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भारत और साइप्रस के बीच रणनीतिक साझेदारी और गहरी दोस्ती एक बार फिर चर्चा में है। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की साइप्रस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई अहम मुद्दों पर बातचीत हुई। इस बैठक में जहां जयशंकर ने साइप्रस को भारत का भरोसेमंद मित्र और विश्वसनीय पार्टनर बताया, वहीं साइप्रस के विदेश मंत्री कॉन्स्टैंटिनोस कोम्बोस ने बिना नाम लिए तुर्की पर परोक्ष निशाना साधा और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की भूमिका की सराहना की।
बैठक का उद्देश्य भारत और साइप्रस के बीच द्विपक्षीय सहयोग को नए आयाम देना था। दोनों देशों ने रक्षा, ऊर्जा, समुद्री सुरक्षा, शिक्षा और डिजिटल कूटनीति जैसे कई क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई। जयशंकर ने कहा कि भारत साइप्रस को एक ऐसे साथी के रूप में देखता है, जिसने हमेशा वैश्विक मुद्दों पर भारत के रुख का समर्थन किया है।
जयशंकर बोले – साइप्रस भारत का भरोसेमंद मित्र
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “भारत और साइप्रस दशकों से गहरे आपसी विश्वास और साझा मूल्यों पर आधारित संबंधों से जुड़े हैं। साइप्रस ने हमेशा भारत के हितों की रक्षा में सहयोग दिया है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हमारे रुख को समझा है।”
जयशंकर ने यह भी जोड़ा कि दोनों देशों के बीच साझा लोकतांत्रिक मूल्य, सांस्कृतिक विरासत और वैश्विक शांति के प्रति प्रतिबद्धता ही इन संबंधों की असली ताकत है। उन्होंने कहा कि भारत और साइप्रस मिलकर क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक आर्थिक प्रगति के लिए काम कर सकते हैं।
साइप्रस के विदेश मंत्री ने तुर्की पर साधा निशाना
दूसरी ओर, साइप्रस के विदेश मंत्री कॉन्स्टैंटिनोस कोम्बोस ने अपने बयान में तुर्की का नाम लिए बिना कहा कि कुछ देश अपने भू-राजनीतिक हितों के लिए क्षेत्र में तनाव बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा, “हम उन देशों का समर्थन करते हैं जो शांति, संवाद और अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर काम करते हैं। भारत इस दिशा में एक आदर्श उदाहरण है।”
उनका यह बयान साफ तौर पर तुर्की के साथ साइप्रस के पुराने विवाद की ओर इशारा कर रहा था। ज्ञात हो कि साइप्रस 1974 से दो भागों में बंटा हुआ है — दक्षिणी भाग ग्रीक साइप्रस और उत्तरी भाग तुर्की साइप्रस, जिसे केवल तुर्की ही मान्यता देता है।
भारत और साइप्रस के बीच बढ़ता आर्थिक सहयोग
बैठक के दौरान दोनों देशों ने आर्थिक और निवेश सहयोग को भी मजबूत करने की दिशा में काम करने पर सहमति जताई। भारत साइप्रस को यूरोप का गेटवे मानता है, जबकि साइप्रस भारत को एशिया में एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में देखता है।
जयशंकर ने कहा कि भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर, स्टार्टअप और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में विदेशी निवेश के अवसर तेजी से बढ़ रहे हैं और साइप्रस इन अवसरों का लाभ उठा सकता है। दोनों देशों के बीच डबल टैक्सेशन अवॉयडेंस एग्रीमेंट (DTAA) के तहत कई सुधार लागू किए जा चुके हैं, जिससे व्यापारिक निवेश को प्रोत्साहन मिला है।
साझा सुरक्षा और वैश्विक स्थिरता पर जोर
भारत और साइप्रस ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता, आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त प्रयास और समुद्री सुरक्षा पर सहयोग बढ़ाने की बात कही। जयशंकर ने कहा कि आज दुनिया को ऐसे देशों की जरूरत है जो कानून आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था (Rules-based order) में विश्वास रखते हैं।
साइप्रस के विदेश मंत्री ने भारत के इस रुख का समर्थन करते हुए कहा, “भारत ने हर परिस्थिति में वैश्विक शांति और स्थिरता की दिशा में संतुलित नीति अपनाई है, जो छोटे देशों के लिए भी प्रेरणादायक है।”
कूटनीतिक रिश्तों का लंबा इतिहास
भारत और साइप्रस के बीच राजनयिक संबंध 1950 के दशक में स्थापित हुए थे। दोनों देशों ने तब से लेकर अब तक कई अंतरराष्ट्रीय मंचों जैसे संयुक्त राष्ट्र (UN) और नॉन-अलाइंड मूवमेंट (NAM) में एक-दूसरे का समर्थन किया है।
भारत ने साइप्रस में मानवीय सहायता, शिक्षा, स्वास्थ्य और आईटी क्षेत्र में कई परियोजनाएं चलाई हैं। इसके अलावा दोनों देशों के बीच संस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम भी जारी हैं, जिनके तहत कला, योग और आयुर्वेद को बढ़ावा दिया जा रहा है।
जयशंकर की यह यात्रा भारत और साइप्रस के बीच नए युग की शुरुआत मानी जा रही है। दोनों देशों ने न केवल आर्थिक साझेदारी को गहराई देने की बात की है, बल्कि भू-राजनीतिक चुनौतियों के बीच एक मजबूत और संतुलित विदेश नीति का संदेश भी दिया है।

 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		 
		






