




सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक बार फिर CJI जूता केस चर्चा का केंद्र बना। इस मामले में जस्टिस सूर्यकांत की बेंच के सामने आरोपी वकील के खिलाफ अवमानना कार्यवाही को लेकर मुद्दा उठाया गया। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले पर बेंच को जानकारी दी और वकील के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की बात रखी।
इस मामले का मुख्य केंद्र बिंदु वह घटना है जिसमें आरोपी वकील ने सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एन.वी. रमना (CJI) के खिलाफ जूता फेंकने की कोशिश की थी। इस घटना ने न केवल अदालत की गरिमा को चुनौती दी, बल्कि पूरे देश में कानूनी व्यवस्था और न्यायपालिका की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
गुरुवार की सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने कहा कि अदालत के सम्मान और न्यायिक प्रणाली की सुरक्षा सर्वोपरि है। बेंच ने स्पष्ट किया कि किसी भी तरह का अपमान या अवमानना कार्यवाही को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी जोड़ा कि ऐसे मामलों में त्वरित और कड़ा कार्रवाई होना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे प्रयासों को रोकने का संदेश मिले।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने इस अवसर पर कहा कि वकील पेशे का सम्मान बनाए रखना चाहिए और अदालत के भीतर अनुशासन बनाए रखना अनिवार्य है। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि इस घटना के लिए आरोपी वकील के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए ताकि पूरे वकीली समुदाय को एक संदेश मिले।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस मामले में अपनी दलीलें पेश करते हुए कहा कि अदालत की गरिमा को बनाए रखना हर वकील का कर्तव्य है, और जो लोग इसका उल्लंघन करते हैं, उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि केवल चेतावनी या नोटिस पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि मामले की गंभीरता को देखते हुए कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
इस सुनवाई के दौरान बेंच ने यह भी नोट किया कि ऐसे घटनाओं का राजनीतिकरण या प्रचार उद्देश्य से इस्तेमाल करना न्यायिक प्रक्रिया के लिए हानिकारक हो सकता है। जजों ने स्पष्ट किया कि अदालत का सम्मान सर्वोच्च है और किसी भी प्रकार के व्यक्तिगत या राजनीतिक हित के लिए इसे कमजोर नहीं किया जा सकता।
वकील के खिलाफ अवमानना कार्यवाही पर चर्चा के दौरान कई पहलुओं पर जोर दिया गया। इनमें अदालत की सुरक्षा, वकील पेशे की गरिमा, न्यायिक प्रणाली की स्वतंत्रता और भविष्य में ऐसे मामलों को रोकने की रणनीति शामिल थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला केवल आरोपी वकील तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरा कानूनी पेशा और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा इससे प्रभावित हो सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की यह कार्रवाई भारतीय न्यायपालिका के लिए मिसाल बनेगी। अदालत ने स्पष्ट संदेश दिया है कि न्यायपालिका के खिलाफ किसी भी तरह का अपमान स्वीकार्य नहीं है और अवमानना के मामलों में तत्काल और कड़ा कदम उठाया जाएगा।
इस घटना के बाद वकील समुदाय में भी चर्चा शुरू हो गई है। अधिकांश वरिष्ठ वकीलों ने इस कदम का समर्थन किया और कहा कि पेशे की गरिमा बनाए रखना वकीलों का नैतिक और कानूनी कर्तव्य है। वहीं, कुछ ने यह सुझाव दिया कि वकीलों के प्रशिक्षण और अनुशासन को और मजबूत किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे विवादों की संभावना न्यूनतम रहे।
गुरुवार की सुनवाई के बाद बेंच ने कहा कि अदालत इस मामले में सभी कानूनी विकल्पों पर विचार कर रही है और जल्दी ही आरोपी वकील के खिलाफ अवमानना कार्यवाही का फैसला लिया जाएगा। यह फैसला न केवल इस घटना पर अंकुश लगाएगा, बल्कि भविष्य में अदालत में अनुशासन बनाए रखने के लिए भी मार्गदर्शन करेगा।
CJI जूता केस भारतीय न्यायपालिका के लिए एक चेतावनी और उदाहरण दोनों है। यह घटना बताती है कि अदालतों की सुरक्षा, न्यायिक प्रक्रिया की स्वतंत्रता और पेशेवर अनुशासन पर लगातार ध्यान देने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट की इस सुनवाई ने यह स्पष्ट कर दिया कि कानून के तहत किसी भी प्रकार का अपमान गंभीर अपराध है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।
सामान्य जनता और मीडिया ने भी इस मामले को व्यापक रूप से कवर किया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इस घटना और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया को लेकर चर्चा तेज रही। विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह मामले को गंभीरता से लिया है, वह न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता की पुष्टि करता है।