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    विजन कम, पर हौसला बुलंद — वारंगल की सड़कों से IIT मद्रास की लैब तक विग्नेश की प्रेरणादायक सफलता कहानी

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    कहते हैं, अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी कमी इंसान को रोक नहीं सकती। तेलंगाना के वारंगल के रहने वाले विग्नेश इस कहावत को सही साबित करने वाले युवा हैं। जहां बहुत से लोग अपनी कमजोरियों को अपनी असफलता का कारण बना लेते हैं, वहीं विग्नेश ने अपनी दृष्टि की कमी को अपनी सबसे बड़ी ताकत बना लिया। आज वे IIT मद्रास की लैब में अपने शोध कार्य से देश को गौरवान्वित कर रहे हैं।

    विग्नेश बचपन से ही दृष्टिबाधित हैं। उनका विजन बहुत कम है, लेकिन उन्होंने कभी इसे अपने सपनों के बीच आने नहीं दिया। वारंगल की गलियों से लेकर देश के शीर्ष इंजीनियरिंग संस्थान IIT Madras तक का उनका सफर कठिन जरूर था, लेकिन उनके जज्बे ने हर मुश्किल को आसान बना दिया।

    विग्नेश के पिता एक छोटे व्यापारी हैं, जबकि मां गृहिणी हैं। आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन परिवार ने हमेशा उनके सपनों को उड़ान देने में साथ दिया। बचपन में जब अन्य बच्चे मोबाइल गेम्स खेलते थे, तब विग्नेश ऑडियोबुक्स और टॉकिंग कैलकुलेटर के जरिए गणित सीखते थे। उनकी स्कूली पढ़ाई वारंगल के एक सरकारी स्कूल से हुई, जहां उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से सभी को प्रभावित किया।

    कक्षा 10वीं में 95 प्रतिशत अंकों के साथ उन्होंने साबित कर दिया कि दृष्टि नहीं, दृष्टिकोण मायने रखता है। आगे की पढ़ाई के दौरान उन्होंने कभी किसी विशेष सुविधा की मांग नहीं की, बल्कि तकनीक का सहारा लिया। स्क्रीन रीडर, ऑडियो नोट्स और डिजिटल टूल्स की मदद से उन्होंने न केवल पढ़ाई जारी रखी, बल्कि अपने बैच के टॉप स्टूडेंट्स में शामिल रहे।

    IIT प्रवेश परीक्षा (JEE) की तैयारी विग्नेश के लिए सबसे कठिन दौर था। सामान्य विद्यार्थियों के लिए भी यह परीक्षा चुनौतीपूर्ण होती है, लेकिन दृष्टिबाधित छात्रों के लिए यह किसी पहाड़ पर चढ़ने जैसा होता है। फिर भी, विग्नेश ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के जरिए लेक्चर सुने, वॉयस असिस्टेंट्स से नोट्स तैयार किए और कई बार दोस्तों से मदद लेकर सवालों का अभ्यास किया। आखिरकार, उनकी मेहनत रंग लाई और वे IIT Madras में चयनित हुए।

    आज विग्नेश वहां इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग के क्षेत्र में शोध कर रहे हैं। उनका लक्ष्य है ऐसी तकनीक विकसित करना जो दृष्टिबाधित लोगों के लिए जीवन आसान बना सके। फिलहाल, वे एक ऐसे “स्मार्ट नेविगेशन सिस्टम” पर काम कर रहे हैं, जो कैमरा और सेंसर की मदद से दृष्टिबाधित लोगों को रास्ता बताने और बाधाओं की पहचान करने में मदद करेगा।

    IIT मद्रास के प्रोफेसर रमेश कुमार, जो विग्नेश के गाइड हैं, कहते हैं — “विग्नेश हमारे सबसे समर्पित छात्रों में से एक हैं। उनकी ऊर्जा और सकारात्मकता पूरी टीम को प्रेरित करती है। वह दिखाते हैं कि सफलता के लिए आंखें नहीं, बल्कि दृष्टि चाहिए।”

    विग्नेश का मानना है कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। वे कहते हैं, “कई बार लगा कि अब और नहीं कर पाऊंगा, लेकिन जब भी थक जाता था, अपने माता-पिता और शिक्षकों का चेहरा याद करता था। वही मुझे दोबारा आगे बढ़ने की ताकत देता था।”

    उनकी कहानी सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी है। कई लोग उन्हें “Real Life Iron Man” कहकर पुकार रहे हैं। विग्नेश अब अन्य दृष्टिबाधित बच्चों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। वह समय-समय पर स्कूलों और कॉलेजों में जाकर छात्रों को मोटिवेशनल सेशंस भी देते हैं।

    आज जब तकनीक और शिक्षा के युग में भी बहुत से लोग बहाने बनाते हैं, विग्नेश की कहानी यह सिखाती है कि “विजन कम हो सकता है, लेकिन सपनों का आसमान हमेशा खुला रहता है।” उनका सफर बताता है कि अगर विश्वास खुद पर हो, तो कोई बाधा स्थायी नहीं होती।

    IIT मद्रास की प्रयोगशाला में हर दिन नई खोजों के बीच काम करते हुए विग्नेश यह साबित कर रहे हैं कि सीमाएं केवल दिमाग में होती हैं। आने वाले समय में उनका लक्ष्य है कि वे अपनी तकनीक को आम लोगों तक पहुंचाएं और दृष्टिबाधित समाज के लिए आत्मनिर्भरता का नया अध्याय लिखें।

    विग्नेश की कहानी न केवल प्रेरणा देती है बल्कि यह भी बताती है कि सच्चा विजन आंखों में नहीं, बल्कि दिल और दिमाग में होता है।

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