




महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने हाल ही में आठ योजनाओं को बंद करने का फैसला लिया है। इनमें से कई योजनाएं शिंदे सरकार के कार्यकाल में शुरू की गई थीं। इस फैसले के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या राज्य की सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली योजना — ‘लाड़की बहिन योजना’ — पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं?
‘लाड़की बहिन योजना’ को महाराष्ट्र सरकार ने महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण के उद्देश्य से शुरू किया था। इस योजना के तहत 21 से 60 वर्ष की महिलाओं को मासिक आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इसे शिंदे सरकार की “गेमचेंजर योजना” कहा गया था, जिसने ग्रामीण और शहरी इलाकों में लाखों महिलाओं तक सीधा लाभ पहुंचाया।
हालांकि आठ योजनाओं को बंद किए जाने के बाद विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधा है। विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार की यह नीति महिलाओं और गरीबों के हितों के खिलाफ है। कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार वोट बैंक की राजनीति के चलते उन योजनाओं को बंद कर रही है, जो वास्तव में जनता तक राहत पहुंचा रही थीं।
इन सवालों के बीच मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने खुद सामने आकर स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कहा—
“लाड़की बहिन योजना महाराष्ट्र की बेटियों और बहनों के सशक्तिकरण का प्रतीक है। यह योजना किसी भी हालत में बंद नहीं होगी। कुछ अन्य योजनाओं की समीक्षा की जा रही है ताकि राज्य का आर्थिक संतुलन बना रहे, लेकिन महिलाओं के अधिकारों और सम्मान से जुड़ी किसी योजना को कोई खतरा नहीं है।”
शिंदे ने यह भी जोड़ा कि कुछ योजनाओं को बंद करने का मतलब यह नहीं कि सरकार महिलाओं के मुद्दों से पीछे हट रही है। बल्कि, सरकार का प्रयास है कि योजनाएं प्रभावी और पारदर्शी तरीके से चलें। उन्होंने कहा कि ‘लाड़की बहिन योजना’ ने लाखों परिवारों के जीवन में सुधार लाया है और इसे और मजबूत बनाया जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘लाड़की बहिन योजना’ को बंद करना या कमजोर करना, शिंदे सरकार के लिए राजनीतिक रूप से आत्मघाती कदम होगा। क्योंकि इस योजना से ग्रामीण इलाकों की बड़ी आबादी, विशेषकर महिला मतदाता वर्ग, सीधे तौर पर जुड़ा है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री ने स्वयं आगे बढ़कर इस योजना की सुरक्षा और निरंतरता का आश्वासन दिया।
वहीं, बीजेपी के नेताओं ने भी शिंदे के रुख का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि सरकार वित्तीय सुधारों के तहत योजनाओं की समीक्षा कर रही है ताकि राज्य की आर्थिक स्थिति संतुलित रहे। परंतु ‘लाड़की बहिन योजना’ जैसी जनकल्याणकारी योजनाएं पूरी मजबूती से जारी रहेंगी।
दूसरी ओर, विपक्षी दलों का कहना है कि यह “योजनाएं बंद करने का सिलसिला” जनता के भरोसे के साथ खिलवाड़ है। शिवसेना (उद्धव गुट) के नेताओं ने कहा कि शिंदे सरकार महिलाओं के नाम पर राजनीति कर रही है, जबकि वास्तविक लाभार्थियों तक योजनाओं का असर घटता जा रहा है।
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि महाराष्ट्र में बढ़ते खर्च और घटते राजस्व के कारण सरकार को कई गैर-जरूरी योजनाओं को रोकने का निर्णय लेना पड़ा। मगर ‘लाड़की बहिन योजना’ को रोकना न तो राजनीतिक रूप से संभव है और न ही सामाजिक रूप से स्वीकार्य। यह योजना राज्य के बजट में महत्वपूर्ण स्थान रखती है और महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता में बड़ी भूमिका निभा रही है।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, आठ योजनाएं जिन पर रोक लगी है, उनमें ज्यादातर वे हैं जिनकी प्रभावशीलता या लाभार्थी संख्या सीमित थी। इनमें कृषि, शहरी विकास और कल्याण विभाग की कुछ योजनाएं शामिल हैं। सरकार का कहना है कि समीक्षा के बाद जो योजनाएं जनता के लिए आवश्यक होंगी, उन्हें दोबारा लागू करने पर विचार किया जाएगा।
मुख्यमंत्री शिंदे ने मीडिया से बातचीत में कहा—
“मैं लाड़की बहिनों से वादा करता हूं कि यह योजना चलेगी, और पहले से भी बेहतर तरीके से चलेगी। यह मेरी बहनों के सम्मान की बात है, और मैं उनके अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हूं।”
शिंदे का यह बयान न केवल महिलाओं में भरोसा जगाने वाला है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी यह संकेत देता है कि सरकार लोकलुभावन नीतियों को लेकर संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश कर रही है।
महाराष्ट्र में आने वाले महीनों में जब चुनावी माहौल गरमाएगा, तब ‘लाड़की बहिन योजना’ एक बार फिर राजनीतिक विमर्श का केंद्र बनने वाली है। एक ओर जहां विपक्ष इसे “राजनीतिक स्टंट” कह रहा है, वहीं सरकार इसे “महिला सम्मान की क्रांति” बताने में जुटी है।