




आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई आज दुनिया के हर कोने में चर्चा का विषय बन चुका है। जहां एक ओर यह तकनीक इंसान के जीवन को आसान बना रही है, वहीं दूसरी ओर इसके खतरनाक असर को लेकर विशेषज्ञों में चिंता भी बढ़ती जा रही है। इसी बीच, कनाडा के मशहूर अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर पीटर हॉविट ने एआई को लेकर एक गंभीर चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि अगर दुनिया ने समय रहते आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर नियंत्रण नहीं लगाया, तो यह समाज और अर्थव्यवस्था दोनों के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है।
पीटर हॉविट, जिन्हें 2018 में आर्थिक सिद्धांतों में उनके योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था, हाल ही में एक ग्लोबल टेक्नोलॉजी फोरम में बोल रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि “एआई जितना तेज़ी से विकसित हो रहा है, उतनी ही तेज़ी से यह समाज की बुनियादी संरचना को बदल रहा है। अगर इस पर सीमाएं नहीं लगाई गईं, तो यह इंसान के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन जाएगा।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि आज जो कंपनियां और सरकारें एआई के विकास में निवेश कर रही हैं, उन्हें सिर्फ तकनीकी क्षमता पर नहीं बल्कि नैतिक जिम्मेदारी पर भी ध्यान देना चाहिए।
प्रोफेसर हॉविट ने अपने भाषण में कहा कि एआई की सबसे बड़ी चुनौती ‘मानव नियंत्रण’ का खोना है। उनके अनुसार, अभी तक एआई इंसान के हाथ में है, लेकिन आने वाले समय में मशीनें खुद सीखने और फैसले लेने लगेंगी। इससे न केवल रोजगार की स्थिति प्रभावित होगी, बल्कि मानव निर्णय क्षमता और गोपनीयता पर भी असर पड़ेगा। उन्होंने कहा, “जब निर्णय एल्गोरिद्म लेंगे और इंसान सिर्फ दर्शक बन जाएगा, तब समाज का लोकतांत्रिक ढांचा खतरे में पड़ सकता है।”
हॉविट ने यह भी बताया कि एआई का गलत इस्तेमाल न केवल अर्थव्यवस्था बल्कि राजनीति को भी प्रभावित कर सकता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि सोशल मीडिया एल्गोरिद्म ने पहले ही सूचना को नियंत्रित करने की क्षमता हासिल कर ली है। अगर यही एल्गोरिद्म और अधिक शक्तिशाली एआई मॉडल्स में शामिल हो जाएं, तो वे चुनावों, नीतियों और जनमत को भी प्रभावित कर सकते हैं। “यह डिजिटल युग का सबसे बड़ा खतरा है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि एआई के बढ़ते प्रभाव से आर्थिक असमानता भी बढ़ सकती है। क्योंकि एआई आधारित तकनीकें उन लोगों के हाथ में केंद्रित हैं जो पहले से ही तकनीकी रूप से संपन्न हैं। हॉविट ने कहा कि “यदि सरकारें और अंतरराष्ट्रीय संगठन इस असंतुलन को रोकने के लिए नियम नहीं बनाते, तो अमीर और गरीब के बीच की खाई और गहरी हो जाएगी।”
इस संदर्भ में उन्होंने सुझाव दिया कि विश्व स्तर पर एक AI रेगुलेटरी फ्रेमवर्क बनाया जाना चाहिए, जो न केवल तकनीकी विकास बल्कि उसके नैतिक और सामाजिक पहलुओं की भी निगरानी करे। हॉविट के अनुसार, यह जरूरी है कि एआई का उपयोग समाज के उत्थान के लिए हो, न कि उसे नुकसान पहुंचाने के लिए।
प्रोफेसर हॉविट की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब दुनिया की कई बड़ी टेक कंपनियां — जैसे OpenAI, Google, Meta और Microsoft — लगातार नए एआई मॉडल विकसित कर रही हैं। हाल ही में यूरोपीय संघ ने भी ‘AI Act’ नाम से एक नया कानून प्रस्तावित किया है, जो एआई डेवलपर्स पर पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करेगा। वहीं, अमेरिका और भारत जैसे देश भी एआई नीति पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं।
भारत के संदर्भ में उन्होंने कहा कि यहां एआई तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इसके लिए कानूनी ढांचा अभी विकसित नहीं हुआ है। “भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था को अगर एआई का लाभ लेना है, तो उसे इसके सामाजिक असर को भी समझना होगा। सिर्फ टेक्नोलॉजी अपनाने से नहीं, बल्कि उसके जिम्मेदार उपयोग से ही असली विकास होगा,” उन्होंने कहा।
प्रोफेसर हॉविट का यह दृष्टिकोण एक गहरी सोच को सामने लाता है। एआई जहां मानवता की सबसे बड़ी खोजों में से एक है, वहीं इसका अनियंत्रित उपयोग विनाश का कारण भी बन सकता है। अगर मशीनें इंसान से ज्यादा बुद्धिमान हो गईं, तो समाज के ढांचे, रोजगार व्यवस्था, निजता और यहां तक कि लोकतंत्र की अवधारणा तक पर सवाल खड़े हो सकते हैं।
उनकी चेतावनी इस ओर इशारा करती है कि अब समय आ गया है जब सरकारों, कंपनियों और शोध संस्थानों को एक साथ मिलकर एआई के भविष्य को जिम्मेदारी के साथ दिशा देनी चाहिए। बिना नियंत्रण के विकास, विकास नहीं बल्कि खतरा बन सकता है।
प्रोफेसर हॉविट के शब्दों में —
“एआई एक ऐसी आग है जो अगर सही दिशा में बहे तो दुनिया को रोशन कर सकती है, लेकिन अगर इसे छोड़ दिया गया तो यही आग सब कुछ जला देगी।”
यह बयान न केवल तकनीकी जगत के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है — एआई का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसे कैसे संभालते हैं।