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    चीन को पीछे छोड़ भारत बना वायु क्षेत्रीय दिग्गज: अमेरिका-रूस के बाद तीसरी सबसे ताकतवर वायुसेना

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    भारतीय उपमहाद्वीप की हवा में जब शक्ति की चर्चा हो, तो भारतीय वायुसेना (IAF) का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। हाल ही में प्रकाशित एक वैश्विक रैंकिंग रिपोर्ट में यह स्पष्ट हुआ है कि भारत की वायुसेना अब अमेरिका और रूस के बाद तीसरे नंबर पर आ गई है, और इस क्रम में उसने चीन को पीछे छोड़ दिया है। इस उपलब्धि ने यह दिखाया है कि भारत ने चुनौतियों और सीमाओं को पार करते हुए अपनी हवाई युद्ध क्षमता को नई ऊँचाइयों पर पहुंचाया है।

    यह नया रैंकिंग सर्वेक्षण World Directory of Modern Military Aircraft (WDMMA) द्वारा तैयार किया गया है, जिसमें वायुसेनाओं की आधुनिकता, उपकरण, परिचालन क्षमता और सामरिक पहुंच को ध्यान में रखकर उनकी स्थिति तय की जाती है। इस मूल्यांकन में भारत की वायुसेना को यह स्थान प्राप्त हुआ क्योंकि उसकी आधुनिक लड़ाकू विमानों की क्षमता, मर्यादित रखरखाव, प्रशिक्षण दक्षता और रणनीतिक विस्तार को अन्य देशों के मुकाबले बेहतर आंकल गया।

    दुनिया भर में सबसे व्यापक वायु सेनाएँ जहाँ संख्या में बेशुमार विमान होती हैं, वहीं सामरिक दृष्टि से सक्षम वायु शक्ति वे होती हैं जो प्रौद्योगिकी, तीव्रResponse समय, डेटा लिंक व आधुनिक मिसाइल प्रणालियों को जोड़कर कार्य करती हैं। इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो भारत की वायुसेना ने अपने बेड़े को लगातार अपग्रेड किया है और अपनी मारक शक्ति को विस्तार दिया है। प्रसिद्ध मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भारत के पास लगभग 2,200 से अधिक लड़ाकू एवं सहायक विमान हैं, जिससे वह वैश्विक एयर फोर्स सूची में मजबूत स्थिति बनाए हुए है।

    यदि चीन की वायुसेना संख्या में भारत से आगे है, फिर भी उसकी परिचालन क्षमता, विमान बनावट और रखरखाव एवं रणनीतिक सौदों के कारण उसे WDMMA रैंकिंग में भारत से नीचे रखा गया है। इस मीट्रिक ने यह बात स्पष्ट कर दी कि मात्र संख्या नहीं, बल्कि युद्ध निर्माण, कार्य क्षमता और सामरिक समायोजन ही किसी वायु सेना को बढ़त दिलाते हैं।

    इसके अतिरिक्त, भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन सिंदूर जैसी रणनीतिक अभियान में जो भूमिका निभाई, उसने अपनी ताकत को वास्तविक रूप से परखने का अवसर दिया। इस अभियान में वायुसेना ने दुश्मन ठिकानों पर सटीक हमले किए और अपनी तत्परता को विश्व पटल पर स्थापित किया। हालांकि, इस ऑपरेशन के दौरान कुछ चुनौतियाँ भी सामने आई थीं, उदाहरण के लिए विमान हानि और संचालन प्रभावशीलता के मुद्दे। लेकिन कुल मिलाकर यह अभियान भारतीय वायुसेना को सम्मान और विश्वास दोनों दिलाने वाला था।

    वायुसेना की वर्तमान संरचना, उन्नत विमानों का बेड़ा, युद्धक मिसाइल प्रणालियाँ, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताएँ और प्रशिक्षण प्रणालियाँ सभी मिलकर इस ताकत के स्तंभ बने हुए हैं। भारत ने विदेशी खरीद के साथ-साथ घरेलू विकास पर भी जोर दिया है। DRDO, HAL और अन्य उपक्रमों के सहयोग से स्वदेशी लड़ाकू विमान, मिसाइल और सेंसर सिस्टम विकसित किए गए हैं। इसने विदेशी निर्भरता को कम करते हुए रक्षा स्वावलंबन की दिशा में कदम बढ़ाया है।

    हालाँकि, इस उपलब्धि के बीच चुनौतियाँ भी हैं। अभी भारतीय वायुसेना अपनी पूर्ण-संकाय स्थिति 42 स्क्वाड्रनों तक पहुँचाने की योजना बना रही है, लेकिन वर्तमान में वह लगभग 31 स्क्वाड्रन के स्तर पर कार्यरत है। इस कमी को पूरा करने के लिए आगे की योजनाओं, बजट प्रावधानों और समयबद्धता पर ध्यान देना आवश्यक है।

    आगे की राह में, भारत की वायुसेना को शीर्ष स्थान बनाए रखने के लिए निरंतर निवेश, प्रौद्योगिकी नवाचार और युद्धक रणनीति को विकसित करना होगा। Super Sukhoi जैसे उन्नयन परियोजनाएँ, Tejas Mk II, future stealth UAVs / UCAVs एवं स्वदेशी मिसाइल प्रणालियाँ इस विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।

    यह सच है कि भौतिक रूप से अमेरिका और रूस अपनी वायु क्षमताओं और वैश्विक पहुंच के आधार पर अभी भी शिखर पर बने हुए हैं। लेकिन भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि हवाई प्रभुत्व की दिशा में अग्रसर राष्ट्र है। यदि विकास की गति बनी रही, तो आने वाले वर्षों में भारत अपनी वायुसेना को और अधिक मजबूत कर सकता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आकाश के नए आयाम छू सकता है।

    इस प्रकार, चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत ने वायु शक्ति की इस दौड़ में एक महत्वपूर्ण मुकाम हासिल कर लिया है। यह सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं बल्कि वह संकेत है कि भारत ने अपने वायुशक्ति निर्माण में आत्मविश्वास, दूरदृष्टि और प्रतिरोध क्षमता को प्रभावी रूप से आगे बढ़ाया है।

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