




देश की राजनीति एक बार फिर विदेश नीति को लेकर गर्मा गई है। कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा है कि भारत की विदेश नीति अब इतनी प्रभावित हो चुकी है कि उसकी दिशा और निर्णय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तय कर रहे हैं।
दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक बयान में दावा किया था कि भारत बहुत जल्द रूस से तेल की खरीद बंद करने जा रहा है। इस बयान ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी है। ट्रंप के इस दावे को लेकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा है कि अगर भारत की ऊर्जा नीति का फैसला अब अमेरिका करेगा, तो फिर यह देश की ‘संपूर्ण स्वतंत्र विदेश नीति’ पर बड़ा प्रश्नचिह्न है।
जयराम रमेश ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर व्यंग्यात्मक लहजे में लिखा—
“यहां से तारीफ, वहां से टैरिफ… प्रधानमंत्री जी अब बताएं, भारत की नीति किसके इशारों पर चल रही है? रूस से तेल खरीद बंद करने की घोषणा भारत नहीं बल्कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप कर रहे हैं। क्या हमारी विदेश नीति अब व्हाइट हाउस से तय होगी?”
उनके इस ट्वीट ने सोशल मीडिया पर राजनीतिक हलचल तेज कर दी है। कई विपक्षी नेताओं ने रमेश के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि केंद्र सरकार अमेरिका की “ऊर्जा राजनीति” के दबाव में काम कर रही है।
गौरतलब है कि भारत रूस से सस्ते दामों पर कच्चा तेल खरीद रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए, तब भारत ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए रूस से तेल आयात जारी रखा। यह निर्णय भारत की ‘राष्ट्रीय हित आधारित नीति’ का हिस्सा बताया गया था। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कई मौकों पर यह कहा था कि भारत अपने हितों के अनुरूप फैसले लेता है, चाहे वह रूस से तेल खरीदना हो या किसी अन्य देश से ऊर्जा सहयोग करना।
हालांकि, ट्रंप के बयान ने इस नीति पर एक नई बहस छेड़ दी है। कांग्रेस का कहना है कि अगर भारत ने वास्तव में रूस से तेल खरीद बंद करने का फैसला किया है, तो इसे देश की जनता के सामने पारदर्शी तरीके से घोषित किया जाना चाहिए, न कि किसी विदेशी नेता के माध्यम से।
जयराम रमेश ने अपने बयान में यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार विदेश नीति को “इवेंट मैनेजमेंट” में बदल चुकी है। उन्होंने कहा —
“मोदी सरकार विदेश यात्राओं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रचार करने में तो माहिर है, लेकिन जब असल कूटनीतिक फैसलों की बात आती है, तो वह विदेशी दबाव के आगे झुक जाती है। ट्रंप का बयान इसका ताजा उदाहरण है।”
उन्होंने यह भी तंज कसा कि सरकार अमेरिका से “तारीफ” पाने में व्यस्त है, जबकि देश को “टैरिफ” और आयात दबाव झेलना पड़ रहा है। “यहां से तारीफ और वहां से टैरिफ” का उनका यह जुमला सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो गया है।
बीजेपी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कांग्रेस जानबूझकर देश की विदेश नीति को बदनाम करने की कोशिश कर रही है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि भारत एक ‘स्वतंत्र वैश्विक शक्ति’ है और उसके फैसले किसी भी बाहरी दबाव में नहीं लिए जाते। बीजेपी नेताओं ने कहा कि कांग्रेस के बयान से देश की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।
कूटनीति विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप के बयान को शाब्दिक रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। उनका यह बयान अमेरिकी चुनावी राजनीति के परिप्रेक्ष्य में था, जिसमें वह बाइडन प्रशासन की विदेश नीति पर निशाना साध रहे थे। ऐसे में, इसे भारत की वास्तविक नीति से जोड़ना सही नहीं होगा।
हालांकि, इस विवाद ने यह जरूर साफ कर दिया है कि ऊर्जा सुरक्षा और विदेश नीति आज भारत की राजनीतिक बहस के केंद्र में आ चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपने फैसलों में पारदर्शिता और संवाद बनाए रखना चाहिए ताकि ऐसी बाहरी टिप्पणियां राजनीतिक विवाद का रूप न लें।
रूस के साथ भारत के ऊर्जा संबंध पिछले दो वर्षों में काफी गहरे हुए हैं। भारत ने 2022 के बाद रूस से आयात बढ़ाकर अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का लगभग 25% हिस्सा वहीं से पूरा किया। इससे न केवल घरेलू ईंधन कीमतों में राहत मिली बल्कि विदेशी मुद्रा भंडार पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
इस बीच, जयराम रमेश के बयान को कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का भी समर्थन मिला है। पार्टी के कुछ नेताओं ने कहा कि विदेश नीति को केवल राजनैतिक छवि निर्माण के लिए नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान और आर्थिक स्थिरता के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप का बयान चाहे प्रचार रणनीति का हिस्सा रहा हो, लेकिन भारत में इसके राजनीतिक निहितार्थ गहरे हैं। कांग्रेस इसे मोदी सरकार की “स्वतंत्र विदेश नीति” पर सवाल उठाने के लिए एक अवसर के रूप में देख रही है।
अंततः, यह पूरा प्रकरण यह दिखाता है कि वैश्विक मंचों पर भारत की हर गतिविधि अब केवल कूटनीतिक नहीं बल्कि घरेलू राजनीति से भी गहराई से जुड़ चुकी है। जहां एक ओर सरकार इसे भारत की वैश्विक ताकत बनने की दिशा में कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे विदेशी दबाव के आगे झुकाव करार दे रहा है।