




अयोध्या की पवित्र भूमि एक बार फिर से एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संगम की साक्षी बनने जा रही है। दीपोत्सव 2025 के दौरान यहां मास्को की रामलीला का भव्य मंचन होने जा रहा है, जो भारतीय और रूसी संस्कृति के गहरे संबंधों का प्रतीक बनेगा। इस बार की रामलीला खास इसलिए भी है क्योंकि यह रूस के राम को समर्पित होगी। यह आयोजन भारत और रूस के बीच लंबे समय से चली आ रही सांस्कृतिक मित्रता को एक नए स्वरूप में सामने लाएगा।
यह कार्यक्रम रूसी-भारतीय मैत्री संघ ‘दिशा’ (Disha – Russian-Indian Friendship Society) के तत्वावधान में आयोजित किया जा रहा है, जिसने चार दशक पहले शुरू हुई इस अनोखी परंपरा को फिर से जीवंत करने का बीड़ा उठाया है। उल्लेखनीय है कि पेचनिकोव की स्मृति में शुरू की गई ‘दिशा रामलीला’ का पहला मंचन 4 से 6 नवंबर 2018 के बीच अयोध्या में हुआ था, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से बड़ी संख्या में दर्शक पहुंचे थे। अब सात साल बाद यह परंपरा एक बार फिर से अयोध्या की मिट्टी में अपनी जड़ें मजबूत करने लौट रही है।
सूत्रों के अनुसार, इस बार की रामलीला में रूस के कलाकार प्रमुख भूमिकाओं में नजर आएंगे और वे पूरी कहानी संस्कृत, हिंदी और रूसी भाषा के मिश्रण में प्रस्तुत करेंगे। यह मंचन न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक कूटनीति (Cultural Diplomacy) के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस आयोजन को विशेष सहयोग देने का ऐलान किया है। अयोध्या में आयोजित होने वाले दीपोत्सव का हर साल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसारण किया जाता है, और इस बार रूस की भागीदारी इसे और भव्य बनाएगी। सरकार का कहना है कि यह आयोजन भारत की “वसुधैव कुटुंबकम” की भावना को और अधिक सशक्त करेगा।
‘दिशा रामलीला’ की शुरुआत 1980 के दशक में मास्को में हुई थी, जब सोवियत संघ के समय भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष पहल की गई थी। रूस में ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे ग्रंथों का रूसी भाषा में अनुवाद हुआ था और इन कहानियों ने वहां के कलाकारों और साहित्य प्रेमियों को गहराई से प्रभावित किया था।
इस परंपरा को रूस में लोकप्रियता दिलाने वाले कलाकार निकोलाई पेचनिकोव को सम्मानित करने के उद्देश्य से इस साल की रामलीला को “पेचनिकोव स्मृति समारोह” का रूप दिया गया है। पेचनिकोव भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में रूस के प्रमुख नामों में से एक थे, जिन्होंने भारत की कला, दर्शन और धर्म के अध्ययन को अपना जीवन समर्पित किया।
इस रामलीला की खासियत यह है कि इसमें नाट्य रूपांतरण पूरी तरह आधुनिक तकनीक के साथ किया जाएगा। मंचन के दौरान 3D प्रोजेक्शन, पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों और डिजिटल लाइटिंग इफेक्ट्स का इस्तेमाल होगा, ताकि दर्शकों को वास्तविक अनुभव मिल सके। आयोजकों ने बताया कि इस बार रामलीला में रूस के 40 से अधिक कलाकार भाग लेंगे, जिनका प्रशिक्षण भारतीय नाट्यशास्त्र और कथकली शैली के अनुसार किया जा रहा है।
कार्यक्रम की रूपरेखा के अनुसार, दीपोत्सव के पहले दिन — 1 नवंबर 2025 को उद्घाटन समारोह आयोजित होगा, जिसमें भारत और रूस के वरिष्ठ राजनयिक, कलाकार और धार्मिक नेता मौजूद रहेंगे। 4 से 6 नवंबर के बीच रामलीला का मंचन किया जाएगा, और समापन दिन पर सरयू तट पर दीप प्रज्वलन का भव्य आयोजन होगा, जिसमें इस बार रिकॉर्ड संख्या में दीये जलाए जाने की योजना है।
अयोध्या प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि पर्यटन और आर्थिक दृष्टि से भी प्रदेश के लिए वरदान साबित होगा। “रूस से आने वाले कलाकारों और पर्यटकों की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अयोध्या की पहचान और भी मजबूत होगी,” उन्होंने कहा।
रूस की सांस्कृतिक संस्था ‘दिशा’ के अध्यक्ष अलेक्सेई मिरोनोव ने अपने बयान में कहा,
“राम हमारे लिए केवल भारतीय कथा का पात्र नहीं हैं, बल्कि वे सत्य, साहस और करुणा के प्रतीक हैं। रूस और भारत दोनों के लोगों में इन मूल्यों की गहरी समझ है, और यही कारण है कि रामलीला हमारे दिलों के करीब है।”
यह आयोजन एक ऐसे समय में हो रहा है जब दुनिया में सांस्कृतिक संवाद की अहमियत पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। भारत और रूस के बीच कला, साहित्य, संगीत और फिल्म के क्षेत्र में पहले से ही गहरे संबंध हैं, और अयोध्या में होने वाली यह रामलीला दोनों देशों की आध्यात्मिक साझेदारी का उत्सव बनकर सामने आएगी।
रामलीला के इस मंचन को देखने के लिए न केवल अयोध्या बल्कि देश के अन्य हिस्सों से भी श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है। यह आयोजन अयोध्या के राम मंदिर उद्घाटन के बाद पहला अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा, जिससे इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है।
अयोध्या में दीपोत्सव अब केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि भारत की सांस्कृतिक शक्ति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग का प्रतीक बन चुका है। इस बार जब रूस के कलाकार राम, सीता और लक्ष्मण का रूप धारण कर मंच पर उतरेंगे, तब यह दृश्य न केवल धार्मिक आस्था का बल्कि विश्व एकता का जीवंत संदेश भी देगा।