




मुंबई। मुंबई के बाहरी हिस्से में स्थित दहिसर टोल नाका एक बार फिर चर्चा में है। कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने दहिसर टोल नाके को दो किलोमीटर आगे शिफ्ट करने का ऐलान किया था। यह घोषणा स्थानीय निवासियों और यात्रियों के लिए एक बड़ी राहत की खबर के रूप में आई थी, क्योंकि दहिसर टोल नाका पर लंबे समय से ट्रैफिक जाम और प्रदूषण की समस्या बनी हुई थी। लेकिन अब यह मामला फिर से अटक गया है और सरकार के लिए सिरदर्द बन गया है।
दरअसल, वर्सोवा ब्रिज के पास जिस स्थान पर टोल प्लाजा को शिफ्ट किया जाना था, वहां के स्थानीय व्यापारियों और निवासियों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि नए टोल स्थान से उनके कारोबार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और ट्रैफिक का दबाव बढ़ जाएगा। इसके चलते अब यह काम ठप पड़ा है और नई लोकेशन पर निर्माण कार्य भी रोक दिया गया है।
स्थानीय निवासियों और नागरिक संगठनों का कहना है कि अगर टोल को शिफ्ट करना इतना मुश्किल है तो सरकार को इसे स्थायी रूप से बंद कर देना चाहिए। पिछले कई वर्षों से दहिसर टोल नाका मुंबई की ट्रैफिक व्यवस्था में एक प्रमुख बाधा बना हुआ है। रोजाना लाखों वाहनों को यहां लंबी कतारों में फंसना पड़ता है। इसके अलावा, मुंबई में प्रवेश करने वाले यात्रियों को अतिरिक्त आर्थिक बोझ भी झेलना पड़ता है।
एकनाथ शिंदे द्वारा शिफ्टिंग की घोषणा के बाद लोगों में उम्मीद जगी थी कि अब इस समस्या से छुटकारा मिलेगा। लेकिन अब जब यह प्रक्रिया ठप हो गई है, तो लोगों में नाराज़गी बढ़ने लगी है। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर आवाज़ें उठ रही हैं। मुंबई निवासी लगातार यह सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर कब तक यह टोल नाका उन्हें परेशानी में डाले रखेगा।
सूत्रों के मुताबिक, अब यह मामला उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस तक पहुंच गया है। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री स्तर पर इस पर चर्चा चल रही है और प्रशासन को इस विषय पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है। सरकार के सामने अब दो विकल्प हैं—या तो टोल को किसी अन्य उपयुक्त स्थान पर शिफ्ट किया जाए, या फिर इसे स्थायी रूप से बंद कर दिया जाए।
वहीं, टोल संचालक कंपनी का कहना है कि उन्होंने पहले ही शिफ्टिंग के लिए आवश्यक तकनीकी तैयारियां शुरू कर दी थीं, लेकिन स्थानीय विरोध के कारण काम रोकना पड़ा। कंपनी का तर्क है कि टोल बंद करना आर्थिक रूप से नुकसानदायक होगा क्योंकि अभी भी कई सालों का अनुबंध बाकी है। दूसरी ओर, नागरिक संगठन इसे निजी कंपनी के फायदे का मामला बताते हुए सरकार से जनहित को प्राथमिकता देने की मांग कर रहे हैं।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) और कुछ स्थानीय संगठनों ने भी इस मामले में खुलकर बयान दिया है। मनसे नेताओं ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने जल्द निर्णय नहीं लिया तो वे आंदोलन करेंगे। संगठन का कहना है कि टोल नाके के कारण आम जनता को हर दिन मानसिक और आर्थिक परेशानी झेलनी पड़ती है, जबकि सड़क की स्थिति में कोई बड़ा सुधार नहीं दिखता।
वर्सोवा ब्रिज के आसपास रहने वाले व्यापारियों का कहना है कि नए टोल स्थान के कारण ट्रक और भारी वाहनों का दबाव उनके इलाके में बढ़ जाएगा, जिससे न केवल ट्रैफिक जाम बल्कि दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ेगा। उनका तर्क है कि सरकार ने यह निर्णय बिना पर्याप्त स्थानीय परामर्श के लिया है।
इस बीच, मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) और सार्वजनिक निर्माण विभाग (PWD) के बीच भी इस मुद्दे पर मतभेद देखने को मिल रहे हैं। एमएमआरडीए के कुछ अधिकारियों का मानना है कि शिफ्टिंग की प्रक्रिया को थोड़ा और समय दिया जाना चाहिए ताकि स्थानीय स्तर पर समाधान निकाला जा सके। जबकि कुछ अधिकारी अब इसे स्थायी रूप से बंद करने के विकल्प पर विचार करने की बात कर रहे हैं।
महाराष्ट्र की राजनीति में यह मुद्दा अब गरमाने लगा है। विपक्षी दलों ने राज्य सरकार पर जनता से झूठे वादे करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस और एनसीपी नेताओं ने कहा है कि शिंदे सरकार केवल घोषणाएं करती है, लेकिन ज़मीन पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती। वहीं भाजपा और शिवसेना (शिंदे गुट) का कहना है कि सरकार जनता की सुविधा को ध्यान में रखते हुए फैसला लेगी और जल्द ही इस पर ठोस ऐलान किया जाएगा।
दहिसर टोल नाके का विवाद अब केवल एक प्रशासनिक नहीं बल्कि राजनीतिक मुद्दा बन गया है। एक ओर स्थानीय जनता इसका स्थायी समाधान चाहती है, वहीं दूसरी ओर व्यापारिक हित और अनुबंध की जटिलताएं सरकार के लिए निर्णय लेना मुश्किल बना रही हैं।
अब सबकी निगाहें मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर हैं कि वे इस मुद्दे को कैसे सुलझाते हैं। अगर आने वाले दिनों में टोल शिफ्ट नहीं हुआ, तो दहिसर टोल को स्थायी रूप से बंद करने की मांग और तेज हो सकती है।