमिकों के वेतन स्तर और भर्ती प्रक्रिया को और सख्त किया जाएगा। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि विदेशी कार्यकर्ता अमेरिका में स्थानीय कर्मचारियों के साथ बराबरी पर काम करें और उन्हें उचित वेतन मिले।
चक ग्रास्ली ने कहा, “यह बिल अमेरिकी वर्कफोर्स की सुरक्षा करता है और सुनिश्चित करता है कि वीजा नियमों का दुरुपयोग न हो। हम एक पारदर्शी और न्यायसंगत प्रणाली चाहते हैं।”
डिक डर्बिन ने भी इस कदम का समर्थन करते हुए कहा कि यह न केवल नियमों को कड़ा करेगा बल्कि उन नियोक्ताओं के खिलाफ भी कार्रवाई करेगा जो वीजा प्रणाली का गलत फायदा उठाते हैं।
हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने वीजा शुल्क में वृद्धि की थी, जिससे इस प्रोग्राम की जांच और आलोचना बढ़ गई है। आलोचक कहते हैं कि फीस बढ़ने से छोटे और मध्यम व्यवसायों पर आर्थिक बोझ पड़ता है, जबकि बड़े निगमों के लिए यह ज्यादा प्रभावी नहीं होता।
इस बिल के पुनः पेश होने के पीछे इस फीस विवाद और वीजा प्रणाली में पारदर्शिता और सुधार की मांग है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह बिल पास होता है, तो इससे विदेशी श्रमिकों की भर्ती प्रक्रिया में कड़ाई आएगी और उन्हें मिलने वाली नौकरियां सीमित हो सकती हैं। वहीं, अमेरिकी कामगारों को रोजगार के बेहतर अवसर मिलेंगे।
इस विधेयक को लेकर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं मिश्रित हैं। कुछ व्यापार समूहों ने कहा है कि यह नियम कड़े होने से अमेरिकी उद्योगों को विदेशी प्रतिभाओं की कमी का सामना करना पड़ सकता है। वहीं, श्रमिक संघ इसे स्वागत योग्य कदम मान रहे हैं।