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भारत में ऑनलाइन गेमिंग, सट्टा और गैंबलिंग (Gambling) का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है। मोबाइल और इंटरनेट की आसान पहुंच ने इस क्षेत्र को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया है। लेकिन यह ऊंचाई समाज के लिए एक गहरी गिरावट का संकेत भी बन चुकी है। एडवोकेट विराग गुप्ता ने कहा है कि जुआ या सट्टा खेलना किसी भी रूप में संवैधानिक अधिकार नहीं है। यह न केवल आर्थिक रूप से नुकसानदायक है, बल्कि सामाजिक और मानसिक रूप से भी व्यक्ति को खोखला बना देता है।
जुए को कानूनी संरक्षण नहीं मिल सकता
एडवोकेट गुप्ता ने कहा कि संविधान में नागरिकों को स्वतंत्रता, रोजगार और अभिव्यक्ति का अधिकार दिया गया है, लेकिन इन अधिकारों का मतलब यह नहीं कि कोई व्यक्ति जुए या सट्टेबाजी जैसी गतिविधियों में शामिल होकर उन्हें अपनी स्वतंत्रता के रूप में परिभाषित करे। जुआ एक नैतिक अपराध है, जो समाज की जड़ों को कमजोर करता है। उनका कहना है कि देश में अगर इस पर नियंत्रण नहीं लगाया गया तो यह युवाओं की एक पूरी पीढ़ी को गलत दिशा में ले जा सकता है।
डिजिटल युग में खतरनाक हो रहा है सट्टेबाजी का जाल
आज मोबाइल ऐप्स और ऑनलाइन पोर्टल्स के जरिए लाखों युवा जुए और सट्टेबाजी में शामिल हो रहे हैं। क्रिकेट, फुटबॉल या ई-स्पोर्ट्स जैसे खेलों में पैसे लगाना अब सामान्य होता जा रहा है। कंपनियां ‘गेमिंग’ के नाम पर इस तरह के ऐप्स को प्रमोट कर रही हैं, लेकिन इनके पीछे छिपा असली चेहरा गैंबलिंग का है। कई ऐप्स के जरिए विदेशी सट्टेबाज भारत के बाजार में प्रवेश कर रहे हैं, जिससे देश की आर्थिक प्रणाली पर भी असर पड़ रहा है।
युवाओं पर पड़ रहा है मानसिक और आर्थिक प्रभाव
जुआ और ऑनलाइन गेमिंग की लत अब युवाओं में एक बड़ी सामाजिक समस्या बन चुकी है। कई मामलों में लोग अपनी जमा पूंजी खो देते हैं और मानसिक तनाव या अवसाद का शिकार हो जाते हैं। एडवोकेट गुप्ता के अनुसार, “गेमिंग में शामिल लोगों की संख्या में हर महीने वृद्धि हो रही है। सरकार और समाज दोनों को मिलकर इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।”
कानूनी ढांचे की जरूरत और नियमन की मांग
भारत में फिलहाल गैंबलिंग पर रोक से जुड़े कई पुराने कानून हैं, लेकिन डिजिटल युग में ऑनलाइन गेमिंग को लेकर कानूनी ढांचा अस्पष्ट है। कई राज्य सरकारें इस पर अपने-अपने स्तर पर कार्रवाई कर रही हैं, लेकिन एक राष्ट्रीय नीति (National Policy) की जरूरत है जो ऑनलाइन गेमिंग, बेटिंग और जुए के बीच स्पष्ट रेखा खींच सके। एडवोकेट गुप्ता का कहना है कि केंद्र सरकार को इस दिशा में ठोस कानून बनाना चाहिए ताकि युवाओं को इस खतरनाक लत से बचाया जा सके।
समाज के प्रति चेतावनी और जिम्मेदारी
एडवोकेट गुप्ता ने चेतावनी दी है कि यदि गेमिंग और गैंबलिंग को रोकने के लिए कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो यह समाज में एक नई सामाजिक बुराई का रूप ले सकता है। परिवार टूट सकते हैं, अपराध दर बढ़ सकती है और युवा वर्ग अपनी ऊर्जा और प्रतिभा को गलत दिशा में झोंक देगा। उन्होंने कहा कि स्कूलों, कॉलेजों और अभिभावकों को भी इस दिशा में जागरूकता फैलानी चाहिए ताकि बच्चों को शुरू से ही इस प्रवृत्ति से दूर रखा जा सके।
देश में गेमिंग और गैंबलिंग का बढ़ता ट्रेंड सिर्फ एक मनोरंजन या तकनीकी उन्नति नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर सामाजिक चुनौती है। एडवोकेट विराग गुप्ता का यह बयान न सिर्फ एक चेतावनी है बल्कि सरकार और समाज दोनों के लिए एक आह्वान भी है कि अब वक्त आ गया है जब इस डिजिटल जुए पर अंकुश लगाने के लिए सख्त कानून और सामाजिक जागरूकता दोनों की जरूरत है।








