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    सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई: ऑनलाइन गेमिंग की आड़ में चल रही सट्टेबाज़ी पर देशव्यापी प्रतिबंध की मांग वाली याचिका दायर

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    सुप्रीम कोर्ट 17 अक्टूबर को एक अत्यंत महत्वपूर्ण जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई करने जा रहा है, जिसमें ऑनलाइन गेमिंग की आड़ में संचालित हो रहे सट्टेबाज़ी और जुए के अवैध कारोबार पर देशव्यापी प्रतिबंध की मांग की गई है।

    यह याचिका Centre for Accountability and Systemic Change (CASC) नामक संस्था द्वारा दाखिल की गई है, जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि सोशल गेम्स और ई-स्पोर्ट्स के नाम पर कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स लोगों को जुए की ओर आकर्षित कर रहे हैं, जिससे विशेषकर युवा वर्ग और नाबालिग प्रभावित हो रहे हैं।

    इस याचिका में अदालत से केंद्र सरकार को निर्देश देने की अपील की गई है ताकि:

    • ऑनलाइन सट्टेबाज़ी प्लेटफार्मों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जा सके,

    • UPI, डिजिटल भुगतान और वॉलेट के ज़रिए सट्टा गतिविधियों में हो रहे ट्रांजेक्शन को रोका जा सके,

    • सभी संबंधित मंत्रालयों — इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी, सूचना और प्रसारण, वित्त और खेल मंत्रालय — को एक सामंजस्यपूर्ण नीति बनाने का निर्देश दिया जा सके,

    • नाबालिगों और युवाओं के डिजिटल डेटा और मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाए जाएँ।

    आज के समय में, ई-स्पोर्ट्स और सोशल गेमिंग एक विशाल उद्योग में बदल चुका है। इसमें कई ऐप्स और वेबसाइट्स अपने खेलों को कौशल आधारित (skill-based) बताकर खिलाड़ियों को पैसों के लेन-देन में शामिल कराती हैं।

    हालाँकि, याचिकाकर्ता CASC का कहना है कि यह पूरा सिस्टम एक सुव्यवस्थित सट्टेबाज़ी तंत्र बन चुका है जो कानून को दरकिनार करके भारत के युवाओं को जुए की दलदल में धकेल रहा है।

    भारत में ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री का मूल्य 2025 तक ₹18,000 करोड़ से अधिक हो चुका है। अनुमान है कि:

    • भारत में 50 करोड़ से अधिक लोग मोबाइल गेमिंग से जुड़े हैं।

    • हर दिन लाखों युवा रम्मी, पोकर, फैंटेसी क्रिकेट, और टीeen Patti जैसे खेलों में वास्तविक पैसे लगाते हैं।

    • इनमें से अनेक प्लेटफॉर्म बिना सरकारी मंजूरी, लाइसेंस या निगरानी के चल रहे हैं।

    CASC की याचिका में यह भी कहा गया है कि:

    “इस तरह के ऑनलाइन जुए ने भारत की आधी आबादी को प्रभावित किया है, जिससे यह अब केवल एक कानूनी नहीं बल्कि राष्ट्रीय संकट बन चुका है।”

    • कई युवाओं को कर्ज में डूबना पड़ता है,

    • मानसिक बीमारियाँ, तनाव और अवसाद की घटनाएँ बढ़ रही हैं,

    • परिवारिक रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं,

    • अपराध दर में भी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है, विशेषकर डिजिटल फ्रॉड और साइबर क्राइम के रूप में।

    याचिका में बच्चों के डिजिटल डेटा की सुरक्षा को लेकर भी गंभीर चिंता जताई गई है।

    • गेमिंग ऐप्स कई बार बिना अभिभावकीय अनुमति के नाबालिगों से डेटा इकट्ठा कर लेते हैं।

    • उन्हें लुभावने ऑफर्स देकर भुगतान के लिए प्रेरित किया जाता है।

    • यह गतिविधियाँ भारत के डेटा प्रोटेक्शन कानूनों के सीधे उल्लंघन की श्रेणी में आती हैं।

    भारत में ऑनलाइन गेमिंग को लेकर कोई सुस्पष्ट और एकीकृत कानून अभी तक नहीं बना है।

    • कुछ राज्य जैसे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल ने ऑनलाइन गेमिंग पर अपने-अपने नियम बनाए हैं।

    • केंद्र सरकार ने 2025 में “ऑनलाइन गेमिंग (रेगुलेशन और प्रमोशन) अधिनियम” का प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन उसका क्रियान्वयन अब भी अधर में है।

    • न्यायपालिका ने अब तक ‘कौशल बनाम भाग्य’ की बहस पर स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है।

    अगर सुप्रीम कोर्ट इस याचिका को गंभीर सार्वजनिक चिंता मानते हुए सख्त निर्देश देता है, तो इसका असर न केवल भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा बल्कि:

    • ऑनलाइन गेमिंग उद्योग को नए सिरे से विनियमित किया जाएगा,

    • सैकड़ों ऐप्स को बंद या प्रतिबंधित किया जा सकता है,

    • केंद्र सरकार को सख्त निगरानी तंत्र बनाना पड़ेगा,

    • डिजिटल ट्रांजेक्शन और पेमेंट गेटवे पर नए नियम लागू होंगे।

    भारत में ऑनलाइन गेमिंग का बढ़ता चलन अब मनोरंजन की सीमाओं को पार कर सट्टेबाज़ी और जुए की गंभीर समस्या बन चुका है।

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