




भारतीय रुपया मंगलवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 9 पैसे गिरकर 88.77 पर पहुंच गया। यह गिरावट अमेरिकी डॉलर की वैश्विक मजबूती, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि, और विदेशी पूंजी की निकासी जैसे कई आर्थिक कारणों के चलते हुई है।
विदेशी मुद्रा व्यापारियों ने जानकारी दी है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भी यूएसडी-आईएनआर विनिमय दर में इस तेज़ गिरावट पर निगरानी रखे हुए है, क्योंकि विनिमय दर अब 88.80 के नजदीक पहुंच रही है।
रुपये की गिरावट के पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं:
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डॉलर की वैश्विक मजबूती:
डॉलर इंडेक्स, जो प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की ताकत को मापता है, 106.45 के स्तर पर पहुंच गया है। यह दर्शाता है कि दुनिया भर में निवेशक अमेरिकी डॉलर को सुरक्षित विकल्प मान रहे हैं। -
कच्चे तेल की ऊंची कीमतें:
ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत $91 प्रति बैरल के ऊपर बनी हुई है, जिससे भारत का आयात बिल बढ़ता है और डॉलर की मांग भी। -
एफपीआई की निकासी:
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) द्वारा भारतीय शेयर बाजार से बड़ी मात्रा में धन निकाला जा रहा है, जिससे रुपये पर दबाव बना है।
मंगलवार सुबह विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 88.68 के स्तर पर खुला, लेकिन कुछ ही देर में यह 88.77 पर फिसल गया। पिछले कारोबारी सत्र में रुपया 88.68 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।
इस गिरावट को देखते हुए कई निवेशक अब यह अनुमान लगा रहे हैं कि रुपया जल्द ही 89 का आंकड़ा भी पार कर सकता है, यदि आर्थिक हालात में सुधार नहीं होता।
मुद्रा बाज़ार से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि RBI इस समय प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं कर रहा है, लेकिन स्थिति पर बारीकी से नजर बनाए हुए है। अगर विनिमय दर 89 से ऊपर जाती है, तो RBI डॉलर बेचकर हस्तक्षेप कर सकता है ताकि रुपये की गिरावट को रोका जा सके।
आरबीआई के एक पूर्व अधिकारी के अनुसार:
“RBI अक्सर मुद्रा की अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए बाज़ार में हस्तक्षेप करता है, लेकिन इस बार वह रणनीतिक मौन बनाए हुए है।”
रुपये में गिरावट का असर शेयर बाजार पर भी देखा गया। बीएसई सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी दोनों ही शुरुआती कारोबार में हल्की गिरावट के साथ खुले। गिरावट का प्रमुख कारण विदेशी निवेशकों द्वारा पूंजी निकासी और रुपये की अस्थिरता है।
HDFC सिक्योरिटीज के फॉरेक्स विश्लेषक अमित कुमार के अनुसार:
“रुपये में यह गिरावट अस्थायी है लेकिन यदि अमेरिकी डॉलर की मजबूती और अंतरराष्ट्रीय तनाव बना रहता है तो यह गिरावट जारी रह सकती है।”
ICICI बैंक के वरिष्ठ रणनीतिकारों का मानना है कि:
“आगामी कुछ सप्ताह रुपये के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। घरेलू और वैश्विक दोनों स्तर पर स्थिरता की आवश्यकता है।”
दुनिया भर में चल रहे मध्य-पूर्व तनाव, फेडरल रिज़र्व की नीतियां, और यूरोपियन अर्थव्यवस्थाओं में सुस्ती जैसे कारणों से निवेशक डॉलर की ओर रुख कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप सभी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं दबाव में हैं।
भारतीय रुपया इस समय एक चुनौतीपूर्ण आर्थिक माहौल से गुजर रहा है। डॉलर की मजबूत स्थिति, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और विदेशी पूंजी की निकासी मिलकर रुपये पर दबाव डाल रही हैं।