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    विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रखीं दुनिया के सामने 7 बड़ी चिंताएं, कहा – ‘यूएन चार्टर की आत्मा है शांति स्थापना’

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    दिल्ली में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के सैन्य योगदान देने वाले देशों के सम्मेलन में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने विश्व समुदाय के सामने शांति और सुरक्षा से जुड़ी सात प्रमुख चिंताएं रखीं। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि “शांति स्थापना” (Peacekeeping) की अवधारणा आज के समय में पहले से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण और जटिल हो गई है। विश्व के कई हिस्सों में युद्ध और संघर्ष लगातार बढ़ रहे हैं, और इसके परिणामस्वरूप मानवीय संकट गहराता जा रहा है।

    जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर (UN Charter) का हवाला देते हुए कहा कि इसका मूल उद्देश्य शांति, सुरक्षा और सहयोग को बढ़ावा देना था। लेकिन आज विश्व जिस दिशा में बढ़ रहा है, वह इस चार्टर की भावना से विपरीत दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि यूएन चार्टर सिर्फ एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि मानवता के लिए एक वचन है—एक ऐसा संकल्प जो विश्व को युद्ध से नहीं, बल्कि संवाद से आगे बढ़ाने की प्रेरणा देता है।

    विदेश मंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि युद्ध और हिंसा से कभी स्थायी समाधान नहीं निकलता। “हर संघर्ष, चाहे वह राजनीतिक हो या सैन्य, अंततः बातचीत की मेज पर ही खत्म होता है,” उन्होंने कहा। जयशंकर ने यह भी जोड़ा कि दुनिया के कई हिस्सों में शांति मिशन को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है, क्योंकि पारंपरिक युद्ध अब साइबर, आर्थिक और सूचनात्मक स्तर पर भी फैल चुका है।

    उन्होंने बताया कि भारत न केवल संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सबसे अधिक योगदान देने वाले देशों में से एक है, बल्कि शांति स्थापना की सोच में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है। भारत ने दशकों से यूएन मिशनों में अपने सैनिकों, पुलिसकर्मियों और नागरिक विशेषज्ञों के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आज भी भारत की सेना दुनिया भर में कई शांति अभियानों में तैनात है, जहां वे स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा, पुनर्वास और स्थिरता सुनिश्चित करने में भूमिका निभा रहे हैं।

    जयशंकर ने अपने संबोधन में विश्व के सामने सात प्रमुख चिंताएं रखीं, जिनमें वैश्विक असमानता, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, साइबर अपराध, खाद्य सुरक्षा, मानवीय संकट और बहुपक्षीय संस्थाओं की निष्क्रियता प्रमुख थीं। उन्होंने कहा कि इन सभी मुद्दों का समाधान केवल युद्ध से नहीं, बल्कि साझा संवाद और समन्वित प्रयासों से ही संभव है।

    उन्होंने कहा, “आज जब तकनीक ने दुनिया को जोड़ दिया है, तब मानवता को विभाजित करने वाले तत्व भी तेज़ी से बढ़े हैं। हमें यह समझना होगा कि सच्ची शांति केवल हथियारों से नहीं, बल्कि न्याय, समानता और विकास से आती है।”

    जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर भी सवाल उठाए और कहा कि यूएन को 21वीं सदी की वास्तविकताओं के अनुरूप खुद को ढालना होगा। उन्होंने बताया कि कई बार संयुक्त राष्ट्र की नीतियाँ और निर्णय जमीनी सच्चाई से मेल नहीं खाते, जिससे शांति अभियानों की प्रभावशीलता पर असर पड़ता है।

    भारत ने हमेशा बहुपक्षवाद (Multilateralism) की वकालत की है, और जयशंकर ने इसे फिर से दोहराते हुए कहा कि “विश्व में स्थायी शांति तभी संभव है जब सभी देश समान भागीदार बनें, न कि कोई एक शक्ति अपनी शर्तें थोपे।”

    सम्मेलन में उपस्थित कई देशों के प्रतिनिधियों ने भारत की पहल की सराहना की और माना कि आज के बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत की सोच और दृष्टिकोण अत्यंत महत्वपूर्ण है। जयशंकर ने कहा कि भारत का उद्देश्य किसी पर दबाव बनाना नहीं, बल्कि विश्व में सहयोग और विश्वास की नई संस्कृति को जन्म देना है।

    विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि भारत की विदेश नीति हमेशा “वसुधैव कुटुंबकम्” के सिद्धांत पर आधारित रही है, जो मानवता को एक परिवार के रूप में देखती है। यही कारण है कि भारत ने यूएन मिशनों में सिर्फ सैनिक नहीं भेजे, बल्कि अस्पताल, खाद्य सहायता और शिक्षा जैसे मानवीय प्रयासों के माध्यम से शांति की वास्तविक भावना को जीवंत किया।

    जयशंकर के संबोधन का समापन एक गूंजते संदेश के साथ हुआ — “युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। समाधान संवाद में है, सहयोग में है, और उस मानवीय भावना में है जो हमें एक साथ जोड़ती है।”

    उनका यह वक्तव्य न केवल भारत की विदेश नीति का परिचायक था, बल्कि एक ऐसे राष्ट्र की आवाज़ भी था जो शांति की राह पर चलते हुए दुनिया को नई दिशा देने का संकल्प रखता है।

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