




तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक गंभीर और भावनात्मक पत्र लिखकर श्रीलंका द्वारा भारतीय मछुआरों पर की जा रही कार्रवाई को लेकर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने आग्रह किया कि प्रधानमंत्री मोदी, भारत दौरे पर आईं श्रीलंका की प्रधानमंत्री हरिनी अमरसूर्या से इस विषय पर ठोस और निर्णायक बातचीत करें।
स्टालिन का पत्र ऐसे समय आया है जब श्रीलंका की प्रधानमंत्री हरिनी अमरसूर्या भारत की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं। यह दौरा भारत-श्रीलंका के द्विपक्षीय संबंधों को और सुदृढ़ बनाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। ऐसे में स्टालिन ने इस अवसर को तमिलनाडु के मछुआरा समुदाय की आवाज़ उठाने के लिए उपयुक्त बताया।
मुख्यमंत्री स्टालिन ने अपने पत्र में कहा कि तमिलनाडु के मछुआरे लगातार श्रीलंकाई नौसेना के हमलों, गिरफ्तारियों और उनकी नौकाओं की जब्ती का शिकार हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि हाल के महीनों में कई भारतीय मछुआरे गिरफ्तार किए गए हैं और उनकी मूल्यवान मछली पकड़ने वाली नौकाएं जब्त कर ली गई हैं।
स्टालिन ने पत्र में लिखा:
“पाक खाड़ी (Palk Bay) क्षेत्र में मछली पकड़ना हमारे मछुआरों की सदियों पुरानी पारंपरिक आजीविका है। लेकिन श्रीलंकाई नौसेना द्वारा बार-बार की जाने वाली गिरफ्तारी और हमलों से इनका जीवन संकट में है। यह न केवल मानवीय दृष्टिकोण से दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का भी उल्लंघन है।”
हरिनी अमरसूर्या की यह भारत यात्रा कूटनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है। दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश, सुरक्षा, संस्कृति और सीमा विवाद जैसे अनेक मुद्दों पर चर्चा हो रही है। स्टालिन ने इस यात्रा को एक ऐसा रणनीतिक अवसर बताया जिसमें प्रधानमंत्री मोदी को तमिलनाडु के मछुआरों के संकट को प्रमुखता से उठाना चाहिए।
उन्होंने पत्र में कहा कि भारत को चाहिए कि वह श्रीलंका के साथ एक स्थायी और मानवीय समाधान तलाशे ताकि बार-बार होने वाली यह समस्याएं समाप्त की जा सकें।
मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि केवल मछुआरों की गिरफ्तारी ही नहीं, बल्कि उनकी नौकाओं की जब्ती और विनाश ने आर्थिक रूप से उन्हें तबाह कर दिया है। उन्होंने कहा कि एक-एक नाव की कीमत लाखों रुपये होती है और ये मछुआरे अपनी जीवन भर की बचत इन नौकाओं में लगाते हैं।
स्टालिन ने केंद्र सरकार से मांग की कि:
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गिरफ्तार मछुआरों की जल्द से जल्द रिहाई हो।
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जब्त की गई नौकाओं को सुरक्षित लौटाया जाए।
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नौकाओं को नष्ट करने या ज़ब्ती की प्रक्रिया को रोका जाए।
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सभी पक्षों को साथ लेकर स्थायी समुद्री सीमा नीति बनाई जाए।
स्टालिन ने अपने पत्र में भारत द्वारा 1974 में श्रीलंका को सौंपे गए Katchatheevu द्वीप का भी उल्लेख किया। उन्होंने इसे तमिल मछुआरों की पारंपरिक मछली पकड़ने की जगह बताते हुए इस मुद्दे को फिर से उठाने की मांग की।
“जब तक Katchatheevu द्वीप पर भारत की स्थिति स्पष्ट नहीं की जाती, तब तक मछुआरों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती।”
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को इस क्षेत्र में एक द्विपक्षीय समुद्री निगरानी प्रणाली स्थापित करनी चाहिए।
पत्र के अंत में स्टालिन ने प्रधानमंत्री से अपील की कि वे श्रीलंका के प्रधानमंत्री के साथ इस विषय पर स्पष्ट और प्रभावी बातचीत करें। उन्होंने यह भी कहा कि यदि केंद्र इस मामले में ठोस कदम नहीं उठाएगा, तो तमिलनाडु की सरकार अपने स्तर पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मछुआरों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज़ उठाएगी।
स्टालिन का यह पत्र एक बार फिर यह दर्शाता है कि तमिलनाडु के मछुआरे सिर्फ समुद्र में मछली नहीं पकड़ते, बल्कि इतिहास, परंपरा और आजीविका से जुड़े गहरे सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा हैं।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री का यह पत्र न केवल एक राजनीतिक पहल है, बल्कि यह उन हज़ारों मछुआरों की पीड़ा की अभिव्यक्ति है, जो हर दिन समुद्र में अपनी जान जोखिम में डालते हैं।