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    शरद पवार के वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट पर ऑडिट का आदेश — संयोग या राजनीतिक प्रयोग? विपक्ष बोला, ‘यह बदले की कार्रवाई है’

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    महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर गरमाने लगी है। इस बार विवाद का केंद्र है एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) के प्रमुख शरद पवार का प्रतिष्ठित संस्थान — वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट (VSI)। राज्य सरकार ने इस संस्थान के फंड उपयोग और वित्तीय प्रबंधन की जांच के लिए एक विशेष ऑडिट का आदेश जारी किया है। सरकार का दावा है कि यह एक “सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया” है, जबकि विपक्ष इसे “राजनीतिक बदले की कार्रवाई” बताकर हमलावर हो गया है।

    पुणे में स्थित वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट महाराष्ट्र की चीनी उद्योग से जुड़ी सबसे प्रतिष्ठित संस्थाओं में से एक मानी जाती है। इस संस्थान की स्थापना 1975 में हुई थी और यह लंबे समय से शरद पवार के संरक्षण में है। शरद पवार खुद इस संस्थान के अध्यक्ष हैं और राज्यभर के चीनी कारखाने इस संस्थान से तकनीकी, प्रशिक्षण और शोध संबंधी सहायता प्राप्त करते हैं।

    राज्य सरकार ने हाल ही में वित्त विभाग के माध्यम से आदेश जारी करते हुए कहा कि पिछले कुछ वर्षों में संस्थान को सरकार से मिले फंड और अनुदान के उपयोग की विस्तृत जांच की जाएगी। यह ऑडिट अगले तीन महीनों में पूरा किया जाएगा, जिसके लिए एक स्वतंत्र ऑडिट कमेटी गठित की गई है।

    सरकार का तर्क है कि यह कदम केवल पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है। लेकिन विपक्ष ने इसे साफ तौर पर “राजनीतिक प्रतिशोध” करार दिया है। एनसीपी (शरद पवार गुट) और कांग्रेस ने इस कदम पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।

    एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा, “सरकार अब हर उस संस्था पर कार्रवाई कर रही है जिसका संबंध शरद पवार साहब से है। वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश के लिए गौरव का विषय है। इस तरह के ऑडिट आदेश सिर्फ बदले की भावना से प्रेरित हैं।”

    कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, “अगर पारदर्शिता ही उद्देश्य है, तो फिर राज्य की अन्य संस्थाओं का ऑडिट क्यों नहीं कराया जा रहा? यह कदम पूरी तरह से चयनात्मक और राजनीतिक है।”

    वहीं, भाजपा और शिवसेना (शिंदे गुट) ने सरकार के फैसले का बचाव किया है। महाराष्ट्र के वित्त मंत्री अजय चौधरी ने कहा कि यह किसी व्यक्ति या पार्टी को निशाना बनाने का मामला नहीं है। उन्होंने कहा, “राज्य के सभी सरकारी फंड प्राप्त संस्थानों का ऑडिट समय-समय पर होता है। यह प्रशासनिक प्रक्रिया है। इसमें राजनीति देखने की जरूरत नहीं।”

    राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला सिर्फ एक ऑडिट तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आने वाले महीनों में यह महाराष्ट्र की सत्ता राजनीति का अहम मुद्दा बन सकता है। शरद पवार, जो पहले ही राज्य की सत्ता समीकरणों से खफा बताए जा रहे हैं, इस ऑडिट को अपने खिलाफ एक संकेत के रूप में देख रहे हैं।

    जानकारों का कहना है कि महाराष्ट्र में चीनी उद्योग सिर्फ व्यापार नहीं बल्कि राजनीति की धुरी है। राज्य के अधिकांश बड़े नेता किसी न किसी रूप में सहकारी शुगर मिलों या शुगर इंस्टीट्यूट से जुड़े हुए हैं। इसलिए वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट पर हुई यह कार्रवाई, सीधे-सीधे सत्ता और प्रभाव की राजनीति से जुड़ी है।

    पुणे और बारामती में इस खबर के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। एनसीपी (शरद पवार गुट) के कार्यकर्ताओं ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया और इसे “लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला” बताया। वहीं, सरकार समर्थक नेताओं ने पलटवार करते हुए कहा कि अगर सब कुछ सही है, तो जांच से डरने की कोई बात नहीं है।

    वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट देश-विदेश में अपनी रिसर्च और प्रशिक्षण गतिविधियों के लिए जाना जाता है। यह संस्था गन्ने की नई किस्मों पर शोध करती है और महाराष्ट्र के हजारों किसानों को आधुनिक तकनीक सिखाती है। लेकिन अब इसके वित्तीय रिकॉर्ड्स को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

    राजनीति में माहिर शरद पवार ने अभी तक इस मुद्दे पर सीधा बयान नहीं दिया है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक उन्होंने अपने निकट सहयोगियों को शांत और संयमित प्रतिक्रिया देने की सलाह दी है। वे आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकते हैं।

    इस बीच, राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है कि यह ऑडिट केवल शुरुआत है और आने वाले महीनों में पवार से जुड़े अन्य संगठनों और संस्थाओं पर भी जांच हो सकती है।

    फिलहाल, महाराष्ट्र की राजनीति में “शुगर पॉलिटिक्स” एक बार फिर केंद्र में है। एक ओर सरकार पारदर्शिता की बात कर रही है, वहीं विपक्ष इसे बदले की कार्रवाई कहकर राजनीतिक माहौल गर्म कर रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह ऑडिट “संयोग” साबित होता है या “प्रयोग”।

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