




मिस्र में हाल ही में आयोजित गाजा शांति सम्मेलन में भारत ने कूटनीतिक रूप से एक सशक्त संदेश दिया। सम्मेलन में पाकिस्तान को बराबरी का मंच न देने के संकेत से यह साफ हो गया कि भारत आतंकवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा के मामलों में किसी भी तरह की समझौता नहीं करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस सम्मेलन में शामिल नहीं हुए, लेकिन उनके रवैये और संदेश ने पूरी दुनिया को स्पष्ट संकेत दे दिया।
भारत की तरफ से इस सम्मेलन में भाग लेने वाले विदेश राज्य मंत्री ने स्पष्ट किया कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों के साथ किसी भी तरह की अनावश्यक बातचीत नहीं होगी। यह कदम विशेष रूप से पाकिस्तान को लेकर एक सख्त संदेश था, क्योंकि पाकिस्तान पर लंबे समय से गाजा क्षेत्र और आतंकवाद में संलिप्त होने के आरोप हैं।
सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी अपनी भूमिका निभाई और पीएम मोदी की तारीफ की। ट्रंप ने भारत की स्थिरता, आर्थिक और राजनीतिक ताकत को सराहा और इसे एक मजबूत लोकतंत्र के उदाहरण के रूप में पेश किया। इसके साथ ही उन्होंने पाकिस्तान को कड़े शब्दों में नसीहत दी कि आतंकवाद के मामलों में भारत की चिंता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
विश्लेषकों का कहना है कि यह शांति सम्मेलन सिर्फ गाजा के मुद्दों तक सीमित नहीं था। यह एक रणनीतिक मंच था, जहां अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश दिया गया कि भारत आतंकवाद और सुरक्षा के मामलों में किसी भी प्रकार की रियायत नहीं करेगा। पीएम मोदी के न जाने के बावजूद विदेश राज्य मंत्री की भागीदारी ने यह संदेश मजबूत किया कि भारत की कूटनीति स्थिर और निर्णायक है।
पाकिस्तानी प्रतिनिधियों के लिए यह सम्मेलन निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण रहा। भारत की सख्ती और डोनाल्ड ट्रंप के खुले समर्थन ने पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से तड़पने पर मजबूर कर दिया। सम्मेलन में पाकिस्तान को सीमित मंच मिलने और उनके प्रयासों की अनदेखी किए जाने से यह स्पष्ट हो गया कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने रुख में मजबूत है।
इस सम्मेलन ने यह भी दिखाया कि भारत और अमेरिका की साझेदारी अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर और अधिक प्रभावशाली हो गई है। ट्रंप द्वारा पीएम मोदी की तारीफ और पाकिस्तान को नसीहत देने का संदेश, क्षेत्रीय राजनीति और वैश्विक सुरक्षा समीकरणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने यह कदम केवल शांति और गाजा के स्थिरता के लिए नहीं उठाया, बल्कि यह पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश देने के लिए भी था कि आतंकवाद के मामलों में कोई समझौता स्वीकार्य नहीं है। इस स्थिति ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की भूमिका को और मजबूत किया।
सम्मेलन में भारत की नीति ने यह भी संकेत दिया कि भविष्य में किसी भी प्रकार की शांति वार्ता या अंतरराष्ट्रीय पहल में भारत सख्त रुख अपनाएगा और आतंकवाद के खिलाफ स्पष्ट संदेश जारी करेगा। विदेश राज्य मंत्री की भागीदारी ने यह संदेश और प्रभावशाली बनाया।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह सम्मेलन भारत के लिए कूटनीतिक जीत की तरह है। पाकिस्तान की ताज्जुब और चुप्पी ने यह दिखाया कि भारत का रुख अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रभावशाली और निर्णायक है। इस प्रकार, गाजा शांति सम्मेलन ने न केवल क्षेत्रीय शांति को प्रभावित किया बल्कि भारत की वैश्विक छवि को भी सुदृढ़ किया।
पीएम मोदी के न जाने के बावजूद, उनका संदेश सम्मेलन में स्पष्ट रूप से सामने आया। यह दिखाता है कि भारत की विदेश नीति अब सुदृढ़, रणनीतिक और आतंकवाद विरोधी दृष्टिकोण पर आधारित है। डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन ने इस संदेश को और अधिक विश्वसनीय और प्रभावशाली बना दिया।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस तरह की सख्ती का असर पाकिस्तान के लिए निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण है। यह न केवल उनके कूटनीतिक प्रयासों को कमजोर करेगा बल्कि भविष्य में उनके अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर भी असर डाल सकता है।