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    मुंबई में साइबर ठगी के बढ़ते मामलों से दहशत, बुजुर्ग बन रहे ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ और फर्जी निवेश स्कैम के शिकार, पुलिस ने शुरू किया जागरूकता अभियान

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    मुंबई जैसे महानगर में जहां तकनीक ने लोगों की जिंदगी आसान बना दी है, वहीं साइबर अपराधियों ने इसे ठगी का सबसे बड़ा हथियार बना लिया है। हाल ही में शहर में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें वरिष्ठ नागरिकों को ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ और फर्जी निवेश स्कीम के नाम पर लाखों रुपये से ठग लिया गया। इन लगातार बढ़ते मामलों ने न केवल पुलिस प्रशासन को सतर्क किया है, बल्कि आम नागरिकों में भी भय का माहौल बना दिया है।

    इन्हीं घटनाओं को देखते हुए मुंबई पुलिस ने एक विशेष साइबर जागरूकता अभियान शुरू किया है, जिसका उद्देश्य है लोगों—खासकर वरिष्ठ नागरिकों—को साइबर ठगी के नए तरीकों से आगाह करना और उन्हें डिजिटल सुरक्षा के प्रति शिक्षित करना।

    पुलिस के अनुसार, हाल ही में बढ़े मामलों में ठग खुद को सरकारी अधिकारी, प्रवर्तन निदेशालय (ED) या साइबर पुलिस अधिकारी बताकर पीड़ितों को फोन करते हैं। वे दावा करते हैं कि उनके बैंक अकाउंट या आधार कार्ड का इस्तेमाल किसी आपराधिक गतिविधि में हुआ है और अब उन्हें ‘डिजिटल गिरफ्तारी’ का सामना करना पड़ेगा। ठग डराने के बाद ‘ऑनलाइन वेरिफिकेशन’ या ‘क्लियरेंस फीस’ के नाम पर भारी रकम वसूल लेते हैं।

    साइबर सेल अधिकारियों का कहना है कि पिछले तीन महीनों में ऐसे 150 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से अधिकांश पीड़ित वरिष्ठ नागरिक हैं। इन स्कैम में बुजुर्गों की सबसे बड़ी कमजोरी उनका डर और डिजिटल ज्ञान की कमी है। कई बार वे इन कॉल्स पर भरोसा कर लेते हैं क्योंकि कॉलर का तरीका अत्यधिक प्रोफेशनल होता है और वह सरकारी भाषा का उपयोग करता है।

    इसके अलावा, मुंबई में फर्जी निवेश योजनाओं के नाम पर भी ठगी का जाल फैलाया जा रहा है। ठग ऑनलाइन स्टॉक मार्केट या क्रिप्टो निवेश की वेबसाइट्स और व्हाट्सएप ग्रुप्स के जरिए लोगों को आसान मुनाफे का लालच देते हैं। कई बुजुर्ग, जिन्हें सेवानिवृत्ति के बाद निवेश की आदत होती है, इन झूठी योजनाओं में अपनी बचत गंवा रहे हैं।

    मुंबई पुलिस ने इस खतरे को देखते हुए नागरिकों को चेतावनी दी है कि कोई भी सरकारी संस्था कभी फोन या व्हाट्सएप कॉल के जरिए गिरफ्तारी या भुगतान की मांग नहीं करती। ऐसे कॉल आने पर तुरंत 1930 या स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत करने की सलाह दी गई है।

    अभियान के तहत पुलिस अब आवासीय सोसायटियों, सीनियर सिटीजन क्लब्स और बैंक शाखाओं में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित कर रही है। साइबर पुलिस अधिकारी डिजिटल सेफ्टी पर छोटे-छोटे सत्र ले रहे हैं, जिनमें बताया जा रहा है कि कैसे अनजान लिंक, फर्जी कॉल या स्क्रीन शेयरिंग ऐप्स से बचा जाए। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर भी “Don’t Fall for Digital Arrest” नाम से एक जागरूकता कैम्पेन चलाया जा रहा है, जिसमें वास्तविक घटनाओं पर आधारित लघु फिल्में दिखाई जा रही हैं।

    पुलिस आयुक्त विवेक फनसलकर ने कहा, “हमारा मकसद डर फैलाना नहीं, बल्कि भरोसा जगाना है। साइबर अपराधी तकनीक का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं, इसलिए हमें भी जागरूक और सतर्क रहना होगा। वरिष्ठ नागरिकों को अपने परिवार या बैंक से सलाह लिए बिना कोई डिजिटल लेनदेन नहीं करना चाहिए।”

    मुंबई पुलिस की इस पहल की सराहना साइबर विशेषज्ञों ने भी की है। उनका मानना है कि जब तक आम लोग तकनीकी साक्षरता नहीं अपनाएंगे, तब तक ऐसे अपराध पूरी तरह खत्म नहीं हो सकते। इस दिशा में पुलिस और नागरिकों के बीच संवाद और विश्वास जरूरी है।

    मुंबई की यह नई मुहिम “डिजिटल सतर्कता की ओर एक कदम” कही जा रही है। यह न केवल एक अभियान है बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी का हिस्सा भी है। पुलिस विभाग अब इस मॉडल को राज्य के अन्य जिलों में भी लागू करने की योजना बना रहा है ताकि साइबर अपराध की जड़ पर वार किया जा सके।

    जैसे-जैसे शहर डिजिटल होता जा रहा है, वैसे-वैसे ठगों के तरीके भी अपडेट हो रहे हैं। ऐसे में अब वक्त आ गया है कि हर नागरिक खुद को साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूक करे। मुंबई पुलिस का यह कदम निश्चित रूप से एक सकारात्मक पहल है, जो आने वाले समय में न केवल अपराध रोकने में मदद करेगा, बल्कि लोगों में डिजिटल जिम्मेदारी की भावना भी बढ़ाएगा।

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