




प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज सुबह भारत से जापान के लिए रवाना हो गए, जहाँ वे भारत–जापान समिट 2025 में हिस्सा लेंगे। इस उच्चस्तरीय दौरे को एशिया की रणनीतिक राजनीति, रक्षा सहयोग और आर्थिक साझेदारी की दिशा में एक अहम मोड़ माना जा रहा है।
भारत और जापान के रिश्ते हमेशा से ही आपसी विश्वास, सांस्कृतिक निकटता और रणनीतिक सहयोग पर आधारित रहे हैं। लेकिन मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों—विशेषकर हिंद–प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific) की बदलती भू-राजनीति—में यह साझेदारी और भी अहम हो गई है।
भारत–जापान संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत और जापान के संबंध केवल आधुनिक राजनीति तक सीमित नहीं हैं। दोनों देशों का सांस्कृतिक रिश्ता बौद्ध धर्म से लेकर कला, शिक्षा और व्यापार तक फैला हुआ है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान की पुनर्निर्माण यात्रा में भारत ने उसका साथ दिया और समय-समय पर दोनों देशों ने एक-दूसरे का सहयोग किया।
21वीं सदी में यह रिश्ता और मज़बूत हुआ। प्रधानमंत्री मोदी और जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने इस रिश्ते को “विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी” (Special Strategic and Global Partnership) का दर्जा दिया।
इस समिट की प्रमुख संभावनाएँ
इस बार की भारत–जापान समिट में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना है—
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रक्षा और सुरक्षा सहयोग
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चीन की बढ़ती गतिविधियों और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अस्थिरता को देखते हुए भारत और जापान रक्षा सहयोग को और गहरा करने जा रहे हैं।
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दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच संयुक्त अभ्यास (Malabar Exercise) को और विस्तार देने पर सहमति बन सकती है।
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उन्नत रक्षा तकनीक, ड्रोन और साइबर सुरक्षा पर भी समझौते संभव हैं।
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आर्थिक और व्यापारिक साझेदारी
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जापान पहले से ही भारत का बड़ा निवेशक देश है। मेट्रो प्रोजेक्ट्स, हाई-स्पीड रेल (बुलेट ट्रेन) और इंडस्ट्रियल कॉरिडोर में उसका बड़ा योगदान है।
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इस समिट में नए निवेश समझौते, ग्रीन टेक्नोलॉजी और डिजिटल इनोवेशन पर करार होने की उम्मीद है।
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जापानी कंपनियाँ भारतीय स्टार्टअप्स में निवेश को लेकर भी उत्साहित हैं।
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प्रौद्योगिकी और नवाचार
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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), क्वांटम कंप्यूटिंग, 5G–6G तकनीक और सेमीकंडक्टर उत्पादन में सहयोग को लेकर बड़ी घोषणाएँ हो सकती हैं।
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भारत की “मेक इन इंडिया” नीति और जापान की “चाइना प्लस वन” रणनीति, दोनों को जोड़ने की दिशा में ठोस कदम उठेंगे।
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- सांस्कृतिक एवं शैक्षिक आदान–प्रदान
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इस बार शिक्षा और रिसर्च को लेकर भी अहम MoU साइन हो सकते हैं।
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जापानी विश्वविद्यालयों और IIT/IIM जैसे भारतीय संस्थानों के बीच स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम की संभावनाएँ बढ़ेंगी।
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हिंद–प्रशांत क्षेत्र की राजनीति में भारत–जापान की भूमिका
चीन की आक्रामक नीतियों और दक्षिण चीन सागर में उसके वर्चस्व की कोशिशों के बीच भारत और जापान की भूमिका बहुत अहम हो जाती है। दोनों देश क्वाड (QUAD) समूह—जिसमें अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हैं—के मज़बूत स्तंभ हैं।
इस समिट में क्वाड देशों की सामूहिक सुरक्षा, आपसी सहयोग और समुद्री स्वतंत्रता सुनिश्चित करने पर विशेष चर्चा हो सकती है।
जापान की घरेलू राजनीति और भारत की अहमियत
जापान में नई सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा बेहद प्रतीकात्मक भी है। जापानी नेतृत्व चाहता है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक और उभरते आर्थिक महाशक्ति के साथ रिश्ते मज़बूत हों।
भारत को जापान न केवल एक बड़ा बाज़ार मानता है, बल्कि उसे तकनीकी और रणनीतिक साझेदारी का अहम केंद्र भी मानता है।
विशेषज्ञों की राय
राजनयिकों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञों का मानना है कि यह दौरा भारत और जापान दोनों के लिए “गेम-चेंजर” साबित हो सकता है।
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डॉ. सुब्रहमण्यम जयशंकर (विदेश मंत्री, भारत):
“भारत–जापान साझेदारी केवल आर्थिक या रक्षा सहयोग तक सीमित नहीं है, यह दो लोकतांत्रिक देशों की साझा दृष्टि है।” -
टोक्यो विश्वविद्यालय के प्रो. हीरोशी ताकादा:
“जापान को भारत के साथ सहयोग इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है और भविष्य की टेक्नोलॉजी का केंद्र भी।”
प्रधानमंत्री मोदी का यह जापान दौरा केवल एक राजनयिक यात्रा नहीं, बल्कि एशिया की नई शक्ति-समीकरण (Power Equation) की दिशा तय करने वाला कदम है।
भारत और जापान का साथ मिलकर चलना न केवल दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरे हिंद–प्रशांत क्षेत्र की शांति, सुरक्षा और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।
दुनिया की बदलती परिस्थितियों में यह यात्रा दोनों देशों को नई ऊर्जा, नई संभावनाएँ और नई साझेदारी का आधार प्रदान करेगी।