




भारत में रोजगार की स्थिति पर हाल ही में जारी MOSPI की PLFS (Periodic Labour Force Survey) रिपोर्ट ने एक बार फिर महिला बेरोजगारी के बढ़ते संकट को उजागर किया है। रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के लोगों की बेरोजगारी दर मामूली बढ़कर 5.2% हो गई। हालांकि यह कुल बेरोजगारी दर का आंकड़ा चिंताजनक है, लेकिन महिलाओं के लिए स्थिति और भी गंभीर है। महिलाओं की बेरोजगारी दर 9.3% तक पहुंच गई है, जो पिछले तीन महीनों का उच्चतम स्तर है।
रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की बेरोजगारी दर लगातार उच्च बनी हुई है। यह स्पष्ट संकेत देता है कि महिला रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव वाले सामाजिक, आर्थिक और संरचनात्मक कारण अभी भी मौजूद हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि महिला रोजगार दर में वृद्धि केवल रोजगार की उपलब्धता की कमी नहीं है, बल्कि शिक्षा, कौशल, समाजिक प्रतिबंध और रोजगार क्षेत्रों में असमान अवसर जैसे मुद्दों का भी परिणाम है।
MOSPI की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिला बेरोजगारी में अंतर देखा गया है। शहरी क्षेत्रों में महिलाओं के लिए रोजगार की संभावनाएं अधिक हैं, लेकिन ग्रामीण महिलाओं को अब भी कृषि और असंगठित क्षेत्र में सीमित अवसर मिल रहे हैं। इसके अलावा, कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के प्रभाव ने महिलाओं की रोजगार भागीदारी पर दीर्घकालिक असर डाला है। कई महिलाएं घरेलू जिम्मेदारियों और शिक्षा या कौशल प्रशिक्षण के अभाव के कारण नौकरी से दूर हो गई हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि महिला बेरोजगारी का यह बढ़ता आंकड़ा देश की आर्थिक विकास दर और सामाजिक प्रगति के लिए चिंता का विषय है। महिलाओं की आर्थिक भागीदारी न केवल घरेलू आय बढ़ाती है, बल्कि राष्ट्रीय उत्पादन और जीडीपी में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है। PLFS रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि महिलाओं के लिए स्थायी और व्यवस्थित रोजगार सृजन पर ध्यान देने की जरूरत है।
रिपोर्ट में यह भी संकेत दिया गया है कि साक्षरता, कौशल विकास और डिजिटल साक्षरता महिलाओं को रोजगार के लिए तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। तकनीकी और सेवा क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए नीतिगत सुधार आवश्यक हैं। इसके साथ ही, महिला उद्यमिता और स्वरोजगार योजनाओं को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है, ताकि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का अवसर मिल सके।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले वर्ष महिला रोजगार दर में कुछ सुधार हुआ था, लेकिन सितंबर के आंकड़े इस प्रगति को रोकते नजर आते हैं। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो देश में महिला बेरोजगारी की दर लंबे समय तक उच्च बनी रह सकती है, जो सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को बढ़ावा देगी।
सभी वर्गों के विशेषज्ञ और नीति निर्माता इस स्थिति को लेकर चिंतित हैं। उनका मानना है कि महिला रोजगार बढ़ाने के लिए शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण, रोजगार सृजन और सामाजिक जागरूकता का संयुक्त प्रयास जरूरी है। महिलाओं को समान अवसर देने से न केवल उनकी व्यक्तिगत आर्थिक स्थिति सुधरेगी, बल्कि परिवार और समुदाय की समग्र समृद्धि भी बढ़ेगी।
कुल मिलाकर, MOSPI की PLFS रिपोर्ट ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि भारत में महिला बेरोजगारी अभी भी गंभीर चिंता का विषय है। 9.3% की दर पिछले तीन महीनों में उच्चतम है, और इसे कम करने के लिए तात्कालिक नीति और व्यावहारिक कदम उठाना आवश्यक है। महिला रोजगार में सुधार न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।