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    मराठी क्वीर लव मूवी ‘सबर बोंडा’: प्यार और पीड़ा की संवेदनशील कहानी, निर्देशक ने कहा- यह सिर्फ प्रेम नहीं, बल्कि शोक पर भी केंद्रित है

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         मराठी सिनेमा ने हमेशा समाज के संवेदनशील और गंभीर विषयों को पर्दे पर उतारने की कोशिश की है। इसी कड़ी में हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘सबर बोंडा’ (Sabar Bonda) ने दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी है। यह फिल्म न केवल एक क्वीर लव स्टोरी है, बल्कि इसमें प्रेम के साथ-साथ शोक और खोने की पीड़ा को भी बेहद भावुक अंदाज़ में दिखाया गया है।

    फिल्म के निर्देशक ने मीडिया से बातचीत में कहा कि “सबर बोंडा केवल प्रेम की कहानी नहीं है। यह फिल्म उस पीड़ा के बारे में भी है जो हम खोने के बाद महसूस करते हैं। प्रेम जितना गहरा होता है, शोक उतना ही तीव्र हो जाता है।”
    उनके अनुसार, यह फिल्म उन लोगों की भावनाओं को आवाज़ देती है जिन्हें अक्सर समाज के हाशिए पर रखा जाता है।

    भारत में क्वीर सिनेमा अब धीरे-धीरे मुख्यधारा का हिस्सा बनने लगा है। हालांकि अभी भी LGBTQIA+ समुदाय को समाज में पूर्ण स्वीकृति नहीं मिली है, लेकिन ऐसी फिल्में इस दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही हैं।
    ‘सबर बोंडा’ इस समुदाय की कहानी को संवेदनशील ढंग से पेश करती है और यह संदेश देती है कि प्रेम का स्वरूप किसी भी लैंगिक पहचान तक सीमित नहीं है।

    फिल्म की कहानी दो प्रमुख किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है, जिनका रिश्ता समाज की परंपराओं से परे जाकर प्रेम और आत्मीयता की गहराइयों को छूता है।
    लेकिन कहानी सिर्फ उनके मिलन तक सीमित नहीं रहती—इसमें खोने, बिछड़ने और शोक का भी गहरा पक्ष है। यही पहलू फिल्म को एक साधारण प्रेम कहानी से आगे बढ़ाकर एक भावनात्मक यात्रा में बदल देता है।

    फिल्म के कलाकारों ने अपने अभिनय से किरदारों में वास्तविकता और गहराई भर दी है। खासकर मुख्य पात्रों का भावनात्मक संघर्ष और प्रेम की अभिव्यक्ति दर्शकों को भीतर तक छू जाती है।
    सिनेमैटोग्राफी में भी निर्देशक ने माहौल और भावनाओं को रंगों और दृश्यों के माध्यम से उकेरा है, जिससे दर्शक किरदारों की दुनिया का हिस्सा महसूस करते हैं।

    फिल्म समीक्षकों ने ‘सबर बोंडा’ को “संवेदनशील और साहसी प्रयास” करार दिया है।

    • कुछ समीक्षकों ने कहा कि यह फिल्म भारतीय सिनेमा में क्वीर विषयों को लेकर एक नया मील का पत्थर साबित हो सकती है।

    • वहीं, दर्शकों ने सोशल मीडिया पर इसे “दिल छू लेने वाली और आंखें नम करने वाली कहानी” बताया है।

    फिल्म की कहानी और इसका ट्रीटमेंट इसे सिर्फ भारत तक सीमित नहीं करता। जानकारों का मानना है कि ‘सबर बोंडा’ अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में भी सराही जाएगी।
    यह फिल्म वैश्विक दर्शकों को यह दिखाती है कि प्रेम और शोक की भावनाएँ सार्वभौमिक हैं, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कैसी भी हो।

    ‘सबर बोंडा’ सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि समाज में संवाद और बदलाव लाने की कोशिश भी है।
    यह फिल्म LGBTQIA+ समुदाय की स्वीकृति और अधिकारों की दिशा में सकारात्मक संदेश देती है। निर्देशक का मानना है कि सिनेमा समाज का आईना होता है और अगर इस तरह की कहानियाँ ज्यादा सामने आएंगी, तो समाज में सोच बदलने की गति तेज़ होगी।

    मराठी फिल्म ‘सबर बोंडा’ भारतीय सिनेमा में एक नया अध्याय जोड़ती है। यह फिल्म प्रेम, शोक और संवेदनाओं की गहराई में उतरकर दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है।
    निर्देशक ने इसे सिर्फ एक क्वीर लव स्टोरी तक सीमित नहीं रखा बल्कि इसे मानवीय भावनाओं की सार्वभौमिक कहानी बना दिया है।
    निस्संदेह, यह फिल्म आने वाले समय में क्वीर सिनेमा की दिशा और उसकी स्वीकृति को नया आयाम देने वाली साबित हो सकती है।

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