




महाराष्ट्र में लंबे समय से जारी मराठा आरक्षण आंदोलन ने आखिरकार एक निर्णायक मोड़ ले लिया है। आंदोलन का चेहरा बन चुके मनोज जरांगे पाटिल ने 17 दिन चले आमरण अनशन को समाप्त करने की घोषणा की। यह फैसला उन्होंने सरकार द्वारा आंदोलनकारियों की मुख्य मांगों को स्वीकार करने और ठोस कदम उठाने के आश्वासन के बाद लिया। इस तरह मराठा समाज को उनकी सबसे बड़ी मांग—कुणबी जाति का दर्जा देकर ओबीसी आरक्षण का लाभ—मिलने का रास्ता साफ हो गया है।
मराठा समाज महाराष्ट्र की सबसे बड़ी और प्रभावशाली जातियों में से एक है। लंबे समय से यह समाज आरक्षण की मांग करता रहा है। 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण देने का निर्णय लिया था। लेकिन 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इस आरक्षण को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण की सीमा को पार नहीं किया जा सकता।
इसके बाद से मराठा समाज की नाराज़गी बढ़ती गई। आंदोलनकारियों ने सरकार से यह मांग रखी कि उन्हें कुणबी जाति में शामिल कर दिया जाए, ताकि वे ओबीसी आरक्षण का लाभ उठा सकें।
मनोज जरांगे पाटिल पिछले दो वर्षों से इस आंदोलन का चेहरा बने हुए हैं। उन्होंने राज्यभर में यात्राएँ कर मराठा समाज को एकजुट किया। हाल ही में मुंबई के आज़ाद मैदान में उन्होंने आमरण अनशन शुरू किया, जिसने पूरे महाराष्ट्र का ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
जरांगे का कहना था कि जब तक सरकार मराठा समाज को कुणबी जाति का दर्जा देने का ठोस फैसला नहीं लेगी, तब तक वह आंदोलन जारी रखेंगे। उनकी तबीयत लगातार बिगड़ रही थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी।
लगातार बढ़ते दबाव और राज्यभर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों के बाद महाराष्ट्र सरकार ने आखिरकार आंदोलनकारियों की मांगें मान लीं। सरकार ने ऐतिहासिक हैदराबाद गज़ेटियर का हवाला देते हुए यह निर्णय लिया कि जिन मराठा परिवारों के पास पुराने दस्तावेज़ हैं, उन्हें कुणबी जाति में शामिल किया जाएगा। इसके अलावा सरकार ने यह भी कहा कि जिनके पास दस्तावेज़ नहीं हैं, उनके लिए विशेष जांच कमेटी बनाई जाएगी।
मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने यह आश्वासन दिया कि मराठा समाज के साथ किसी प्रकार का अन्याय नहीं होगा। यही नहीं, सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि आरक्षण का लाभ जल्द ही सभी योग्य मराठा परिवारों तक पहुँचेगा।
सरकार के लिखित आश्वासन और ठोस कार्यवाही शुरू होने के संकेत मिलने के बाद मनोज जरांगे ने अपना अनशन तोड़ दिया। उन्होंने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा कि यह आंदोलन मराठा समाज की एकजुटता और संघर्ष का परिणाम है।
जरांगे ने स्पष्ट किया कि सरकार को अब अपने वादे पूरे करने होंगे। उन्होंने चेतावनी भी दी कि यदि आश्वासन को समय पर लागू नहीं किया गया, तो आंदोलन दोबारा शुरू होगा और इस बार और भी व्यापक स्तर पर किया जाएगा।
अनशन समाप्त होने की घोषणा के बाद मराठा समाज में खुशी और राहत की लहर दौड़ गई। हजारों की संख्या में मौजूद लोगों ने आतिशबाजी और नारेबाज़ी करके अपनी खुशी व्यक्त की। गाँव-गाँव और शहरों में मिठाइयाँ बाँटी गईं।
राजनीतिक हलकों में भी इस फैसले को बड़ी सफलता माना जा रहा है। कई नेताओं ने जरांगे के धैर्य और संघर्ष की सराहना की। वहीं विपक्ष ने सरकार को घेरते हुए कहा कि अगर पहले ही यह कदम उठाया जाता तो आंदोलन इतना लंबा न खिंचता और लोगों को कष्ट न झेलना पड़ता।
हालाँकि आंदोलन समाप्त हो गया है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह इस फैसले को ज़मीनी स्तर पर कैसे लागू करेगी। जिन परिवारों के पास दस्तावेज़ नहीं हैं, उनके लिए प्रक्रिया सरल और पारदर्शी होनी चाहिए।
इसके अलावा, पहले से ओबीसी श्रेणी में आने वाले अन्य समाजों ने भी इस फैसले पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि मराठा समाज के आने से ओबीसी आरक्षण का दबाव बढ़ेगा और उनके अवसरों में कमी आएगी। इसलिए सरकार को संतुलन बनाना होगा।
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन का यह अध्याय एक बड़ी उपलब्धि के रूप में दर्ज हुआ है। मनोज जरांगे पाटिल के दृढ़ निश्चय और मराठा समाज की एकजुटता ने सरकार को झुकने पर मजबूर किया। आंदोलन के शांतिपूर्ण अंत से प्रदेश में स्थिरता लौटने की उम्मीद है।
अब सारी नज़रें सरकार की कार्यवाही पर टिकी हैं कि वह किस तरह इस निर्णय को लागू करती है और समाज के सभी वर्गों के बीच संतुलन बनाए रखती है।