




महाराष्ट्र सरकार के मंत्री और ओबीसी नेता छगन भुजबल ने मराठा आरक्षण के संबंध में हाल ही में जारी सरकारी आदेश (जीआर) का विरोध किया है। उनका कहना है कि इस आदेश से ओबीसी समुदाय के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और इससे सामाजिक असंतोष बढ़ सकता है।
2 सितंबर 2025 को, महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को ओबीसी श्रेणी में शामिल करते हुए उन्हें आरक्षण देने का निर्णय लिया। इस निर्णय के तहत, मराठा समुदाय को ‘कुनबी’ जाति का प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा, जिससे उन्हें ओबीसी कोटे से आरक्षण का लाभ मिलेगा। हालांकि, छगन भुजबल ने इस निर्णय पर आपत्ति जताते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से इसे वापस लेने या संशोधित करने की मांग की है।
भुजबल का कहना है कि मराठा और कुनबी जातियां अलग-अलग हैं, और दोनों को समान मानना न्यायसंगत नहीं है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने ओबीसी समुदाय को विश्वास में लिए बिना यह निर्णय लिया, जिससे ओबीसी समाज में असंतोष फैल सकता है।
ओबीसी नेताओं ने भी इस निर्णय पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उनका कहना है कि मराठा समुदाय को ओबीसी कोटे से आरक्षण देना ओबीसी समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने इस निर्णय को वापस नहीं लिया, तो वे सड़कों पर उतरकर विरोध करेंगे।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि मराठा आरक्षण से ओबीसी कोटे में कोई कटौती नहीं होगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जिनके पास वैध दस्तावेज और रिकॉर्ड होंगे, केवल उन्हीं को सरकारी प्रमाण पत्र दिए जाएंगे। सरकार का कहना है कि इस निर्णय से सभी समुदायों के हितों का ध्यान रखा गया है।
यह विवाद महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। ओबीसी समुदाय का समर्थन महत्वपूर्ण है, और यदि उनका असंतोष बढ़ता है, तो यह आगामी चुनावों में प्रभाव डाल सकता है। विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को उठाते हुए सरकार को घेरने की कोशिश की है।
मराठा आरक्षण पर जारी विवाद ने महाराष्ट्र की राजनीति को एक नई दिशा दी है। छगन भुजबल और ओबीसी नेताओं की आपत्ति, सरकार की स्थिति और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं इस मुद्दे को और जटिल बना रही हैं। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि सरकार इस विवाद को कैसे सुलझाती है और क्या ओबीसी समुदाय की चिंताओं का समाधान होता है या नहीं।