




भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) प्रणाली लागू होने के बाद से लगातार सुधार और पुनर्गठन की चर्चा होती रही है। इस बार सरकार ने एक बड़े कदम के तहत 420 से अधिक वस्तुओं पर दरों का पुनर्गठन (Rate Rationalisation) किया है। यह अब तक का सबसे बड़ा अभ्यास माना जा रहा है, क्योंकि इससे विभिन्न उद्योगों और उपभोक्ताओं पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।
सरकार ने इस बार जिन वस्तुओं को पुनर्गठन की सूची में शामिल किया है, उनमें दैनिक उपयोग की वस्तुएं, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक कच्चा माल, ऑटोमोबाइल से जुड़े उत्पाद, कपड़ा उद्योग और स्वास्थ्य उपकरण शामिल हैं।
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पहले दो प्रयासों में केवल सीमित वस्तुओं पर ध्यान दिया गया था।
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इस बार दायरा व्यापक है और असर भी ज्यादा होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम का उद्देश्य कर संरचना को सरल और तार्किक बनाना है ताकि उद्योगों को राहत मिले और उपभोक्ताओं को भी पारदर्शिता का लाभ मिल सके।
हालांकि दर पुनर्गठन को एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है, लेकिन अर्थशास्त्रियों और कर विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को अब लंबित जीएसटी सुधारों पर भी ध्यान देना होगा।
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एकीकृत कर दरें:
वर्तमान में जीएसटी में कई कर दरें (0%, 5%, 12%, 18% और 28%) लागू हैं। विशेषज्ञ लंबे समय से कह रहे हैं कि इन्हें घटाकर केवल 2 या 3 दरों में सीमित करना चाहिए। -
इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) में स्पष्टता:
कई उद्योगों को अब भी ITC नियमों को लेकर समस्याएं हैं। सरकार को इस पर स्पष्ट और सरल दिशानिर्देश लाने होंगे। -
ऑनलाइन अनुपालन प्रणाली का सरलीकरण:
जीएसटी पोर्टल और रिटर्न फाइलिंग प्रक्रिया को लेकर छोटे कारोबारियों को शिकायतें हैं। इसमें और सुधार की आवश्यकता है। -
राजस्व साझेदारी का मुद्दा:
केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व बंटवारे को लेकर अक्सर विवाद होता है। लंबित सुधारों के तहत इसे भी स्पष्ट और स्थायी हल देना होगा।
विभिन्न उद्योग संघों ने इस दर पुनर्गठन का स्वागत किया है।
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कंज्यूमर गुड्स सेक्टर: उनका कहना है कि इससे उपभोक्ताओं के लिए उत्पाद सस्ते हो सकते हैं।
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ऑटोमोबाइल उद्योग: उनका मानना है कि मध्यम श्रेणी के वाहनों पर टैक्स स्लैब कम होने से मांग बढ़ेगी।
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हेल्थकेयर सेक्टर: उपकरणों पर टैक्स घटने से इलाज की लागत कम होगी।
हालांकि कुछ उद्योगों ने यह भी चेतावनी दी है कि दरों में अचानक बदलाव से लघु और मध्यम उद्यमों (SMEs) पर बोझ पड़ सकता है।
इस बदलाव से आम उपभोक्ताओं पर भी असर पड़ना तय है। दैनिक जरूरत की कई वस्तुओं के दाम कम हो सकते हैं। वहीं, लग्जरी सामान और उच्च श्रेणी के उत्पादों पर टैक्स बढ़ने से वे महंगे हो सकते हैं। इसका सीधा असर मुद्रास्फीति दर और बाजार की मांग पर भी देखने को मिलेगा।
सरकार के लिए यह सुधार सिर्फ कर ढांचे का मामला नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य पर भी पड़ेगा। आगामी चुनावों से पहले सरकार जनता को राहत देने का संदेश देना चाहती है। आर्थिक दृष्टि से यह कदम निवेशकों का भरोसा बढ़ा सकता है और विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकता है।
पहले दो जीएसटी दर पुनर्गठन अभ्यास सीमित दायरे में थे।
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पहली बार: केवल 60 से 70 वस्तुओं पर दर बदली गई थी।
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दूसरी बार: लगभग 100 वस्तुएं शामिल हुईं।
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तीसरी बार (अब): 420 से अधिक वस्तुएं दायरे में लाई गई हैं, जिससे इसका असर कहीं अधिक व्यापक होगा।
सरकार द्वारा किया गया यह जीएसटी दर पुनर्गठन भारतीय कर प्रणाली को और सरल बनाने की दिशा में एक अहम कदम है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ दरें बदलना ही पर्याप्त नहीं होगा। लंबित सुधार जैसे दरों का एकीकरण, ITC में पारदर्शिता और केंद्र-राज्य राजस्व साझेदारी को भी शीघ्र लागू करना होगा।
यह कदम अगर सही ढंग से लागू होता है, तो यह न केवल उद्योग जगत और उपभोक्ताओं के लिए राहत लेकर आएगा, बल्कि भारत की आर्थिक संरचना को मजबूत और प्रतिस्पर्धी बनाने में भी मदद करेगा।