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राजस्थान से मध्यप्रदेश में तस्करी के लिए लाया जा रहा एक बेहद दुर्लभ और करोड़ों रुपये की कीमत वाला सांप पुलिस के हत्थे चढ़ा है। इस प्रजाति का नाम है एरिक्स जॉनी (Eryx johnii), जिसे स्थानीय भाषा में रेड सैंड बोआ भी कहा जाता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 1 से 2 करोड़ रुपये तक बताई जाती है। अशोकनगर पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर कार्रवाई करते हुए दो तस्करों को जीवित सांप के साथ गिरफ्तार किया।
मामला जिले के मुंगावली थाना क्षेत्र का है, जहां पुलिस को सूचना मिली थी कि दो संदिग्ध व्यक्ति जयपुर से एक जीवित सांप लेकर बेचने के इरादे से मध्यप्रदेश में प्रवेश कर रहे हैं। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए नाकाबंदी की और एक मोटरसाइकिल सवार दो लोगों को पकड़ा। तलाशी के दौरान उनके बैग में बंद एक जीवित Eryx johnii सांप मिला।
पुलिस अधीक्षक ने बताया कि यह प्रजाति भारत के वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 की अनुसूची-4 में सूचीबद्ध है और इसका व्यापार पूरी तरह प्रतिबंधित है। पकड़े गए दोनों आरोपियों की पहचान राकेश शर्मा (जयपुर) और विकास जैन (सीकर) के रूप में हुई है। दोनों राजस्थान से यह सांप लेकर अशोकनगर आए थे और इसे कथित तौर पर एक निजी कलेक्टर को बेचने की योजना बना रहे थे।
जांच में यह भी सामने आया है कि यह तस्करी नेटवर्क पिछले कुछ महीनों से राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में सक्रिय है। यह गिरोह वन्यजीवों और दुर्लभ सरीसृपों की अवैध तस्करी करता है, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय काले बाजार में बेचा जाता है।
वन विभाग की टीम को सूचना मिलते ही मौके पर बुलाया गया और सांप को सुरक्षित रूप से उनके हवाले किया गया। विभाग के अधिकारियों ने बताया कि Eryx johnii प्रजाति आमतौर पर रेगिस्तानी और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है, खासकर राजस्थान और गुजरात के इलाकों में। यह सांप आकार में छोटा, भूरे रंग का और जमीन के भीतर रहने वाला होता है।
इस प्रजाति के प्रति अंधविश्वास भी इसकी तस्करी का बड़ा कारण है। कुछ लोग इसे “दो-मुंहा सांप” मानते हैं और विश्वास करते हैं कि यह शुभता, धन और समृद्धि लाता है। कई जगह इसके इस्तेमाल को तंत्र-मंत्र और पारंपरिक चिकित्सा से भी जोड़ा जाता है, जिसके चलते अवैध बाजार में इसकी कीमत करोड़ों में पहुंच जाती है।
वन विभाग के विशेषज्ञों ने बताया कि यह सांप गैर-विषैला (Non-Venomous) होता है और इंसानों के लिए किसी भी प्रकार का खतरा नहीं पैदा करता। इसके बावजूद अंधविश्वास और विदेशी मांग के चलते तस्कर इसे पकड़कर बेचने की कोशिश करते हैं।
अशोकनगर पुलिस ने दोनों आरोपियों के खिलाफ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 9, 39 और 51 के तहत मामला दर्ज किया है। फिलहाल दोनों से पूछताछ जारी है, ताकि इस नेटवर्क के अन्य सदस्यों तक पहुंचा जा सके।
पुलिस अधिकारियों ने यह भी बताया कि हाल ही में राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमाओं पर ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां दुर्लभ जीव-जंतुओं की तस्करी पकड़ी गई। इनमें मोर के पंख, कछुए और दुर्लभ सांपों की प्रजातियां शामिल थीं।
वन विभाग ने आम जनता से अपील की है कि यदि कहीं भी किसी प्रकार की वन्यजीव तस्करी या दुर्लभ प्रजाति का अवैध व्यापार होता दिखाई दे, तो तत्काल पुलिस या वन अधिकारियों को सूचित करें। ऐसे अपराध न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं बल्कि जैव विविधता को भी गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं।
इस घटना के बाद से स्थानीय इलाकों में चर्चा का विषय बना हुआ है कि आखिर इतनी कीमती प्रजाति का सांप इतनी आसानी से कैसे पकड़ा गया और इसका नेटवर्क कितना बड़ा है। वहीं, वन्यजीव प्रेमी और पर्यावरण कार्यकर्ता इसे एक सकारात्मक संकेत मान रहे हैं कि अब पुलिस और वन विभाग मिलकर ऐसी अवैध गतिविधियों पर सख्ती से नकेल कस रहे हैं।
अशोकनगर पुलिस की यह कार्रवाई न केवल कानून के पालन का उदाहरण है बल्कि यह भी दर्शाती है कि वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए अब प्रशासन पूरी तरह सतर्क है।








