




छत्तीसगढ़ की धरती एक बार फिर इतिहास की गवाह बनी जब शुक्रवार को 210 नक्सलियों ने एक साथ आत्मसमर्पण किया। यह अब तक का देश का सबसे बड़ा नक्सली सरेंडर ऑपरेशन बताया जा रहा है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने अपने हाथों में संविधान की प्रति ली और जमीन पर अपने हथियार रख दिए — एक प्रतीक कि अब वे हिंसा नहीं, बल्कि लोकतंत्र और विकास के रास्ते पर चलना चाहते हैं।
यह ऐतिहासिक सरेंडर बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा जिले में हुआ, जहां लंबे समय से नक्सल गतिविधियाँ सक्रिय थीं। आत्मसमर्पण करने वालों में कई कुख्यात नक्सली शामिल हैं जिन पर लाखों रुपये के इनाम थे। इनमें महिला नक्सलियों की संख्या भी उल्लेखनीय रही।
इस आत्मसमर्पण कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ पुलिस और CRPF के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहे। पुलिस के अनुसार, यह पहल सरकार की “लोन वर्राटू” (घर लौटो) नीति का परिणाम है, जिसके तहत नक्सलियों को हिंसा छोड़कर समाज की मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया जाता है।
कार्यक्रम के दौरान एक भावनात्मक दृश्य देखने को मिला — जब पूर्व नक्सलियों को संविधान की प्रति दी गई और उन्हें बताया गया कि अब उनके हाथों में बंदूक नहीं, बल्कि अधिकारों की किताब है। कई नक्सलियों की आंखें नम थीं। वे कहते दिखे कि अब वे अपने बच्चों को स्कूल भेजेंगे, खेती करेंगे और शांति से जीवन बिताना चाहते हैं।
दंतेवाड़ा के एसपी गौरव राय ने बताया, “यह केवल आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि एक वैचारिक जीत है। वर्षों से जो लोग बंदूक के सहारे विकास रोकने की कोशिश कर रहे थे, आज वही लोकतंत्र के प्रतीक संविधान को हाथ में लेकर खड़े हैं। यह छत्तीसगढ़ के इतिहास का महत्वपूर्ण क्षण है।”
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, आत्मसमर्पण करने वाले कई नक्सली दक्षिण बस्तर, सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर जिलों में सक्रिय थे। इनमें से कई नक्सलियों पर हत्या, विस्फोट और पुलिस बलों पर हमले जैसे गंभीर अपराध दर्ज हैं।
राज्य सरकार ने सरेंडर करने वालों को पुनर्वास योजना के तहत सहायता देने की घोषणा की है। उन्हें सुरक्षित आवास, रोजगार प्रशिक्षण, आर्थिक सहायता और उनके परिवारों को सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस ऐतिहासिक सरेंडर पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हिंसा से कोई समाधान नहीं निकलता। संविधान का रास्ता ही विकास और समानता की गारंटी देता है। यह आत्मसमर्पण इस बात का प्रमाण है कि विश्वास और विकास से नक्सलवाद को हराया जा सकता है।”
उन्होंने आगे कहा कि सरकार की प्राथमिकता अब इन सभी पूर्व नक्सलियों को समाज में सम्मानजनक जीवन दिलाना और उनके बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करना है।
इस आत्मसमर्पण की खबर फैलते ही स्थानीय लोगों में भी राहत की लहर दौड़ गई। बस्तर और आसपास के इलाकों में लंबे समय से नक्सलियों के खौफ से लोग परेशान थे। अब इस बड़े सरेंडर के बाद लोगों को उम्मीद है कि इलाका फिर से सामान्य जीवन की ओर लौटेगा।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह आत्मसमर्पण केवल एक सुरक्षा उपलब्धि नहीं है, बल्कि एक सामाजिक बदलाव का संकेत है। नक्सलियों द्वारा हथियार छोड़ संविधान को अपनाना इस बात का प्रमाण है कि सरकार की संवाद और पुनर्वास नीति सफल हो रही है।
आत्मसमर्पण कार्यक्रम के दौरान पुलिस अधिकारियों ने नक्सलियों को समझाया कि संविधान हर नागरिक को समान अधिकार देता है — चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि या विचारधारा से जुड़ा क्यों न हो। उन्हें यह भी बताया गया कि बंदूक से डर पैदा किया जा सकता है, लेकिन बदलाव नहीं। बदलाव के लिए कलम और कानून की जरूरत होती है।
आत्मसमर्पण के बाद सभी नक्सलियों को एक अस्थायी पुनर्वास केंद्र में भेजा गया है, जहां उनकी काउंसलिंग की जा रही है। उन्हें समाज में दोबारा शामिल करने के लिए शिक्षा और रोजगार से जुड़ी योजनाएं भी चलाई जा रही हैं।
कई नक्सलियों ने कहा कि उन्होंने जंगलों में अपनी आधी जिंदगी बिता दी, लेकिन अब वे शांति चाहते हैं। एक महिला नक्सली ने भावुक होकर कहा, “हमने बंदूक उठाई थी सोचकर कि हम न्याय पाएंगे, पर हमें केवल दर्द मिला। अब हम अपने बच्चों के साथ संविधान के रास्ते पर चलना चाहते हैं।”
इस आत्मसमर्पण ने एक बात साफ कर दी है — भारत के लोकतंत्र की ताकत अब इतनी गहरी हो चुकी है कि सबसे कठोर विचारधारा भी उसके आगे झुक रही है।
नक्सल समस्या से दशकों से जूझ रहे छत्तीसगढ़ के लिए यह आत्मसमर्पण एक नई सुबह का प्रतीक बनकर आया है। जहां पहले गोलियों की गूंज थी, वहां अब संविधान की गूंज सुनाई दे रही है।