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पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी तैयारियों के बीच एक बड़ा और संवेदनशील मुद्दा सामने आया है। पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (Chief Electoral Officer – CEO) ने 2026 की ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी करते हुए बताया है कि 58 लाख से अधिक पहले से पंजीकृत मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए हैं। यह कार्रवाई राज्य में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया के तहत की गई है।
चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार, ड्राफ्ट मतदाता सूची से हटाए गए मतदाताओं की कुल संख्या 58,20,898 है। इस खुलासे के बाद राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है और सत्तारूढ़ दल व विपक्ष के बीच तीखी बयानबाज़ी शुरू हो गई है।
विशेष गहन पुनरीक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके तहत मतदाता सूची की घर-घर जाकर, दस्तावेजों के आधार पर गहन जांच की जाती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि मतदाता सूची में केवल वही नाम रहें, जो वास्तव में पात्र हैं।
पश्चिम बंगाल में यह पुनरीक्षण ऐसे समय पर किया गया है, जब राज्य में अगले वर्ष की शुरुआत में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। ऐसे में मतदाता सूची की शुद्धता और पारदर्शिता को लेकर चुनाव आयोग विशेष सतर्कता बरत रहा है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, मतदाता सूची से नाम हटाने के पीछे कई ठोस कारण सामने आए हैं। इनमें सबसे बड़ा कारण उन मतदाताओं की पहचान है, जो अब मतदान के योग्य नहीं रहे।
कारणवार आंकड़े इस प्रकार हैं:
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मृत घोषित मतदाता: 24,16,852
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स्थायी रूप से स्थानांतरित मतदाता: 19,88,076
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लापता (पते पर न मिलने वाले) मतदाता: 12,20,038
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डुप्लीकेट (दोहरी प्रविष्टि) वाले मतदाता: 1,38,328
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अन्य कारणों से हटाए गए नाम: 57,604
👉 कुल हटाए गए नाम: 58,20,898
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि सबसे अधिक नाम मृत्यु और स्थायी स्थानांतरण के कारण हटाए गए हैं।
चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर स्पष्ट किया है कि यह ड्राफ्ट मतदाता सूची है, न कि अंतिम सूची। आयोग का कहना है कि ड्राफ्ट सूची जारी करने का उद्देश्य ही यह होता है कि नागरिक अपने नाम की जांच कर सकें और यदि कोई त्रुटि हो, तो उसे समय रहते सुधारा जा सके।
चुनाव आयोग ने अपने पोर्टल पर जारी बयान में कहा है कि,
“जो भी व्यक्ति स्वयं को इस प्रक्रिया से प्रभावित महसूस करता है, वह फॉर्म-6 के माध्यम से घोषणा पत्र और आवश्यक दस्तावेजों के साथ अपना दावा प्रस्तुत कर सकता है।”
चुनाव आयोग ने बताया है कि
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ड्राफ्ट मतदाता सूची पर दावे और आपत्तियां दर्ज करने की अवधि 15 जनवरी 2026 तक निर्धारित की गई है।
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इस अवधि के बाद सभी दावों की जांच कर अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी।
आयोग ने नागरिकों से अपील की है कि वे जल्द से जल्द सूची में अपना नाम जांचें, ताकि चुनाव के समय किसी भी तरह की परेशानी न हो।
58 लाख से अधिक नाम हटाए जाने की खबर सामने आते ही विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग के फैसले पर सवाल उठाए हैं। विपक्ष का आरोप है कि इतनी बड़ी संख्या में नाम हटने से गरीब, प्रवासी मजदूर और हाशिए पर रहने वाले वर्ग प्रभावित हो सकते हैं।
वहीं सत्तारूढ़ दल ने आयोग के कदम का समर्थन करते हुए कहा है कि
“फर्जी, डुप्लीकेट और अपात्र मतदाताओं के नाम हटाना लोकतंत्र को मजबूत करता है।”
ड्राफ्ट सूची जारी होने के बाद कई आम नागरिकों ने भी चिंता जताई है। सोशल मीडिया पर लोग अपने नाम गायब होने की आशंका व्यक्त कर रहे हैं और चुनाव आयोग से स्पष्ट दिशानिर्देश की मांग कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इतनी बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने के बाद जन-जागरूकता अभियान चलाना बेहद जरूरी है, ताकि कोई भी पात्र मतदाता मतदान के अधिकार से वंचित न रहे।
चुनाव विशेषज्ञों के अनुसार, मतदाता सूची का पुनरीक्षण आवश्यक प्रक्रिया है, लेकिन इसकी पारदर्शिता और संवेदनशीलता बेहद महत्वपूर्ण होती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि दावे और आपत्तियों की प्रक्रिया सुचारू रूप से चली, तो अंतिम मतदाता सूची अधिक सटीक और विश्वसनीय होगी।
पश्चिम बंगाल की ड्राफ्ट मतदाता सूची से 58.20 लाख नामों का हटाया जाना राज्य की चुनावी राजनीति में एक बड़ा और निर्णायक घटनाक्रम माना जा रहा है। चुनाव आयोग जहां इसे आवश्यक और नियमसम्मत प्रक्रिया बता रहा है, वहीं विपक्ष और आम नागरिक इसकी निष्पक्षता पर नजर बनाए हुए हैं।
अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि 15 जनवरी 2026 तक दायर दावों के बाद अंतिम मतदाता सूची में कितने नाम वापस जोड़े जाते हैं। यह प्रक्रिया आने वाले विधानसभा चुनावों की दिशा और विश्वसनीयता तय करने में अहम भूमिका निभाएगी।








