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    दिल्ली हाई कोर्ट ने समीर वानखेड़े की प्रमोशन याचिका में तथ्य छिपाने पर केंद्र सरकार पर ₹20,000 का जुर्माना लगाया

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    दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय राजस्व सेवा (IRS) के अधिकारी और पूर्व नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) के मुंबई जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े से जुड़े एक प्रमोशन विवाद में केंद्र सरकार पर ₹20,000 का जुर्माना लगाया है। अदालत ने यह फैसला इसलिए सुनाया क्योंकि केंद्र सरकार ने न्यायालय में दायर पुनर्विचार याचिका में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया था, जो कि न्यायिक प्रक्रिया में गंभीर चूक मानी गई।

    इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति मधु जैन की पीठ ने की। अदालत ने केंद्र को निर्देश दिया कि यह जुर्माना चार सप्ताह के भीतर दिल्ली हाई कोर्ट एडवोकेट वेलफेयर फंड में जमा कराया जाए।

    समीर वानखेड़े ने अपनी पदोन्नति को लेकर केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) में याचिका दायर की थी। CAT ने अपने आदेश में कहा था कि यदि संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) वानखेड़े के नाम की सिफारिश करता है, तो उन्हें 1 जनवरी 2021 से अतिरिक्त आयुक्त (Additional Commissioner) के पद पर पदोन्नति दी जाए।

    केंद्र सरकार ने इस आदेश के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका (Review Petition) दाखिल की, जिसमें यह तर्क दिया गया कि वानखेड़े के खिलाफ “Major Penalty Proceedings” चल रही हैं, इसलिए उनकी पदोन्नति को “Sealed Cover Procedure” के तहत रोक दिया गया है।

    हालांकि, अदालत ने पाया कि केंद्र ने यह जानकारी नहीं दी कि CAT ने 27 अगस्त 2025 को ही विभागीय जांच को स्थगित (Stay) कर दिया था। यह तथ्य अत्यंत महत्वपूर्ण था, और उसे जानबूझकर याचिका में शामिल नहीं किया गया।

    अदालत ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा:

    “यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि याचिकाकर्ता (केंद्र सरकार), जो कि राज्य का प्रतिनिधित्व कर रही है, ने न्यायालय से महत्वपूर्ण तथ्य छिपाए। हम उम्मीद करते हैं कि राज्य पारदर्शिता और सच्चाई के साथ सभी तथ्य सामने रखेगा।”

    इसके अलावा कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर UPSC की ओर से वानखेड़े का नाम प्रमोशन के लिए सिफारिश किया गया है, तो उन्हें पूर्व प्रभाव से पदोन्नति दी जानी चाहिए

    Sealed Cover Procedure” का उपयोग अक्सर गोपनीय मामलों में किया जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में इसकी न्यायिक आलोचना बढ़ी है। अदालतों ने कई बार कहा है कि इस प्रक्रिया से पारदर्शिता में बाधा आती है।

    इस मामले में भी अदालत ने स्पष्ट किया कि जब विभागीय जांच पर रोक (Stay) पहले ही लग चुकी थी, तब Sealed Cover का हवाला देकर प्रमोशन रोका जाना अनुचित था।

    समीर वानखेड़े का नाम राष्ट्रीय स्तर पर 2021 में सामने आया, जब उन्होंने अभिनेता आर्यन खान को क्रूज ड्रग्स केस में गिरफ्तार किया। इसके बाद:

    • उन पर 25 करोड़ की रिश्वत मांगने का आरोप लगा।

    • जाति प्रमाणपत्र को लेकर विवाद हुआ।

    • उनके खिलाफ विभागीय जांच भी शुरू की गई।

    इन विवादों के बीच वानखेड़े ने यह दावा किया कि उन्हें राजनीतिक और व्यक्तिगत द्वेष के चलते टारगेट किया जा रहा है।

    इस फैसले के बाद कुछ महत्वपूर्ण संदेश सामने आए हैं:

    1. सरकार को सच्चाई नहीं छिपानी चाहिए: अदालत ने साफ किया कि केंद्र सरकार भी न्यायालय से कुछ नहीं छिपा सकती।

    2. प्रशासनिक न्याय के लिए उम्मीद की किरण: अधिकारियों को अब यह भरोसा मिलेगा कि यदि उनके साथ अन्याय होता है, तो अदालतें उन्हें न्याय दिला सकती हैं।

    3. Sealed Cover की वैधता पर सवाल: यह केस एक बार फिर उस प्रक्रिया पर बहस को तेज करेगा जो न्याय से अधिक गोपनीयता पर आधारित होती है।

    अब केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि:

    • ₹20,000 का जुर्माना समय से जमा किया जाए।

    • CAT के आदेशों का पूरा और शीघ्र पालन किया जाए।

    • समीर वानखेड़े को UPSC की सिफारिश मिलने पर तत्काल पदोन्नति दी जाए।

    दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला भारत की न्यायपालिका की स्वतंत्रता, पारदर्शिता और निष्पक्षता को दर्शाता है। जब सरकार जैसे शक्तिशाली पक्ष भी न्यायालय के समक्ष तथ्य छिपाते हैं, तो अदालतें उन्हें रोकने और सुधारने का साहसिक कार्य करती हैं।

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