




तमिलनाडु विधानसभा ने मंगलवार को करूर में 27 सितंबर को हुई भगदड़ में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एक शोक प्रस्ताव पारित किया। यह दुखद घटना अभिनेता से नेता बने विजय की पार्टी तमिऴगा वेत्त्री कषगम (TVK) की एक रैली के दौरान हुई थी, जिसमें भारी भीड़ के कारण भगदड़ मच गई और 41 लोगों की मौत हो गई थी।
सदन की कार्यवाही की शुरुआत तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन द्वारा शोक प्रस्ताव पढ़ने से हुई। उन्होंने घटना को राज्य के लिए “गहरी क्षति” बताते हुए कहा कि यह केवल एक राजनीतिक सभा नहीं थी, बल्कि सामाजिक समावेश और जन संवाद की अभिव्यक्ति थी, जो दुर्भाग्यवश एक त्रासदी में बदल गई।
27 सितंबर को करूर में आयोजित विजय की रैली में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे। यह रैली उनकी पार्टी TVK के शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखी जा रही थी। लेकिन आयोजन स्थल पर भीड़ नियंत्रण की कमी, अपर्याप्त निकासी मार्ग, और असंगठित प्रबंधन के कारण रैली एक भयावह भगदड़ में तब्दील हो गई।
इस घटना में 41 लोगों की जान गई और कई दर्जन घायल हुए। इसके बाद मुख्यमंत्री ने ₹10 लाख की आर्थिक सहायता मृतकों के परिजनों को देने की घोषणा की थी। साथ ही इस पूरे मामले की जांच के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश अरुणा जगदीसन की अध्यक्षता में एक विशेष जांच आयोग भी गठित किया गया है।
मुख्यमंत्री स्टालिन ने शोक प्रस्ताव में कहा:
“यह घटना हम सभी के लिए एक चेतावनी है कि जब बड़े पैमाने पर जनसभाओं का आयोजन किया जाता है, तो सुरक्षा व्यवस्था सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।”
विधानसभा ने 2 मिनट का मौन रखकर मृतकों को श्रद्धांजलि दी। साथ ही साथ सदन ने पूर्व मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन, वरिष्ठ नेता के.आर. गणेशन, बी. रेड्डी सहित अन्य दिवंगत नेताओं के निधन पर भी शोक व्यक्त किया।
विपक्षी दलों जैसे AIADMK और PMK ने रैली के आयोजन में प्रशासनिक विफलताओं की ओर इशारा किया और सरकार से जवाबदेही की मांग की। AIADMK के एक वरिष्ठ नेता ने कहा:
“यह घटना लापरवाही का परिणाम है। यदि पूर्व में उचित व्यवस्था की गई होती, तो ये बहुमूल्य जानें नहीं जातीं।”
वहीं, TVK पार्टी ने इस घटना को “दुर्भाग्यपूर्ण” बताया और कहा कि पार्टी पूरी तरह पीड़ित परिवारों के साथ है और सरकार से निष्पक्ष जांच की मांग करती है।
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जांच आयोग को 3 महीने के भीतर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया है।
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आयोग देखेगा कि आयोजन की अनुमति कैसे दी गई थी और किस स्तर पर चूक हुई।
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आयोजन स्थल पर भीड़ नियंत्रण की वास्तविक तैयारी क्या थी?
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पुलिस, जिला प्रशासन और TVK की भूमिका की समीक्षा की जाएगी।
यह घटना केवल एक राजनीतिक दुर्घटना नहीं है, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन में असफलता का प्रत्यक्ष उदाहरण है। विशेषज्ञों का कहना है कि:
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जनसभाओं के लिए सामरिक योजना, आपातकालीन निकासी मार्ग, और स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
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भीड़ प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित स्वयंसेवक, डिजिटल निगरानी, और ऑन-स्पॉट मेडिकल टीम अनिवार्य होनी चाहिए।
तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित यह शोक प्रस्ताव केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि जन जीवन की सुरक्षा के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता का संकेत है। सरकार को न केवल जांच करवानी चाहिए, बल्कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त दिशानिर्देश और नीति निर्माण भी करना चाहिए।