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    सांभर झील में फिर लौट आया ‘एवियन बॉटूलिज्म’ का खतरा? प्रवासी पक्षियों की मौत से 2019 जैसी त्रासदी का डर

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    जयपुर। राजस्थान की मशहूर सांभर झील एक बार फिर प्रवासी पक्षियों की रहस्यमयी मौतों को लेकर सुर्खियों में है। पिछले कुछ दिनों में झील के आसपास दर्जनों पक्षियों के मृत पाए जाने के बाद वन विभाग और प्रशासन अलर्ट मोड में आ गया है। शुरुआती जांच में झील के प्रदूषित पानी और एवियन बॉटूलिज्म (Avian Botulism) नामक संक्रमण की आशंका जताई जा रही है। यह वही घातक बीमारी है जिसने 2019 में हजारों प्रवासी पक्षियों की जान ले ली थी, और अब एक बार फिर वही डर लौट आया है।

    वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि सांभर झील क्षेत्र में फैले हुए पानी के कुछ हिस्सों में मृत पक्षी मिले हैं। इनमें बड़ी संख्या में प्रवासी प्रजातियां जैसे नॉर्दर्न शॉवेलर, कॉमन टील, और पिंटेल डक शामिल हैं। मृत पक्षियों के शव परीक्षण के लिए वन्यजीव प्रयोगशाला में भेजे गए हैं ताकि मौत के सही कारण का पता लगाया जा सके। हालांकि प्रारंभिक जांच में पानी के दूषित होने और ऑक्सीजन की कमी को भी एक संभावित कारण माना जा रहा है।

    विभाग के अनुसार, झील में इस समय तापमान में गिरावट और पानी के ठहराव के कारण बैक्टीरियल ग्रोथ बढ़ गई है, जो बॉटूलिज्म जैसी बीमारियों को जन्म दे सकती है। एवियन बॉटूलिज्म एक घातक न्यूरोटॉक्सिन संक्रमण है जो पक्षियों के स्नायुतंत्र को प्रभावित करता है। संक्रमित पक्षी उड़ नहीं पाते, पानी में डूब जाते हैं या जमीन पर गिरकर दम तोड़ देते हैं। यह संक्रमण अक्सर पानी में सड़ रहे जैविक पदार्थों या मृत जीवों से फैलता है।

    2019 की त्रासदी की यादें ताजा
    गौरतलब है कि 2019 में इसी सांभर झील में लगभग 18,000 से अधिक पक्षियों की मौत ने पूरे देश को हिला दिया था। उस समय भी जांच में एवियन बॉटूलिज्म की पुष्टि हुई थी। झील का पानी अत्यधिक नमकीन और प्रदूषित पाया गया था। इस बार भी वही हालात फिर से सामने आने लगे हैं, जिससे स्थानीय पर्यावरणविद चिंतित हैं।

    रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू, मॉनिटरिंग बढ़ाई गई
    वन विभाग ने झील के प्रभावित हिस्सों में रेस्क्यू और मॉनिटरिंग ऑपरेशन शुरू किया है। झील के किनारे और अंदरूनी इलाकों में कंट्रोल रूम स्थापित किए गए हैं, जहां अधिकारियों की टीमें लगातार निगरानी कर रही हैं। आसपास के गांवों में स्थानीय लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि वे मृत पक्षियों को हाथ न लगाएं और तुरंत सूचना दें।

    वन विभाग के अधिकारी डॉ. आर.के. शर्मा ने बताया, “हमने झील के पानी के सैंपल लिए हैं और प्रयोगशाला में भेजे हैं। शुरुआती संकेतों से लगता है कि झील के कुछ हिस्सों में ऑक्सीजन लेवल बहुत कम है, जिससे बैक्टीरिया पनप रहे हैं। अभी जांच रिपोर्ट आने के बाद ही मौत का सटीक कारण बताया जा सकेगा।”

    विशेषज्ञों ने जताई चिंता
    पर्यावरण विशेषज्ञों ने चेताया है कि सांभर झील में बार-बार होने वाली ऐसी घटनाएं एक पर्यावरणीय चेतावनी हैं। झील में अनियंत्रित औद्योगिक अपशिष्ट, नमक उत्पादन की गतिविधियाँ और पर्यटन का दबाव इसकी पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा रहे हैं। पर्यावरणविद डॉ. सुमित जोशी ने कहा कि “सांभर झील एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है, और यहां प्रवासी पक्षियों का ठहरना भारत के पर्यावरण संतुलन का संकेत है। यदि इस तरह की घटनाएं बार-बार होती रहीं तो यह जैव विविधता के लिए खतरनाक साबित होगा।”

    स्थानीय प्रशासन ने दिए निर्देश
    इस घटना के बाद जयपुर और नागौर जिलों के अधिकारियों ने झील के आस-पास सफाई और जल गुणवत्ता की जांच तेज करने के आदेश दिए हैं। झील में बहने वाले नालों की सफाई और आसपास की औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अपशिष्ट पर भी सख्त निगरानी रखी जा रही है। प्रशासन ने कहा कि “यदि किसी भी फैक्ट्री या नमक उत्पादन इकाई को प्रदूषण फैलाते पाया गया तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।”

    प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा के लिए नई रणनीति पर विचार
    वन विभाग आने वाले हफ्तों में झील के पारिस्थितिक संतुलन को सुधारने के लिए विशेष योजना तैयार करने जा रहा है। इसमें जल प्रवाह बढ़ाने, प्रदूषण स्रोतों की पहचान करने और जलाशय की जैविक सफाई जैसे उपाय शामिल होंगे। साथ ही प्रवासी पक्षियों की निगरानी के लिए ड्रोन सर्विलांस और जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम भी लागू करने की तैयारी है।

    सांभर झील में इस समय हजारों प्रवासी पक्षी अफ्रीका, यूरोप और साइबेरिया से आते हैं। ऐसे में यह घटना न केवल राजस्थान बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के प्रवासी पक्षी संरक्षण प्रयासों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है।

    विशेषज्ञों का मानना है कि यदि तुरंत और ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो 2019 जैसी त्रासदी दोहराई जा सकती है। झील में पक्षियों की यह मौतें हमें यह याद दिलाती हैं कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना ही सच्चा पर्यावरण संरक्षण है।

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