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    ‘कालानमक किरन’ धान से बदल रही खेती की तस्वीर: सोनभद्र के प्रगतिशील किसान शिवप्रकाश कर रहे हैं कमाल, बन गए प्रेरणा का स्रोत

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    उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले का नाम अब सिर्फ अपने प्राकृतिक सौंदर्य या खनिज संपदा के लिए नहीं, बल्कि कृषि नवाचार के लिए भी चर्चाओं में है। यहाँ के प्रगतिशील किसान शिवप्रकाश यादव ने पारंपरिक खेती से हटकर “कालानमक किरन धान” की खेती शुरू की है और आज उनकी मेहनत और लगन ने पूरे क्षेत्र में मिसाल कायम कर दी है।

    सोनभद्र के छोटे से गाँव में जन्मे शिवप्रकाश शुरू से ही खेती-किसानी में रुचि रखते थे। उनके परिवार में पीढ़ियों से परंपरागत गेहूं और धान की खेती होती आई थी। लेकिन बढ़ते खर्च, घटती उपज और बाजार में मिल रहे कम दाम ने उन्हें नई राह तलाशने पर मजबूर किया। तभी उन्हें कृषि विभाग के माध्यम से “कालानमक किरन धान” के बारे में जानकारी मिली — एक ऐसी प्रजाति जो पारंपरिक धान से अधिक पौष्टिक, सुगंधित और बाजार में ऊँचे दाम पर बिकती है।

    शिवप्रकाश बताते हैं, “शुरुआत में जोखिम का डर था, लेकिन मैंने ठान लिया था कि अब परंपरा के साथ नवाचार को जोड़ना ही होगा। मैंने तीन बीघा ज़मीन में प्रयोग के तौर पर कालानमक किरन धान की बुवाई की और परिणाम ने मुझे चौंका दिया।”

    कालानमक किरन धान, जिसे “बुद्ध धान” के नाम से भी जाना जाता है, उत्तर प्रदेश की एक ऐतिहासिक धान प्रजाति है। इसकी विशेषता इसका सुगंधित स्वाद, उच्च पोषक तत्व और औषधीय गुण हैं। इसमें आयरन, जिंक और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यही कारण है कि यह धान अब न केवल घरेलू बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी लोकप्रिय हो रहा है।

    शिवप्रकाश ने इस धान की खेती के लिए पारंपरिक सिंचाई के बजाय ड्रिप इरिगेशन तकनीक और ऑर्गेनिक खाद का उपयोग किया। उन्होंने खेत में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर गोबर खाद और वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग किया, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रही और उत्पादन भी बेहतर हुआ।

    पहली ही फसल में उन्हें पारंपरिक धान के मुकाबले तीन गुना अधिक लाभ हुआ। जहां पहले उन्हें प्रति एकड़ लगभग 35-40 हजार रुपये का ही मुनाफा होता था, वहीं अब कालानमक धान की खेती से उन्हें प्रति एकड़ एक लाख रुपये से अधिक की आमदनी होने लगी।

    उनकी इस सफलता की गूंज आसपास के गाँवों तक फैल गई। कई किसानों ने उनसे संपर्क किया और इस नई किस्म की जानकारी प्राप्त की। आज शिवप्रकाश न केवल खुद खेती कर रहे हैं, बल्कि अन्य किसानों को भी प्रशिक्षण दे रहे हैं। उन्होंने अपने गाँव में एक छोटा प्रशिक्षण केंद्र बनाया है, जहाँ वे किसानों को जैविक खेती, बीज चयन और बाजार प्रबंधन की जानकारी देते हैं।

    शिवप्रकाश का कहना है, “खेती तभी लाभकारी बनेगी जब किसान बाजार की मांग और आधुनिक तकनीक को समझेंगे। केवल मेहनत नहीं, सही दिशा भी जरूरी है।”

    कृषि विभाग के अधिकारी भी उनके कार्यों की सराहना कर रहे हैं। विभाग ने शिवप्रकाश को “प्रगतिशील किसान पुरस्कार” से सम्मानित किया है और उनकी खेती को मॉडल प्रोजेक्ट के रूप में अन्य जिलों में भी प्रचारित करने की योजना बनाई जा रही है।

    शिवप्रकाश अब अपने खेतों का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं। वे आने वाले वर्षों में 20 एकड़ भूमि पर कालानमक धान की खेती करने के साथ-साथ प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की भी तैयारी में हैं, ताकि स्थानीय किसानों को अपनी उपज का बेहतर दाम मिल सके।

    उन्होंने बताया कि “हमारा लक्ष्य सिर्फ अपनी आमदनी बढ़ाना नहीं है, बल्कि किसानों को आत्मनिर्भर बनाना है। हम चाहते हैं कि सोनभद्र से लेकर गोरखपुर तक के किसान इस धान की खेती से जुड़ें और इसे ब्रांड के रूप में पहचान दिलाएं।”

    कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, कालानमक धान न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी है बल्कि पर्यावरण के लिए भी उपयोगी है। यह धान कम पानी में भी पनप सकता है और इसकी खेती में रासायनिक कीटनाशकों की जरूरत बहुत कम होती है।

    आज शिवप्रकाश की कहानी उन हजारों किसानों के लिए प्रेरणा बन गई है जो पारंपरिक खेती में नुकसान झेल रहे हैं और नई राह तलाश रहे हैं। उनकी मेहनत और नवाचार ने यह साबित किया है कि अगर किसान आधुनिक तकनीक, सही बीज और बाजार की समझ के साथ खेती करें, तो गांव की मिट्टी भी सोना उगल सकती है।

    सोनभद्र जैसे पिछड़े माने जाने वाले क्षेत्र से निकलकर शिवप्रकाश ने जो कर दिखाया है, वह उत्तर प्रदेश के कृषि परिदृश्य में एक नई उम्मीद की किरण बन गया है। उनके खेतों की हर लहराती बालियाँ अब सिर्फ अन्न नहीं, बल्कि बदलाव की कहानी कह रही हैं — एक ऐसे बदलाव की, जो किसानों को ‘अन्नदाता’ से ‘उद्यमी किसान’ बनने की दिशा में प्रेरित करता है।

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