




सुप्रीम कोर्ट ने जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई 29 अक्टूबर तक के लिए टाल दी है। यह याचिका उनकी पत्नी गितांजलि ज. अंगमो द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने वांगचुक की हिरासत को “गैरकानूनी और मनमाना” बताया है।
मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने यह निर्णय तब लिया जब याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि वे याचिका में कुछ संशोधन करना चाहती हैं। इस पर कोर्ट ने उन्हें संशोधन की अनुमति दी और अगली सुनवाई की तारीख 29 अक्टूबर निर्धारित की।
गितांजलि अंगमो ने अपनी याचिका में दावा किया है कि उनके पति सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत गैरकानूनी तरीके से हिरासत में लिया गया है। याचिका में कहा गया है कि उन्हें न तो गिरफ्तारी का उचित कारण बताया गया और न ही वकीलों या परिवार से मिलने की अनुमति दी गई।
उन्होंने आरोप लगाया कि यह हिरासत राजनीतिक और वैचारिक दबाव के चलते की गई है, क्योंकि वांगचुक हाल ही में लद्दाख में पर्यावरण और संसाधनों की सुरक्षा को लेकर जनता को जागरूक कर रहे थे।
15 अक्टूबर को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि याचिकाकर्ता को याचिका में बदलाव करने का अधिकार है। इसके तहत वे हिरासत के आधारों को भी विस्तार से चुनौती देना चाहती हैं।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सोनम वांगचुक अपनी हिरासत से संबंधित टिप्पणियाँ और नोट्स अपनी पत्नी के साथ साझा कर सकते हैं, जिससे याचिका को अधिक मजबूत तरीके से प्रस्तुत किया जा सके।
सोनम वांगचुक लद्दाख के प्रसिद्ध शिक्षाविद, पर्यावरण कार्यकर्ता और आविष्कारक हैं। वे हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स के संस्थापक हैं और वर्ष 2018 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं।
हाल ही में उन्होंने लद्दाख में केंद्र सरकार से छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक संरक्षण की मांग को लेकर एक जनांदोलन चलाया था, जिसमें हज़ारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतरे थे।
सितंबर के आखिरी सप्ताह में लद्दाख में हुए एक जनविरोध के दौरान हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें कुछ पुलिसकर्मियों और नागरिकों के घायल होने की खबरें आईं। इस हिंसा के बाद प्रशासन ने दावा किया कि वांगचुक द्वारा दिए गए भाषण और आह्वान भड़काऊ थे, और इसके चलते उनकी गिरफ्तारी की गई।
उन्हें लद्दाख से जोधपुर सेंट्रल जेल भेजा गया और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत निरुद्ध कर दिया गया।
गितांजलि अंगमो की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि याचिका में कुछ बिंदुओं को शामिल किया जाना आवश्यक है, खासकर उन तथ्यों को जो हिरासत के कानूनी और तार्किक पक्ष पर सवाल खड़े करते हैं।
कोर्ट ने इस मांग को मानते हुए उन्हें याचिका में संशोधन का समय दिया और कहा कि अगली सुनवाई में संशोधित याचिका पर बहस की जाएगी।
सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के बाद देशभर में कई सामाजिक, शैक्षिक और पर्यावरण से जुड़े संगठनों ने इसका विरोध किया है। लद्दाख, दिल्ली, देहरादून और मुंबई जैसे शहरों में उनके समर्थन में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुए हैं।
“हम केवल लद्दाख के लिए न्याय नहीं मांग रहे, बल्कि देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा भी कर रहे हैं,” — यह बयान एक प्रदर्शनकारी समूह की ओर से जारी किया गया।
अब अगली सुनवाई 29 अक्टूबर 2025 को होनी है, जिसमें कोर्ट यह देखेगा कि:
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क्या वांगचुक की हिरासत संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है?
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क्या राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने के पीछे कोई ठोस कारण थे?
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क्या वांगचुक को उचित कानूनी सहायता और प्रक्रिया प्रदान की गई?
अगर कोर्ट को लगता है कि हिरासत अवैध है या वैधानिक प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया, तो वह रिहाई का आदेश दे सकता है। अन्यथा, केस आगे बढ़ेगा और सरकार से जवाब मांगा जा सकता है।
सोनम वांगचुक जैसे प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता की गिरफ्तारी और अब कोर्ट में चल रही प्रक्रिया यह दर्शाती है कि नागरिक स्वतंत्रताओं और संवैधानिक प्रक्रियाओं के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखना कितना आवश्यक है।