




महाराष्ट्र की राजनीति और प्रशासनिक दुनिया में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बनी हुई हैं सोलापुर की युवा महिला IPS अधिकारी अंजना कृष्णा। शिक्षक दिवस के दिन सामने आई इस घटना ने लोकतंत्र और प्रशासनिक निष्पक्षता के मायनों को एक नई परिभाषा दी है।
दरअसल, उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने फोन पर किसी मुद्दे पर प्रशासनिक हस्तक्षेप की मांग की, लेकिन अंजना कृष्णा ने साफ शब्दों में कहा कि वे केवल नियमों और कानून के दायरे में रहकर ही निर्णय लेंगी। इस साहसिक कदम ने न केवल उन्हें सुर्खियों में ला दिया है, बल्कि उनके प्रति जनता और सोशल मीडिया पर जबरदस्त सम्मान भी देखने को मिला।
अंजना कृष्णा महाराष्ट्र कैडर की 2020 बैच की आईपीएस अधिकारी हैं। युवा, ऊर्जावान और ईमानदार छवि रखने वाली अंजना ने बहुत कम समय में अपनी काबिलियत साबित की है। सोलापुर जैसे संवेदनशील और बड़े जिले में उनकी नियुक्ति ही उनके प्रशासनिक कौशल का प्रमाण है।
उनका मानना है कि “कानून से ऊपर कोई नहीं है” और यही सिद्धांत उन्होंने उपमुख्यमंत्री से बातचीत के दौरान भी दोहराया।
रिपोर्ट्स के अनुसार, अजित पवार ने किसी स्थानीय मामले को लेकर फोन किया और उस पर तत्काल कार्रवाई की अपेक्षा जताई। यह मामला राजनीतिक रूप से संवेदनशील था।
लेकिन अंजना कृष्णा ने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा कि वे केवल नियमों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं के अनुसार ही कदम उठाएंगी। राजनीतिक दबाव में आकर निर्णय लेना न तो उचित है और न ही लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुकूल।
यह जवाब सीधे-सीधे सत्ता के दबाव के सामने प्रशासनिक ईमानदारी की मिसाल बन गया।
भारत में अक्सर यह शिकायत सुनाई देती है कि राजनीतिक दबाव के चलते प्रशासनिक अधिकारी स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पाते। लेकिन अंजना कृष्णा ने यह मिथक तोड़ते हुए यह साबित किया कि अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो तो सत्ता के दबाव के बावजूद भी निष्पक्षता से काम किया जा सकता है।
उनकी इस दृढ़ता को “लोकतांत्रिक साहस” कहा जा रहा है।
यह घटना सामने आते ही सोशल मीडिया पर अंजना कृष्णा की जमकर सराहना हो रही है। ट्विटर (अब X), फेसबुक और इंस्टाग्राम पर #AnjanaKrishna और #WomenIPS ट्रेंड कर रहा है।
लोग लिख रहे हैं कि—
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“ऐसे अफसर ही लोकतंत्र को मजबूत करते हैं।”
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“राजनीति से ऊपर कानून होना चाहिए और अंजना कृष्णा ने यह दिखा दिया।”
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“महिला अधिकारी होने के बावजूद इतना साहस दिखाना प्रेरणादायक है।”
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रशासन और राजनीति दोनों का संतुलन लोकतंत्र की मजबूती का आधार है। लेकिन जब सत्ता राजनीति प्रशासनिक कार्यों में दखल देती है, तो कई बार ईमानदार अधिकारी मुश्किल स्थिति में आ जाते हैं।
ऐसे में अंजना कृष्णा का यह कदम आने वाले समय में अन्य अधिकारियों के लिए भी प्रेरणा बनेगा। यह संदेश जाएगा कि नियमों और कानून के पालन में ही असली सफलता और सम्मान है।
इस घटना ने महाराष्ट्र की राजनीति में भी हलचल मचा दी है। विपक्षी दलों ने अंजना कृष्णा की तारीफ करते हुए कहा कि “अगर हर अधिकारी इसी तरह काम करे तो प्रशासन में पारदर्शिता और विश्वास कायम रहेगा।”
वहीं, सत्ता पक्ष के नेताओं ने इस विवाद को छोटा बताते हुए कहा कि “यह केवल संवाद का एक हिस्सा था।” हालांकि, जनता की नज़र में अंजना कृष्णा की छवि एक निर्भीक और निष्पक्ष अधिकारी की बन चुकी है।
यह घटना खासतौर से महिला अधिकारियों के लिए भी प्रेरणादायी है। अक्सर कहा जाता है कि महिला अधिकारियों पर दबाव ज्यादा होता है, लेकिन अंजना कृष्णा ने यह साबित किया कि हिम्मत और ईमानदारी के आगे कोई भी दबाव मायने नहीं रखता।
उनकी यह भूमिका आने वाले समय में उन युवाओं को भी प्रेरित करेगी जो प्रशासनिक सेवाओं में करियर बनाना चाहते हैं।
सोलापुर की युवा IPS अधिकारी अंजना कृष्णा ने उपमुख्यमंत्री अजित पवार के दबाव के बावजूद अपने प्रशासनिक दृष्टिकोण और नियमों को प्राथमिकता देकर जो साहस दिखाया है, वह भारतीय लोकतंत्र की सच्ची तस्वीर पेश करता है।
उनकी यह दृढ़ता बताती है कि लोकतंत्र केवल नेताओं का नहीं, बल्कि ईमानदार अधिकारियों का भी है, जो नियम, कानून और निष्पक्षता को सर्वोपरि मानते हैं।