




बिहार विधानसभा चुनाव के लिए जेडीयू (JDU) ने अपनी पहली उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की बजाय सीधे मुख्यमंत्री आवास से उम्मीदवारों को लिफाफे सौंपे। पहली लिस्ट में स्पष्ट रूप से नीतीश कुमार की राजनीतिक और सामाजिक इंजीनियरिंग नजर आई। लिस्ट में मुख्य रूप से ‘लव कुश’ यानि कुर्मी-कोइरी, अति पिछड़ा वर्ग और पुराने सहयोगियों को प्राथमिकता दी गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नीतीश कुमार ने इस लिस्ट के माध्यम से अपने समर्थकों और भरोसेमंद नेताओं पर दांव लगाया है। पहली लिस्ट में कुल 5 वर्तमान मंत्री और लगभग 30 नए चेहरे शामिल हैं। यह स्पष्ट संकेत है कि नीतीश अपनी टीम में ताजगी और अनुभव का संतुलन बनाए रखना चाहते हैं।
हालांकि इस लिस्ट में एक महत्वपूर्ण खामियों का भी पता चला है। पहली बार लिस्ट में किसी मुस्लिम उम्मीदवार को शामिल नहीं किया गया है। यह कदम चुनावी रणनीति और सीट बंटवारे के दृष्टिकोण से अहम माना जा रहा है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, यह लिस्ट नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग का हिस्सा है, जिसमें कुर्मी, कोइरी और अति पिछड़ा वर्ग के वोटरों को जोड़ने पर जोर दिया गया है।
नीतीश कुमार के इस कदम को ट्रिपल K और D पर भरोसा जताने वाला माना जा रहा है। ट्रिपल K यानी कुर्मी, कोइरी और कछुवा जैसी जातियों के नेताओं और पुराने सहयोगियों पर भरोसा जताना, पार्टी की मजबूत नींव और चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। इसके साथ ही अति पिछड़ा वर्ग को प्राथमिकता देने का मकसद जातीय समीकरणों में संतुलन बनाए रखना है।
इस पहली लिस्ट के बाद राजनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या JDU मुस्लिम समुदाय के वोटरों को साध पाने में सक्षम होगी। पिछले चुनावों में मुस्लिम वोटरों का समर्थन NDA गठबंधन के लिए चुनौती रहा है, और इस बार उम्मीदवारों की सूची में मुस्लिम नाम नहीं होने से यह सवाल उठ रहा है कि गठबंधन की रणनीति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।
इसके अलावा, पहली लिस्ट में शामिल 30 नए चेहरे यह संकेत दे रहे हैं कि नीतीश कुमार युवा नेताओं को आगे लाकर पार्टी में नयापन और ऊर्जा लाना चाहते हैं। हालांकि, इस लिस्ट में पुरानी रणनीति और भरोसेमंद नेताओं की भी पहचान बनी हुई है, जिससे पार्टी संगठन और चुनाव प्रबंधन को मजबूत बनाए रखा गया है।
राजनीतिक विश्लेषक बता रहे हैं कि इस लिस्ट का उद्देश्य मुख्य रूप से बिहार के सामाजिक समीकरणों और जातीय गणना पर आधारित है। ‘लव कुश’ यानी कुर्मी और कोइरी समुदाय के नेताओं को प्रमुख स्थान देना यह दिखाता है कि नीतीश कुमार जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए चुनावी रणनीति को आकार दे रहे हैं। अति पिछड़ा वर्ग और पुराने सहयोगियों को शामिल करना पार्टी के अनुभव और स्थायित्व को बनाए रखने की रणनीति है।
नीतीश कुमार ने यह लिस्ट इस तरह से तैयार की है कि उम्मीदवारों में संतुलन हो, युवा और अनुभवी नेताओं का मिश्रण हो, और जातीय और सामाजिक समीकरण सही बनाए रखें। हालांकि मुस्लिम उम्मीदवारों की कमी राजनीतिक चर्चा का केंद्र बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि गठबंधन को मुस्लिम वोट बैंक के समर्थन के लिए अन्य रणनीतियों पर ध्यान देना होगा।
इस लिस्ट के माध्यम से यह भी स्पष्ट होता है कि नीतीश कुमार अपने भरोसेमंद नेताओं के साथ गठबंधन की स्थिरता और चुनावी तैयारी पर जोर दे रहे हैं। उनकी सोशल इंजीनियरिंग, ट्रिपल K और D पर भरोसा, और नए चेहरे लाने की रणनीति यह दर्शाती है कि पार्टी आने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है।
इस लिस्ट की घोषणा के बाद JDU कार्यकर्ताओं और समर्थकों में उत्साह देखा गया है। पार्टी ने बताया है कि सभी उम्मीदवारों को पूरी तरह तैयार किया जाएगा और आगामी चुनाव में संगठन और प्रचार में मजबूत भूमिका निभाई जाएगी। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि अन्य चरणों की लिस्ट जल्द ही जारी की जाएगी, जिसमें अधिक संतुलन और जातीय विविधता को ध्यान में रखा जाएगा।