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    सुप्रीम कोर्ट ने पूछा सवाल: पुलिस थानों के इंटेरोगेशन रूम में सीसीटीवी क्यों नहीं, राजस्थान सरकार से मांगा जवाब

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    सुप्रीम कोर्ट ने एक गंभीर सवाल उठाया है: पुलिस थानों के इंटेरोगेशन रूम में सीसीटीवी क्यों नहीं लगाया गया है? इस सवाल के साथ शीर्ष अदालत ने राजस्थान सरकार से लिखित जवाब मांगा है। अदालत की यह कार्रवाई प्रदेश में हिरासत में हुई मौतों और संबंधित मीडिया रिपोर्ट्स के स्वत: संज्ञान लेने के परिणामस्वरूप की गई है।

    मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है और राजस्थान सरकार से स्पष्ट जानकारी मांगी है कि क्या प्रदेश में हिरासत के दौरान किसी व्यक्ति की मौत के मामलों की जांच के लिए पर्याप्त निगरानी तंत्र मौजूद है। अदालत का तर्क है कि सीसीटीवी कैमरे पुलिस थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए जरूरी हैं।

    राजस्थान में हाल ही में कुछ मामलों में हिरासत में मौत की घटनाएं सामने आई थीं, जिनमें मीडिया रिपोर्ट्स ने आरोप लगाया कि पुलिस थानों में पर्याप्त निगरानी और सुरक्षा तंत्र नहीं है। इन घटनाओं ने नागरिकों में सुरक्षा और पुलिस पर भरोसे को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्वत: संज्ञान लेते हुए राजस्थान सरकार से जवाब मांगा है।

    अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इंटेरोगेशन रूम में सीसीटीवी न होने के कारण हिरासत में किसी भी तरह की अवैध गतिविधि, अत्याचार या अपमानजनक व्यवहार का पता लगाना कठिन हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह न केवल न्यायिक प्रणाली के लिए चुनौती है बल्कि मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिहाज से भी गंभीर मामला है।

    इससे पहले भी विभिन्न मानवाधिकार संगठनों और नागरिक समूहों ने राज्यों से पुलिस थानों में सीसीटीवी और मॉनिटरिंग सिस्टम लगाने की मांग की थी। उनका तर्क था कि यह कदम हिरासत में किसी भी अनुचित कार्रवाई को रोकने और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक होगा।

    सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से पूछा है कि क्या उन्होंने राज्य के सभी पुलिस थानों में इंटेरोगेशन रूम की सूची तैयार की है और कितने थानों में सीसीटीवी मौजूद हैं। अदालत ने यह भी पूछा कि अगर सीसीटीवी नहीं हैं तो उन्हें लगाने का क्या रोडमैप है और कब तक यह पूरा किया जाएगा।

    विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में कई राज्यों में पुलिस थानों के इंटेरोगेशन रूम में निगरानी की कमी रही है। राजस्थान में भी इस मुद्दे पर लंबे समय से चिंता व्यक्त की जा रही थी। अब सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई के बाद यह उम्मीद जताई जा रही है कि राज्य सरकार जल्दी प्रभावी कदम उठाएगी और नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देगी।

    सुप्रीम कोर्ट का यह नोटिस इस बात की भी पुष्टि करता है कि न्यायपालिका पुलिस पर जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय भूमिका निभा रही है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि हिरासत में मौत के मामलों की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए सीसीटीवी कैमरे जरूरी हैं।

    राजस्थान सरकार ने अब तक इस मामले में आधिकारिक बयान नहीं दिया है। उम्मीद जताई जा रही है कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट को लिखित जवाब में बताएगी कि उन्होंने सीसीटीवी लगवाने के लिए क्या कदम उठाए हैं और किस समयसीमा में यह कार्य पूरा होगा।

    कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अगर राजस्थान सरकार समय पर जवाब नहीं देती या कार्रवाई नहीं करती है, तो सुप्रीम कोर्ट अगले चरण में कड़ी कार्रवाई का निर्देश दे सकती है। इसमें अदालत राज्य के पुलिस थानों में निगरानी तंत्र को अनिवार्य करने का आदेश भी जारी कर सकती है।

    सुप्रीम कोर्ट की इस पहल का उद्देश्य सिर्फ कानून का पालन करवाना नहीं है, बल्कि हिरासत में लोगों के मानवाधिकारों की सुरक्षा और पुलिस प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करना भी है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर राजस्थान इस दिशा में सफल रहता है, तो अन्य राज्यों के लिए यह एक उदाहरण बन सकता है।

    अदालत ने इस मामले में स्पष्ट किया कि हर पुलिस थाने में सीसीटीवी की व्यवस्था केवल हिरासत में मौत के मामलों के लिए नहीं, बल्कि सामान्य नागरिक सुरक्षा, पुलिस कर्मियों की जिम्मेदारी और अपराध जांच की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए भी जरूरी है।

    इस मामले पर अब पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं। मानवाधिकार संगठनों, मीडिया और आम नागरिक इस कदम का समर्थन कर रहे हैं और उम्मीद जताते हैं कि जल्द ही राजस्थान के सभी पुलिस थानों में सीसीटीवी और मॉनिटरिंग सिस्टम लागू हो जाएंगे।

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