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चुनाव आयोग ने राहुल गांधी द्वारा हरियाणा में लगाए गए वोट चोरी के आरोपों को खारिज कर दिया है। आयोग ने इस मामले में स्पष्ट किया कि दिए गए सबूत पर्याप्त नहीं हैं और आरोपों की गंभीरता और सत्यापन के लिए अतिरिक्त जानकारी की आवश्यकता है। आयोग ने राहुल गांधी से यह भी पूछा कि क्या वे चुनावी सूचियों के गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) का समर्थन करते हैं या इसका विरोध करते हैं।
SIR का उद्देश्य निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता सूचियों को अधिक पारदर्शी और सटीक बनाना है। आयोग ने राहुल गांधी से यह जानने की कोशिश की कि क्या उनका आरोप वोट चोरी की समस्या को उजागर करने के लिए था या इसके पीछे अन्य राजनीतिक उद्देश्य हैं। आयोग ने स्पष्ट किया कि इस तरह के गंभीर आरोपों के लिए विधिक और प्रक्रियात्मक आधार आवश्यक होता है, और इसे बिना पुष्ट प्रमाण के सामने रखना चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करता है।
चुनाव आयोग ने मतदान एजेंटों की भूमिका पर भी सवाल उठाया। आयोग ने पूछा कि मतदान एजेंट किस प्रकार से वोटिंग प्रक्रिया में उपस्थित थे और क्या कांग्रेस ने इन एजेंटों को पूरी तरह सक्रिय रखा। आयोग ने यह भी कहा कि बिहार में कांग्रेस की निष्क्रियता ने मतदाता सुरक्षा और पारदर्शिता के दृष्टिकोण से चिंता उत्पन्न की है।
विशेषज्ञों का कहना है कि चुनाव आयोग का यह निर्णय यह संकेत देता है कि राजनीतिक आरोपों की जांच बिना सबूतों के गंभीर रूप से नहीं की जा सकती। राहुल गांधी के आरोपों के खारिज होने का मतलब यह नहीं कि चुनाव में किसी तरह की अनियमितताएं नहीं हुईं, बल्कि यह कि आयोग के पास इस दावे को सत्यापित करने के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं थे।
चुनाव आयोग ने इस फैसले के साथ यह भी रेखांकित किया कि राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को मतदाता सूचियों और मतदान प्रक्रिया की पारदर्शिता में सहयोग करना चाहिए। आयोग ने यह सुझाव दिया कि सभी दलों को SIR प्रक्रिया का समर्थन करना चाहिए, जिससे चुनावों की निष्पक्षता और भरोसेमंदता सुनिश्चित हो।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी के इस बयान के बाद कांग्रेस ने इसे वोट बैंक और चुनावी रणनीति के हिस्से के रूप में पेश किया। हालांकि, चुनाव आयोग के इस निर्णय ने कांग्रेस के आरोपों को चुनौती दी और इसे लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का हिस्सा मानने की दिशा में संकेत दिया।
SIR या गहन मतदाता सूची संशोधन के समर्थन या विरोध पर राहुल गांधी की प्रतिक्रिया पर अब राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई है। आयोग का सवाल यह भी है कि क्या विपक्षी दल इस प्रक्रिया के प्रति संवेदनशील और सक्रिय हैं, ताकि मतदाता और चुनाव प्रक्रिया सुरक्षित और पारदर्शी बनी रहे।
चुनाव आयोग ने इस मामले में स्पष्ट किया कि बिना प्रमाण के लगाए गए आरोप न केवल राजनीतिक विवाद पैदा कर सकते हैं बल्कि मतदाता और चुनाव प्रक्रिया पर भी असर डाल सकते हैं। आयोग ने यह संदेश दिया कि सभी राजनीतिक दलों को निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने में सहयोग करना चाहिए।
इस निर्णय के बाद राजनीतिक माहौल में हलचल देखने को मिली है। कांग्रेस समर्थक इस फैसले को आलोचना के रूप में देख रहे हैं, जबकि विपक्ष इसे चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और आयोग की निष्पक्षता का संकेत मान रहा है। आयोग ने यह सुनिश्चित किया कि भविष्य में इस तरह के आरोपों के लिए ठोस सबूत और सही प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है।
कुल मिलाकर चुनाव आयोग का यह कदम यह दिखाता है कि भारत में लोकतंत्र और चुनाव प्रक्रिया की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों का खारिज होना और SIR के सवालों का उठना राजनीतिक दलों के लिए यह सीख देता है कि आरोप लगाने से पहले प्रमाण और विधिक आधार आवश्यक हैं।








