




भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बार फिर वैश्विक मंच पर भारत की दृढ़ और संतुलित विदेश नीति का परिचय देते हुए अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में कुछ देश ऐसे हैं जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों और नियमों का पालन करने से साफ इंकार करते हैं। यह प्रवृत्ति न केवल वैश्विक शांति के लिए खतरा है, बल्कि एक स्थायी और न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था की अवधारणा को भी चुनौती देती है।
राजनाथ सिंह ने यह टिप्पणी संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में भाग लेने वाले देशों के सेना प्रमुखों के सम्मेलन के दौरान की। इस महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय बैठक में उन्होंने भारत की ओर से स्पष्ट संदेश दिया कि अगर वैश्विक संस्थाओं को प्रभावी और प्रासंगिक बनाए रखना है, तो उनमें व्यापक सुधार की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का उद्देश्य दुनिया में शांति और स्थिरता स्थापित करना था, लेकिन आज यह उद्देश्य कई बार राजनीतिक स्वार्थों के आगे कमजोर पड़ता दिखाई देता है। कुछ देश अंतरराष्ट्रीय नियमों को अपने हितों के हिसाब से तोड़ते-मरोड़ते हैं। यह प्रवृत्ति न केवल अन्य देशों के लिए अनुचित है बल्कि वैश्विक शांति के लिए भी गंभीर खतरा है।”
रक्षा मंत्री के इस बयान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की कूटनीतिक स्थिति के संदर्भ में एक सशक्त संदेश के रूप में देखा जा रहा है। राजनाथ सिंह ने स्पष्ट किया कि भारत एक ऐसा देश है जो हमेशा “वसुधैव कुटुंबकम” के सिद्धांत पर विश्वास करता है, लेकिन साथ ही वह किसी भी अन्याय या शक्ति के दुरुपयोग के खिलाफ मुखर रहने में हिचकिचाएगा नहीं।
उन्होंने अपने संबोधन में यह भी कहा कि वर्तमान समय में वैश्विक संस्थानों जैसे संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, IMF आदि की संरचना और निर्णय लेने की प्रक्रिया में सुधार जरूरी है, ताकि यह संस्थान 21वीं सदी की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित कर सकें। राजनाथ सिंह ने कहा, “विश्व को ऐसे संस्थान चाहिए जो सभी देशों की समान भागीदारी सुनिश्चित करें, न कि कुछ शक्तिशाली देशों के वर्चस्व का प्रतीक बन जाएं।”
राजनाथ सिंह के इस बयान का एक निहितार्थ यह भी माना जा रहा है कि उन्होंने अमेरिका और चीन जैसे देशों की ओर अप्रत्यक्ष रूप से इशारा किया है, जो कई बार वैश्विक नियमों का पालन करने में दोहरा रवैया अपनाते हैं। उदाहरण के तौर पर, दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामकता, और पश्चिमी देशों द्वारा कुछ अंतरराष्ट्रीय संधियों को अपने हित में तोड़ने की घटनाओं ने लंबे समय से विश्व समुदाय में असंतुलन पैदा किया है।
भारत, जो लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है, अब सुधार की मांग को और अधिक प्रबलता से उठा रहा है। राजनाथ सिंह का यह बयान उसी दिशा में एक मजबूत कदम के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि जब तक वैश्विक शासन संरचनाओं में व्यापक सुधार नहीं होंगे, तब तक शांति, विकास और समानता के लक्ष्य अधूरे रहेंगे।
भारत की भूमिका संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में हमेशा से अग्रणी रही है। भारत ने अब तक 49 से अधिक मिशनों में अपनी सेनाएं भेजी हैं और 2 लाख से अधिक सैनिकों ने इन अभियानों में भाग लिया है। इस योगदान का उल्लेख करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत ने कभी भी शक्ति प्रदर्शन या वर्चस्व की राजनीति नहीं की, बल्कि हमेशा न्याय, समानता और शांति के सिद्धांतों को प्राथमिकता दी है।
उन्होंने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए आधुनिक तकनीक, बेहतर प्रशिक्षण और पारदर्शी निर्णय प्रक्रिया आवश्यक है। भारत इस दिशा में भी अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
राजनाथ सिंह के भाषण को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की “Responsible Power” (उत्तरदायी शक्ति) की छवि को मजबूत करने वाला बताया जा रहा है। भारत न केवल अपने हितों की रक्षा कर रहा है, बल्कि एक न्यायपूर्ण और समान विश्व व्यवस्था के निर्माण के लिए भी नेतृत्व करने को तैयार है।