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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बिजली विभाग से जुड़े करीब 3600 से अधिक संविदाकर्मी (Contract Workers) बेरोजगारी के संकट में फंस गए हैं। उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) की नई “वर्टिकल व्यवस्था (Vertical System)” लागू होने से संविदा कर्मचारियों में भारी असंतोष फैल गया है। कर्मचारियों का कहना है कि इस नई व्यवस्था के चलते उनके रोजगार पर सीधा खतरा मंडरा रहा है। यही कारण है कि उन्होंने एक नवंबर से आंदोलन की चेतावनी दी है।
यह संकट उस समय उभरा है जब राज्य सरकार बिजली विभाग में दक्षता बढ़ाने और पारदर्शिता के नाम पर ढांचागत बदलाव कर रही है। हालांकि, इस फैसले से हजारों परिवारों की रोज़ी-रोटी पर संकट खड़ा हो गया है।
क्या है वर्टिकल व्यवस्था और कैसे प्रभावित हो रहे कर्मचारी?
यूपी पावर कॉरपोरेशन ने हाल ही में अपने संचालन और रखरखाव ढांचे को “वर्टिकल सिस्टम” में विभाजित करने का निर्णय लिया है। इस सिस्टम के तहत बिजली वितरण और रखरखाव के काम को अलग-अलग ठेकेदार कंपनियों के जरिए संचालित किया जाएगा। पहले ये काम एकीकृत प्रणाली के अंतर्गत स्थानीय स्तर पर संभाले जाते थे, जिनमें संविदा कर्मचारी वर्षों से सेवा दे रहे थे।
अब, नई व्यवस्था लागू होने के बाद पुराने ठेके खत्म कर दिए जाएंगे और नए ठेकेदारों के तहत काम का बंटवारा होगा। इस प्रक्रिया में बड़ी संख्या में संविदा कर्मचारियों को फिर से नियुक्त नहीं किए जाने की आशंका जताई जा रही है। इसी वजह से लखनऊ और आसपास के जिलों में लगभग 3600 कर्मचारियों की नौकरी पर तलवार लटक गई है।
कर्मचारियों का कहना है कि यह निर्णय उनके वर्षों की सेवा और अनुभव को दरकिनार कर लिया गया है। कई कर्मचारी पिछले 10-15 साल से संविदा पर काम कर रहे हैं और अब अचानक उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है।
कर्मचारियों में आक्रोश, आंदोलन की चेतावनी
यूपी राज्य विद्युत परिषद संविदा कर्मचारी संघ और अन्य संगठनों ने इस निर्णय का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि कॉरपोरेशन ने बिना किसी पूर्व सूचना या वैकल्पिक व्यवस्था के यह नीति लागू कर दी, जिससे हजारों परिवारों पर संकट आ गया है।
कर्मचारी संगठनों ने लखनऊ में आपात बैठक बुलाई और यह फैसला किया कि अगर सरकार ने फैसला वापस नहीं लिया तो 1 नवंबर से अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू किया जाएगा। इस दौरान संविदाकर्मी बिजली आपूर्ति से जुड़ा कार्य बंद कर सकते हैं, जिससे राजधानी और आसपास के जिलों में बिजली संकट गहरा सकता है।
संविदा संघ के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि “हम वर्षों से ईमानदारी से काम कर रहे हैं, लेकिन अब हमें एक नीति के नाम पर बाहर किया जा रहा है। वर्टिकल व्यवस्था दरअसल कर्मचारियों को ठेकेदारों की मर्जी पर निर्भर करने वाली प्रणाली है। हम इसके खिलाफ सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं।”
यूपी पावर कॉरपोरेशन का पक्ष
कॉरपोरेशन के अधिकारियों का कहना है कि वर्टिकल व्यवस्था लागू करने का उद्देश्य बिजली वितरण और प्रबंधन को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाना है। उनका तर्क है कि नई व्यवस्था से काम में दक्षता बढ़ेगी और भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “कर्मचारियों की नौकरियों पर कोई अन्याय नहीं किया जाएगा। सभी योग्य और कुशल कर्मचारियों को नए ठेकों के तहत प्राथमिकता दी जाएगी। यह कदम सिस्टम सुधार के लिए उठाया गया है, किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं।”
हालांकि, कर्मचारियों का आरोप है कि यह सिर्फ “कागज़ी आश्वासन” है। उनका कहना है कि कई जिलों में पहले से ही नए ठेकेदारों ने पुराने संविदाकर्मियों को शामिल करने से इनकार कर दिया है।
लखनऊ और आसपास के जिलों में असर
लखनऊ के अलावा रायबरेली, बाराबंकी, सीतापुर, उन्नाव और अमेठी जैसे जिलों में भी यही समस्या देखने को मिल रही है। यहां के हजारों संविदाकर्मी भी इसी व्यवस्था से प्रभावित होंगे। कई कर्मचारियों ने कहा कि अगर उन्हें काम से हटा दिया गया तो वे अपने परिवार का पालन-पोषण नहीं कर पाएंगे।
कुछ जगहों पर कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन शुरू भी कर दिया है। वहीं, बिजली उपभोक्ताओं को आशंका है कि अगर आंदोलन लंबा खिंच गया तो बिजली आपूर्ति बाधित हो सकती है।
राजनीतिक हलचल और विपक्ष की प्रतिक्रिया
इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी पकड़ लिया है। विपक्षी दलों ने सरकार पर संविदा कर्मचारियों के शोषण का आरोप लगाया है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने कहा कि सरकार अपनी नीतियों से युवाओं का रोजगार छीन रही है।
विपक्षी नेताओं का कहना है कि “सरकार ‘डिजिटल सुधार’ के नाम पर लोगों को बेरोजगार कर रही है। वर्टिकल सिस्टम केवल ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए लाया गया है।”
लखनऊ और पूरे यूपी में बिजली विभाग के 3600 से अधिक संविदाकर्मियों की नौकरी पर मंडराता खतरा केवल एक प्रशासनिक बदलाव का परिणाम नहीं, बल्कि उन हजारों परिवारों की चिंता है जो वर्षों से बिजली सेवा में जुड़े हैं।
जहां सरकार इसे सिस्टम सुधार बताकर सही ठहरा रही है, वहीं कर्मचारियों के लिए यह जीवन का सबसे बड़ा संकट बन गया है। अब सबकी निगाहें 1 नवंबर पर टिकी हैं — क्या सरकार कोई समाधान निकालेगी या फिर राजधानी में बिजली विभाग का बड़ा आंदोलन देखने को मिलेगा?






